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चीन या जापान, अंतरिक्ष की रेस में कौन आगे निकला? चंद्रयान-5 से शुरू हुई चर्चा

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जापान में पीएम मोदी ने चंद्रयान-5 का जिक्र किया और 31 अगस्‍त को वो चीन के दौरे पर रहेंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर हैं. वह 31 अगस्त को तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे. इसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक में हिस्सा लेंगे. इससे पहले 29 अगस्त को पीएम मोदी जापान में थे. उन्होंने जापान दौरे के पहले ही दिन भारत के चंद्रयान मिशन-5 का जिक्र किया. जापान की धरती पर उनकी ओर से दिए गए इस बयान के कई मायने हैं.

पीएम की ओर से भारत के लिए कही गई इस बात ने लोगों का ध्यान एशिया के अन्य दो प्रमुख देशों चीन और जापान की ओर खींचा. दोनों ही देशों ने अपनी-अपनी उपलब्धियों से स्पेस सेक्टर में एक मजबूत पहचान बनाई है.

जानिए जापान और चीन में स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत कैसे हुई, दोनों देशों ने स्पेस सेक्टर में कौन-कौन से इतिहास रचे और अंतरिक्ष की होड़ में कौन-सा देश कहां खड़ा है?

Japan Space Program History

अंतरिक्ष की दुनिया में जापान के रिकॉर्ड

  • हायाबूसा-1 नामक प्रोब साल 2003 में जापान ने लॉन्च किया जो किसी क्षुद्रग्रह (Itokawa) पर उतरने वाला पहला यान बना. इसने साल 2010 में पृथ्वी पर क्षुद्रग्रह की धूल के नमूने वापस लाकर इतिहास रचा.
  • हायाबूसा-2 साल 2014 में लॉन्च हुआ और 2019 में क्षुद्रग्रह रयूगू से नमूने लेकर आया. इसने वैश्विक विज्ञान जगत को चकित कर दिया क्योंकि यह ऑपरेशन अत्यंत जटिल और सटीक था.
  • जापान ने साल 2007 में चंद्र मिशन के तहत कागुया (SELENE) भेजा, जिसने चंद्रमा की सतह और गुरुत्वाकर्षण के बारे में बहुमूल्य डेटा दिया.
  • जापान वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में अमेरिका, रूस, यूरोप और कनाडा के साथ साझेदारी कर रहा है.
  • जापान एयरो स्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) का किबो मॉड्यूल ISS का सबसे बड़ा अनुसंधान मॉड्यूल है.
  • जापान ने अभी तक स्वतंत्र रूप से इंसानों को अंतरिक्ष में नहीं भेजा, लेकिन JAXA के अंतरिक्ष यात्री अमेरिकी और रूसी यानों से ISS गए हैं.

China Space Program History

चीन ने स्पेस में क्या-क्या रिकॉर्ड बनाए?

  • चीन ने साल 2003 में शेनझो-5 यान से अपने पहले अंतरिक्ष यात्री यांग लिवेई को भेजा.
  • इसके बाद कई मानवयुक्त मिशन सफलता पूर्वक हुए. इसी के साथ चीन, सोवियत संघ और अमेरिका के बाद दुनिया की तीसरी मानव अंतरिक्ष शक्ति बन गया.
  • साल 2007 में चीन ने पहला चंद्रयान (Change-1) भेजा.
  • साल 2013 में Change-3 मिशन ने चंद्रमा पर युतु रोवर उतारा.
  • साल 2019 में Change-4 ने चंद्रमा के दूरस्थ हिस्से (Far side) पर उतरकर पहला इतिहास रचा.
  • साल 2020 में Change-5 चंद्रमा से मिट्टी और पत्थरों के नमूने पृथ्वी पर लाने में सफल रहा.
  • साल 2020 में ही चीन ने मंगल मिशन पर काम शुरू किया और तियानवेन-1 भेजा.
  • साल 2021 में उसका रोवर झुरोंग मंगल की सतह पर उतरा.
  • अमेरिका के बाद चीन दूसरा देश बना जिसने मंगल की सतह पर सफलतापूर्वक रोवर उतारा.
  • चीन ने अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन—तियांगोंग (Tiangong) बनाना शुरू किया है.
  • साल 2021 के बाद से इसमें कई मॉड्यूल जुड़ चुके हैं और यह पूरी तरह से काम कर रहा है.
  • यह चीन की स्वतंत्र अंतरिक्ष शक्ति का प्रमाण है क्योंकि ISS में चीन को प्रवेश नहीं मिल पाया था.
  • चीन का अपना सैटेलाइट और नेविगेशन सिस्टम है.
  • चीन ने अपना बीडौ (Beidou Navigation System) विकसित किया, जो अमेरिका के GPS, रूस के GLONASS और यूरोप के Galileo की तरह स्वतंत्र पोजिशनिंग सेवा देता है.
  • चीन इस तरह दुनिया का चौथा ऐसा देश बना जिसके पास पूर्ण उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणाली है.

आगे क्या है जापान की योजना?

  • साल 2030 तक चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने की दिशा में काम हो रहा है.
  • जापान अमेरिका के Artemis Program में एक महत्वपूर्ण पार्टनर है और चंद्र बेस बनाने की योजना में सहयोग कर रहा है.
  • क्षुद्रग्रह अन्वेषण और डीप स्पेस मिशनों पर भी इसका खास जोर है.

अब चीन क्या करेगा?

  • साल 2030 तक चंद्रमा पर चीनी अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने का लक्ष्य.
  • मंगल ग्रह से नमूना लाने की महत्वाकांक्षी योजना.
  • तियांगोंग को और बड़ा और लंबी अवधि तक चलने लायक स्टेशन बनाने पर काम.
  • डीप स्पेस नेटवर्क मजबूत बनाना.

इस तरह हम पाते हैं कि जापान और चीन दोनों ने एशिया की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाई दी है. जापान की ताकत इसका वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है. विशेष रूप से क्षुद्रग्रह मिशनों और अंतरिक्ष स्टेशन में योगदान ने इसे अलग पहचान दिलाई. चीन की ताकत इसकी स्वतंत्रता और आक्रामक प्रगति है. मानव मिशनों, चंद्रमा और मंगल ग्रह पर सफल जटिल अभियानों ने इसे अमेरिका और रूस की बराबरी पर खड़ा कर दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी के चंद्रयान-5 चर्चा के संदर्भ में देखा जाए तो भारत की राह कहीं न कहीं इन दोनों देशों की मिश्रित रणनीति लगती है. जापान की वैज्ञानिक सूझबूझ और चीन की आत्मनिर्भर महत्वाकांक्षा आने वाले समय में अंतरिक्ष का यह एशियाई त्रिकोण भारत, चीन और जापान निश्चित रूप से वैश्विक अंतरिक्ष परिदृश्य को नया स्वरूप देने में कामयाब होगा. बदलते परिदृश्य में ऐसा मानने के कई कारण हैं.

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