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Land Sale Purchase News: बिहार में चुनाव लड़ने के लिए नेता बेचेंगे जमीन, दुकान और मकान! इन जिलों में लगेगी बोली

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Bihar Land Sale Purchase News: बिहार विधानसभा चुनाव में नेता अपनी जमीनें बेचकर चुनावी फंड जुटा रहे हैं. पटना, आरा, मुज़फ्फरपुर में भूमिहार, राजपूत नेता शहरी जमीनें बेच रहे हैं, जबकि ओबीसी नेता ग्रामीण जमीनें बे…और पढ़ें

चुनाव लड़ने के लिए नेता बेचेंगे जमीन, दुकान और मकान! इन जिलों में लगेगी बोलीबिहार चुनाव से पहले चुनाव लड़ने वाले नेता बेचने लगे जमीन, दुकान और मकान.

पटना. बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां शुरू होते ही राज्य के सियासी गलियारों में ज़मीन की खरीद-बिक्री को लेकर अचानक हलचल तेज़ हो गई है. नेता अब वोट नहीं, पहले ‘खरीदार’ खोज रहे हैं. वो खरीदार जो उनकी बेशकीमती ज़मीनों, फ्लैट्स और दुकानों को ऊंचे दामों पर खरीद सके, जिससे वो चुनाव लड़ने के लिए फंड जुटा सकें. जैसे-जैसे टिकट बंटने की तारीख़ नज़दीक आ रही है, वैसे-वैसे राजधानी पटना से लेकर ज़िला मुख्यालयों में रजिस्ट्रेशन ऑफिस और प्रॉपर्टी डीलरों के पास नेताओं की चहल-पहल बढ़ गई है. जानकारों के अनुसार, चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे कई नेताओं ने अपने पुश्तैनी खेत, व्यावसायिक ज़मीनें और यहां तक कि शहरी इलाकों में बने फ्लैट तक बेचने का फैसला कर लिया है.

बिहार में एक विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ना अब सिर्फ राजनीतिक सपनों का नहीं, बल्कि आर्थिक सामर्थ्य का भी खेल बन गया है. एक टिकट लेने के लिए पार्टी हाईकमान को साधने से लेकर प्रचार और ‘मैनेजमेंट’ तक में नेताओं को बड़ा खर्च करना पड़ता है. जानकार बताते हैं कि एक विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने में न्यूनतम खर्च ₹ ₹1.5 करोड़ से 4-5 करोड़ तक पहुंच सकता है. इसमें भी अगर सीट हाई प्रोफाइल हो या प्रतिस्पर्धा ज़्यादा हो, तो खर्च 7 करोड़ तक भी जा सकता है.

टिकट से पहले ज़मीन बेचो, फिर चुनाव लड़ो

राजनीतिक जानकारों की मानं तो पार्टी फंडिंग केवल कुछ खास चेहरों को और एक निश्चित राशि ही मिलती है. ऐसे में बाकी नेताओं को खुद ही इंतज़ाम करना पड़ता है. इसी के चलते संपत्ति, खासकर ज़मीनें, बेचकर फंड जुटाने की प्रवृत्ति तेज़ हो रही है. बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं और जमीन की खरीद-बिक्री में भी यह फर्क साफ दिखता है.

किस जाति के नेता ज़्यादा बेच रहे हैं ज़मीन?

भूमिहार, राजपूत और कायस्थ जैसे पारंपरिक सवर्ण जातियों के पास शहरों में अधिक संपत्ति है. इन समुदायों के पहली बार चुनाव लड़ने वाले नेता पटना, आरा, मुज़फ्फरपुर, गया जैसे शहरी इलाकों में अपनी ज़मीनें बेच रहे हैं. यादव, कुर्मी और कोइरी जैसी ओबीसी जातियों के नेता ग्रामीण ज़मीनों की बिक्री के ज़रिए चुनावी खर्च जुटा रहे हैं. दलित और महादलित समुदायों के नेताओं के पास अपेक्षाकृत कम संपत्ति है, लेकिन जो संपत्ति है, वो भी दांव पर लगाई जा रही है.

क्या यह नई परंपरा बन रही है?

पटना के एक प्रॉपर्टी डीलर के मुताबिक, ‘बीते 2 महीने में मेरे पास 30 से ज़्यादा ऐसे लोग आए जो ‘इलेक्शन इमरजेंसी’ में अपनी ज़मीन बेच रहे हैं. इनमें से ज़्यादातर संभावित उम्मीदवार हैं.’ राजनीति में पैसे की भूमिका नई नहीं है, लेकिन जमीन बेचकर चुनाव लड़ना अब एक ट्रेंड बनता जा रहा है. विशेषज्ञ इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हैं.

पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने एक बार कहा था, ‘अगर कोई नेता चुनाव में करोड़ों खर्च कर रहा है, तो वो पैसा वसूलने का दबाव भी रहेगा. ऐसे में जनता की सेवा पीछे छूट जाती है.’ बिहार में यह ट्रेंड अगर जारी रहा तो आने वाले सालों में राजनीति सिर्फ अमीरों का खेल बन जाएगी और आम जनता की भागीदारी सीमित रह जाएगी. कुलमिलाकर बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव एक और रंग लिए हुए है. जमीनों की बोली का रंग. हर जाति, हर समुदाय का नेता अब अपनी संपत्ति को बेचकर ‘राजनीतिक संपत्ति’ अर्जित करना चाहता है. यह बदलाव न केवल राजनीति की दिशा दिखाता है, बल्कि लोकतंत्र के चरित्र पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है.

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चुनाव लड़ने के लिए नेता बेचेंगे जमीन, दुकान और मकान! इन जिलों में लगेगी बोली

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