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चीन का वो खजाना जिसे दुनियाभर के देश पाना चाहते हैं, जहां पहुंचे PM मोदी

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पीएम मोदी 31 अगस्त को तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे.

चीन के उद्योगों से प्रतियोगिता करना आसान बात नहीं है, यह दुनिया जानती है. लेकिन कम लोगों को पता है कि चीन का असली खजाना उसके प्राकृतिक संसाधन और उत्पादन हैं, जिसने उसे ग्लोबल सप्लाई चेन का सबसे अहम स्तंभ बना दिया. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि दुनिया के कई देश या यूं कहें कि ज्यादातर देश चीन के इन संसाधनों पर निर्भर हैं. चाहे वह रेयर अर्थ मेटल हों, कृषि उत्पाद हों या ग्रीन एनर्जी से जुड़ी तकनीक. ये वो खूबियां हैं जो किसी देश की अर्थव्यवस्था को बुलंदियों पर ले जा सकती हैं और दुनिया का हर देश ऐसी चीजें पाना चाहता है.

पीएम नरेंद्र मोदी चीन के दौरे पर हैं. इसी बहाने जानिए आखिर चीन के पास प्राकृतिक संसाधनों का जो खजाना है, वह दुनिया के लिए कैसे महत्वपूर्ण है? किस तरह अपने इन प्राकृतिक खजाने के सहारे चीन दुनिया में नंबर एक है की पोजिशन पर बना हुआ है.

रेयर अर्थ मेटल के खजाने में चीन नम्बर वन

रेयर अर्थ मेटल्स (Rare Earth Elements) में कुल 17 प्रकार की धातुएं होती हैं. इनमें प्रमुख हैं नियोडिमियम, लैंथेनम, डिस्प्रोसियम और सेरियम, जिनका इस्तेमाल आधुनिक तकनीक में सबसे ज़्यादा होता है. ये धातुएं हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए जरूरी हैं. इनका इस्तेमाल मोबाइल फोन, कंप्यूटर चिप्स में हो रहा है तो इलेक्ट्रिक गाड़ियां और बैटरियों में भी इनका इस्तेमाल हो रहा है. जेट इंजन और मिसाइल तकनीक से लेकर मेडिकल उपकरण और ग्रीन टेक्नोलॉजी में भी इनकी अहम भूमिका है.

Country Who Has Rare Earth Metal

दुनिया के लगभग 60-65% रेयर अर्थ उत्पादन पर चीन का कब्जा है. चीन न केवल इन खनिजों का उत्पादन करता है बल्कि उनकी रिफाइनिंग और प्रोसेसिंग क्षमता में भी सबसे आगे है. अमेरिका, जापान और यूरोप जैसे विकसित देश भी रेयर अर्थ मेटल्स के मामले में चीन पर निर्भर हैं. अगर चीन इन धातुओं की सप्लाई रोक दे तो दुनिया भर की टेक कंपनियों से लेकर रक्षा उद्योग तक प्रभावित हो जाएंगे. यही कारण है कि रेयर अर्थ मेटल चीन का सबसे बड़ा रणनीतिक हथियार भी माना जाता है.

Rare Earth Element Usage In The World

प्रकृति का वरदान, चावल उत्पादन में सबसे आगे

चीन को चावल का कटोरा भी कहा जाता है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है. इसका सालाना उत्पादन लगभग 21-22 करोड़ टन तक पहुंच जाता है. चीन अकेले ही दुनिया के कुल चावल उत्पादन का लगभग एक चौथाई से ज्यादा हिस्सेदारी रखता है. चीन न सिर्फ अपने 1.4 अरब नागरिकों का पेट भरता है बल्कि कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को चावल निर्यात भी करता है. चीन ने हाइब्रिड चावल की खेती में अद्भुत सफलता हासिल की है. वहां के कृषि वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग ने ऐसी किस्में तैयार कीं जो कम ज़मीन और कम पानी में भी अधिक उत्पादन देती हैं.

सब्ज़ियों का भी सबसे बड़ा उत्पादक

खाने की थाली में जो हरी-भरी सब्ज़ियां आती हैं, उनमें भी चीन का वर्चस्व है. दुनिया की 50% से अधिक सब्ज़ियां चीन अकेला उगाता है. टमाटर, आलू, लहसुन, प्याज़, पत्तेदार सब्ज़ियां उगाने में चीन काफी आगे है. चीन यूरोप, रूस, एशिया और अफ्रीका के देशों को सब्ज़ियों और सब्ज़ियों से बने उत्पाद भेजता है. अकेले लहसुन का लगभग तीन चौथाई उत्पादन चीन करता है और इसे दर्जनों देशों को सप्लाई करता है. यह स्थिति चीन को न केवल आत्मनिर्भर बनाती है बल्कि उसे वैश्विक खाद्य सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण आधार-स्तंभ भी बना देती है.

Vegetable In Monsoon

ग्रीन एनर्जी में भी अव्वल है चीन

ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में चीन की नेतृत्व क्षमता सबसे अलग एवं चमकदार है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पैनल निर्माता है. वैश्विक बाज़ार में लगभग 75-80% सोलर पैनल चीन से आते हैं. इसका सीधा मतलब है कि अगर चीन सोलर पैनल निर्यात कम कर दे तो सोलर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स दुनिया भर में महंगे हो जाएंगे. इन पैनलों ने दुनिया को सस्ता और सुलभ नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने का रास्ता आसान किया है. यूरोप और अमेरिका तक भी सौर पैनलों में चीन पर निर्भर हैं. बड़े पैमाने पर उत्पादन से चीन ने लागत घटाई और मार्केट में पकड़ बनाई. घरेलू स्तर पर भी चीन ने लाखों घरों को सौर ऊर्जा से जोड़ा है.

Green Energy

पवन ऊर्जा में पुरवा हवा का झोंका है चीन

सौर ऊर्जा के साथ-साथ पवन ऊर्जा उपकरणों के उत्पादन में भी चीन दुनिया में नंबर वन है. दुनिया भर के 60% विंड टर्बाइन चीन में बने होते हैं. चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा विंड एनर्जी इंस्टॉलेशन नेटवर्क है, जहां ग्वांगडोंग और गांसू प्रांत बड़े केंद्र हैं. यूरोप की कंपनियां और अमेरिका तक इस क्षेत्र में चीनी उपकरणों पर निर्भर हैं. ग्रीन एनर्जी ट्रांज़िशन में चीन का यह योगदान इतना अहम है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में चीन को अनदेखा करना असंभव है.

दुनिया का ब्लू फूड पॉवरहाउस

चीन को समुद्रों और नदियों ने अपार संपदा दी है और उसने तकनीक व संसाधनों का इस्तेमाल करके इसे दुनिया का सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादन केंद्र बना दिया है. संयुक्त राष्ट्र की Food and Agriculture Organization की रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन अकेले ही दुनिया के कुल मछली उत्पादन का 35-38% हिस्सा देता है. यह उत्पादन इस क्षेत्र में भी चीन को अव्वल बनाता है.

चीन का सबसे बड़ा योगदान aquaculture (तालाब, झील, समुद्री पिंजरों में पालन) से आता है. चीन सालाना 6-7 करोड़ टन मछली और समुद्री जीव पैदा करता है. यह उत्पादन दक्षिण एशियाई देशों से लेकर यूरोप तक एक्सपोर्ट होता है. अफ्रीका और एशिया के दर्जनों देशों की प्रोटीन ज़रूरतों में चीन की मछली बड़ी भूमिका निभाती आ रही है.

Fish Culture

दुर्लभ जड़ी-बूटियां और पारंपरिक औषधि

चीन की पारंपरिक औषधि प्रणाली हजारों साल पुरानी है. इसमें जड़ी-बूटियों, खनिजों और प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है. चीन हर साल अरबों डॉलर की हर्बल दवाइयां और औषधीय सामग्री एक्सपोर्ट करता है. जिनसेंग, गोजी बेरी, रेमनिया, लिंगझी मशरूम जैसी जड़ी-बूटियां चीन की पहचान हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यहां की दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ और पारंपरिक औषधि को चिकित्सा प्रणालियों का हिस्सा माना है. यूरोप, अमेरिका, जापान और अफ्रीकी देशों में इनकी मांग लगातार बढ़ रही है. औषधीय पौधों की उपज में चीन का बाजार हिस्सा 40% से ज्यादा है.

चीन की पारंपरिक ऊर्जा का स्तंभ है कोयला

ग्रीन एनर्जी की दौड़ के बावजूद चीन अभी भी कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है. यह दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक भी है और उपभोक्ता भी. चीन सालाना लगभग चार अरब टन (4000 मिलियन टन) से अधिक कोयला निकालता है. यह दुनिया के कुल कोयला उत्पादन का लगभग आधा है.

चीन की कुल बिजली का लगभग 55-60% हिस्सा अभी भी कोयले से आता है. कोयला उद्योग से बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिला हुआ है. यद्यपि, कोयले के ज़रिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ चीन पर प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है. इसीलिए चीन समानांतर रूप से सोलर और पवन ऊर्जा में निवेश करके संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है.

चीन का कोयला उद्योग इतना विशाल है कि ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया जैसे देशों के लिए उसका मांग-आधारित इंपोर्ट एक बड़ा आर्थिक स्रोत है.
इस तरह हम पाते हैं कि चीन का प्राकृतिक खजाना उसे न केवल आत्मनिर्भर बनाते हैं बल्कि पूरी दुनिया पर उसकी पकड़ मजबूत करते हैं. चाहे वह रेयर अर्थ मेटल से लेकर सोलर पैनल का उत्पादन हो, चावल और सब्ज़ियां हों या पवन ऊर्जा से जुड़े उपकरण. चीन हर स्तर पर अपनी लीडरशिप साबित कर रहा है.

यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में चीन की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो गई है. उम्मीद की जा रही है कि पीएम नरेंद्र मोदी की इस चीन यात्रा में इन विषयों की अहमियत होगी, क्योंकि भारत भी कृषि, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी में प्रगति कर रहा है. देखना रोचक होगा कि दुनिया के बनते-बिगड़ते रिश्तों के बीच भारत-चीन की बातचीत क्या गुल खिलाएगी.

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