सूत्रों के अनुसार, पार्टी की सत्ता वाले राज्यों में से कुछ में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इनमें दो कारण महत्वपूर्ण हैं, पहला सत्ता व संगठन में समन्वय और दूसरा सरकार को लेकर जनता की राय।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) में संगठन चुनावों में हो रही देरी का असर राज्यों पर पड़ने लगा है। खासकर पार्टी की सत्ता वाले राज्यों से आ रही अंदरूनी रिपोर्ट अच्छी नहीं है। पार्टी को अपनी सत्ता वाले राज्यों से विभिन्न स्तरों पर जो आकलन मिल रहा है, वहां पर सरकारों व संगठन के बीच तो दिक्कत है ही, जनता पर भी पकड़ कमजोर पड़ रही है। राज्यों के कई नेता भी केंद्रीय नेताओं से अलग-अलग मुलाकातों में अपना फीडबैक दे रहे हैं।
भाजपा के अधिकांश राज्यों के संगठन चुनाव पूरे होने के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव नहीं हो सके हैं। इसका असर राज्यों पर भी पड़ने लगा है, वहां संगठन स्तर पर शिथिलता आने लगी है। जिन राज्यों में सरकारें हैं वहां पर भी समन्वय की समस्याएं उभरने लगी हैं।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी विभिन्न स्तरों पर राज्यों से रिपोर्ट हासिल करती है। संगठन स्तर पर पार्टी अध्यक्ष हर महीने महासचिवों के साथ बैठक में इस पर विचार करते हैं। इसके अलावा, राज्य के विभिन्न नेताओं से मिलने वाली जानकारी और कुछ एजेंसियों से मिलने वाला फीडबैक भी अहम होता है।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी की सत्ता वाले राज्यों में से कुछ में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इनमें दो कारण महत्वपूर्ण हैं, पहला सत्ता व संगठन में समन्वय और दूसरा सरकार को लेकर जनता की राय। सूत्रों का कहना है कि जिन राज्यों को लेकर चिंता जताई गई है, उनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात एवं उत्तराखंड में उचित सुधारात्मक कदम उठाए जाने की बात सामने आई है। इनमें गुजरात में अभी संगठन चुनाव भी नहीं हुए हैं।
पार्टी नेतृत्व ने संकेत दिए हैं कि जिन राज्यों में स्थिति ठीक नहीं है, उनको जरूरी सलाह दी गई है और कदम उठाने को कहा गया है। बिहार के विधानसभा चुनावों के बाद केंद्रीय नेतृत्व संगठन की व्यापक समीक्षा करेगी।
दरअसल, यह कवायद नए अध्यक्ष के बाद होनी है इसलिए समय सीमा को लेकर स्थिति साफ नहीं है। हालांकि, पार्टी का यह स्पष्ट मानना है कि केंद्र से दी गई सलाह के बाद भी स्थिति नहीं बदलती है तो उसे बदलाव की तरफ जाना पड़ सकता है।