Prabhat Khabar Online Legal Counseling: धनबाद-भूमि, संपत्ति, दुर्घटनाओं के लिए बीमा कंपनियों से क्लेम और पारिवारिक विवादों में कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विकास कुमार भुवानिया ने दिये. लीगल काउंसेलिंग के दौरान धनबाद, बोकारो, गिरिडीह से कई लोगों ने कानूनी सलाह ली. उन्होंने कहा कि हुकुमनामा तभी वैध माना जाता है, जब सर्वे में इसका उल्लेख हो.
हुकुमनामा से जमीन पर कर रहा दावा
कसमार से गोविंद महतो का सवाल : मेरे पिताजी ने 1973 में 15 डिसमिल जमीन खरीदी थी और तब से इस जमीन पर हमारे परिवार का कब्जा है. अब जब हम यह जमीन बेचने जा रहे हैं, तो एक व्यक्ति हुकुमनामा लेकर सामने आया है और दावा कर रहा है कि यह जमीन उसकी है.
अधिवक्ता की सलाह : देश में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से पहले पुराने जमींदार अपने अधीन भूमि का स्वामित्व हस्तांतरित करने के लिए हुकुमनामा जारी करते थे. आजादी के तुरंत बाद इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया. उस समय, हुकुमनामा से हस्तांतरित भूमि का रिकॉर्ड रखने के लिए फॉर्म-एम तैयार किया गया था. लेकिन कुछ वर्षों बाद बिहार के लगभग सभी जिलों में साजिशन फॉर्म-एम नष्ट कर दिये गये. यही कारण है कि आज भी कुछ भूमि मामलों में हुकुमनामा को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है. हालांकि, इसकी वैधता तभी मानी जाती है, जब अब तक हुए प्रत्येक सर्वे में उसका उल्लेख हो और संबंधित भूमि पर नियमित रूप से राजस्व की रसीद कटती रही हो. यदि ये शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो कानून की नजर में हुकुमनामा अमान्य माना जाता है.
गिरिडीह से मोहन साव का सवाल : मैं एक संयुक्त परिवार से हूं, अब हमारे परिवार में बंटवारा होने जा रहा है. मेरी एक बुआ थीं, जिनका निधन 15 वर्ष पहले हो गया. अब बंटवारे के समय मेरा चचेरा भाई बुआ का एक एफिडेविट दिखा रहा है, जिसके आधार पर वह दावा कर रहा है कि बुआ ने अपनी पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा उसे हस्तांतरित कर दिया था.
अधिवक्ता की सलाह : केवल एफिडेविट मात्र से पैतृक संपत्ति का हस्तांतरण संभव नहीं है. कानून के अनुसार, संपत्ति का स्वामित्व बदलने के लिए रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड, सेल डीड, वसीयत या न्यायालय का आदेश आवश्यक होता है. यदि बुआ ने कोई रजिस्टर्ड दस्तावेज नहीं बनवाया था, तो कानूनी दृष्टि से उनका हिस्सा सभी वैधानिक उत्तराधिकारियों में बंटेगा. उचित होगा कि आप किसी अनुभवी सिविल वकील की मदद से सिविल कोर्ट में पार्टिशन सूट फाइल करें. साथ ही अगर चाहें तो अपने चचेरे के खिलाफ कोर्ट में सीपी केस के माध्यम से या फिर थाना में धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.
गिरिडीह से जगत नारायण साव का सवाल : मैं सीसीएल का सेवानिवृत्त कर्मी हूं. पीएफ समेत पूरे पावना का भुगतान में अनावश्यक देरी की गयी थी. लंबे समय तक मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ा. क्या मैं अब मानसिक प्रताड़ना और अन्य कानूनी खर्चों के लिए मुआवजे का दावा कर सकता हूं?
अधिवक्ता की सलाह : यदि सेवानिवृत्ति लाभ (जैसे पीएफ, ग्रेच्युटी, पेंशन आदि) अनुचित देरी से दिये गये हों, तो आप मुआवजा, ब्याज और कानूनी खर्च की भरपाई का दावा कर सकते हैं. इसके लिए पहले आप सीएमपीएफ को लीगल नोटिस भेजें. अगर इससे काम न बने, तो आप सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल, लेबर कोर्ट या न्यायालय में मुआवजा के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.
हीरापुर, धनबाद से एसके सिंह का सवाल : मैं एक बुजुर्ग हूं. मेरे खिलाफ एक ही आपराधिक मामले में धनबाद कोर्ट से दो विरोधाभासी आदेश आये थे. मैंने इस बारे में हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखा था. वहां से मामला इंस्पेक्टिंग जज को रेफर कर दिया गया है. लेकिन इसके बाद की कार्रवाई की जानकारी मुझे नहीं मिल रही है.
अधिवक्ता की सलाह : चूंकि मामला हाई कोर्ट के इंस्पेक्टिंग जज को रेफर किया गया है, इसलिए उसकी प्रगति की जानकारी हाई कोर्ट रजिस्ट्रार से ही मिल सकती है. आप फिर से रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखें और अपने स्वास्थ्य कारणों का उल्लेख करते हुए, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की अनुमति भी मांग सकते हैं. आप चाहें, तो नि:शुल्क कानूनी सहायता के लिए झालसा की मदद ले सकते हैं.
झरिया से सूरज कुमार महतो का सवाल : मेरे खिलाफ 2020 में एक आपराधिक मामला दर्ज हुआ था. इस मामले में मैं वर्तमान में जमानत पर हूं, लेकिन पुलिस की लापरवाही के कारण सुनवाई काफी धीमी चल रही है.
अधिवक्ता की सलाह : यदि पुलिस की वजह से सुनवाई में देरी हो रही है, तो पहले एसएसपी या उनके ऊपर के अधिकारी से शिकायत करें. इसके साथ ही आप अदालत में तेज सुनवाई के लिए आवेदन कर सकते हैं. यह आपका कानूनी और मौलिक अधिकार है.
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ससुरालवाले नहीं लौटा रहे कर्ज, क्या करें?
बोकारो से गणेश महतो का सवाल : मैंने अपने ससुराल वालों को कर्ज के रूप में नकद बड़ी राशि दी थी, लेकिन अब वे पैसा नहीं लौटा रहे हैं. मेरे पास पैसा लेने का साक्ष्य ऑडियो रिकॉर्डिंग के रूप में है.
अधिवक्ता की सलाह : आप सबसे पहले, लिखित नोटिस भेजकर उन्हें राशि लौटाने के लिए कहें. इसके बाद 15 दिनों के भीतर आप सिविल कोर्ट में वसूली का दावा (मनी सूट) दायर करें . आपके पास जो ऑडियो रिकॉर्डिंग है, वह कोर्ट में साक्ष्य के रूप में काम आ सकती है, बशर्ते वह साफ हो और उसमें लेन-देन की बात स्पष्ट रूप से कही गयी हो.
धनबाद से संजय मंडल का सवाल : मेरी खतियानी जमीन पर अंचल कार्यालय की लापरवाही से किसी दूसरे व्यक्ति के नाम पर अबुआ आवास योजना स्वीकृत कर दी गयी है. शिकायत करने के बाद भी इसे रद्द नहीं किया जा रहा है.
अधिवक्ता की सलाह : सबसे पहले, अपने जमीन के स्वामित्व के दस्तावेज़ (खतियान, रसीद, नक्शा, रजिस्ट्री आदि) एक साथ रख लें. इसके बाद अंचल अधिकारी को लिखित आपत्ति दें और उसकी प्राप्ति रसीद लें. यदि अंचल स्तर पर कार्रवाई नहीं हो रही है, तो आप अनुमंडल पदाधिकारी या उपायुक्त के समक्ष अपील व शिकायत कर सकते हैं. साथ ही, आप योजना क्रियान्वयन विभाग को भी सूचित कर सकते हैं कि आवास योजना गलत व्यक्ति को स्वीकृत की गयी है.
बोकारो से संजीव सिंह का सवाल : मेरे बेटे की शादी इस वर्ष अप्रैल में हुई है. शादी के कुछ दिनों बाद पता चला कि लड़की अवसाद की दवाइयां लेती है और उसका इलाज रिनपास, रांची से चल रहा है. लड़की पक्ष ने यह बात छुपाकर शादी की थी. अब हम शादी को निरस्त करवाना चाहते हैं.
अधिवक्ता की सलाह : हिन्दू मैरेज एक्ट तहत यदि शादी के समय किसी पक्ष की मानसिक स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य छुपाया गया हो, तो यह धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है और शादी को रद्द करवाने का आधार बन सकता है. इसके धारा 12 के अनुसार, यदि विवाह के लिए सहमति धोखाधड़ी से प्राप्त की गई है, तो विवाह निरस्त करने के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है. इसके लिए शादी के एक वर्ष के भीतर पहल करनी होगी.
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