हैदराबाद के आखिरी निजाम मीर उस्मान अली ने अंग्रेजों के बल पर हिंदुओं को दबाए रखा और वहां आजादी की क्रांति की चिंगारी नहीं पनपने पाई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इस बार हैदराबाद लिबरेशन डे का जिक्र करते हुए कहा है कि जब हैदराबाद में निजाम और रजाकारों के जुल्म दिनोंदिन बढ़ते जा रहे थे, तब सरदार वल्लभभाई पटेल ने केंद्र सरकार को तैयार किया और ऑपरेशन पोलो के जरिए हैदराबाद को निजाम की तानाशाही से आजादी दिलाई. इसीलिए हर साल 17 सितंबर को हैदराबाद लिबरेशन डे मनाया जाता है. इसी बहाने आइए जान लेते हैं हैदराबाद के निजाम की क्रूरता के किस्से.
यह कहानी है हैदराबाद के आखिरी निजाम के जमाने की क्रूरता की. आखिरी निजाम का पूरा नाम मीर उस्मान अली खान सिद्दीकी असफ जाह था, जो उस समय देश का सबसे अमीर शख्स था. हालांकि, आखिरी निजाम उतना ही अय्याश और कंजूस भी था. मेज पर पेपर दबाने के लिए तो हीरे का इस्तेमाल करता था पर खाना टिन के बर्तन में खाता था.
निजाम चाहे जैसा भी था पर सियासत में माहिर था. उसने अंग्रेजों से दोस्ती गांठी और अपनी सत्ता बचाए रखी. इस हकीकत के बावजूद की हैदराबाद में हिंदुओं की आबादी अधिक थी, राज मुस्लिम निजामों का था. आखिरी निजाम ने अंग्रेजों के बल पर हिंदुओं को दबाए रखा और वहां आजादी की क्रांति की चिंगारी नहीं पनपने पाई.
संगठन बनाकर शुरू की क्रूरता
हैदराबाद का एक रिटायर अधिकारी था महमूद नवाज खान महमूद. उसने मजलिस इत्तेहाद उल मुस्लिमीन नामक संगठन बनाकर हैदराबाद को मुस्लिम देश बनाने के सपने देखने शुरू कर दिए, जिसमें निजाम की इच्छा भी थी. इसी संगठन के कुछ लोगों ने आगे चलकर एक पैरामिलिट्री फोर्स तैयार कर ली, जिसे रजाकार नाम दिया गया.
अरबी के इस शब्द का मतलब है स्वयंसेवक. यह वास्तव में आम लोगों से बनाई गई एक फोर्स थी, जिसे हथियार चलाने की थोड़ा-बहुत ट्रेनिंग दी जाती थी. इनमें से ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों को काफी ट्रेंड किया जाता था. वे लोगों को उकसाकर रजाकार बनाते थे.
समय के रजाकारों की ताकत और कट्टरता बढ़ती चली गई. 85 फीसदी हिंदू आबादी वाले हैदराबाद में ऊंचे पदों पर वैसे भी मुसलमान ही थे. इसलिए हिंदुओं पर क्रूरता भी बढ़ने लगी. हैदराबाद रियासत में अधिकतर टैक्स हिंदुओं से ही वसूले जाते थे. हिंदू घरों में जन्म-मौत से लेकर खेती-बाड़ी तक पर टैक्स वसूला जाता था. इससे निजाम का खजाना बढ़ता था.

जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ भी भारत का हिस्सा बन गए पर हैदराबाद के निजाम ने विलय के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया.
मारकाट और जबरन धर्म परिवर्तन कराया
रजाकारों का नेतृत्व कासिम रिजवी नाम के एक मौलाना ने संभाला तो अब तक हिंदुओं पर जो आर्थिक अत्याचार किए जा रहे थे, उनके अलावा मारकाट और धर्म परिवर्तन की भी शुरुआत हो गई. निजाम की शह पर रजाकार गांव के गांव पर हमला बोल कर लोगों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करते. इससे मना करने पर पुरुषों का कत्ल कर दिया जाता. महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया जाता या रजाकार उन्हें उठा कर ले जाते और जबरन शादी कर लेते. इनसे जन्म लेने वाले बच्चे रजाकारों की संतान कहे जाते.
देश की आजादी के बाद भी की मनमानी
15 अगस्त 1947 को जब देश को आजादी मिली, तब भी 565 देशी रियासतों को अंग्रेजों ने इधर-उधर या स्वतंत्र रहने का विकल्प देकर पेंच फंसा दिया. हालांकि, सरकार के दबाव में तमाम रियासतों ने भारत का दामन थाम लिया पर जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतें अड़ी थीं.
आखिरकार जम्मू-कश्मीर और जूनागढ़ भी भारत का हिस्सा बन गए पर हैदराबाद के निजाम ने विलय के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया. यही नहीं, रजाकारों के जरिए निजाम ने सीमा पर गड़बड़ी करानी शुरू कर दी. रजाकार ट्रेनों को लूटने लगे. निजाम का विरोध करने वाले हजारों लोगों को जेल में डाला जाने लगा. रजाकारों ने सारी हदें पार करते हुए हैदराबाद के पास गंगापुर स्टेशन पर 22 मई 1948 को एक ट्रेन पर हमला कर दिया. इसके बाद भारत सरकार को समझ में आने लगा कि हैदराबाद का विलय नहीं हुआ तो यह नासूर बन जाएगा.
भैरनपल्ली में किया भीषण नरसंहार
हैदराबाद को भारत का हिस्सा बनाने की कोशिशें जारी ही थीं कि निजाम के खास रजाकारों ने बर्बरता की सारी सीमाएं पार करते हुए भीषण नरसंहार कर डाला. दरअसल, हैदराबाद रियासत में एक गांव था भैरनपल्ली. वहां तक कोई भी रजाकार पहुंच ही नहीं पाता था. जैसे ही रजाकार गांव में घुसने की कोशिश करते, गांव वाले इकट्ठा होकर हमला कर देते और निजाम की इस पैरामिलिट्री को भागना पड़ता था.
यह अगस्त 1948 की बात है. रजाकारों ने हैदराबाद के निजाम की पुलिस के साथ भैरनपल्ली पर हमला बोल दिया. गांव के पुरुषों को गोली मार दी गई या फिर जिंदा आग में झोंक दिया गया. औरतों के साथ बर्बरता की हदें पार की गईं. उनके साथ बलात्कार किया गया.
भारत ने भेजी सेना और हैदराबाद को मिल गई आजादी
हैदराबाद के निजाम की पैरामिलिट्री फोर्स रजाकारों की क्रूरता अब सिर के पार पहुंच चुकी थी. ऐसे में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने हैदराबाद के खिलाफ सेना भेजने का फैसला किया, जिसके सामने निजाम उस्मान अली खान की सेना का कोई मुकाबला नहीं था. 13 सितंबर 1948 को सुबह चार बजे मेजर जनरल जेएन चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने हैदराबाद के खिलाफ ऑपरेशन पोलो शुरू किया और 17 सितंबर 1948 को शाम पांच बजे निजाम उस्मान अली को संघर्ष विराम की घोषणा करनी पड़ी. उसने रेडियो पर रजाकारों पर बैन लगाने की भी घोषणा की. निजाम की सेना ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया और अंतत: हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया.
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