पुतिन ने की पीएम मोदी और जिनपिंग की बातचीत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को कूटनीतिक मोर्चे पर दो अहम वार्ताएं की हैं. पहली, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से और दूसरी, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से.
चीन की सरकारी मीडिया के मुताबिक, शी जिनपिंग ने पुतिन से कहा कि उन्हें खुशी है कि मॉस्को और वॉशिंगटन मतभेदों के बावजूद संवाद बनाए हुए हैं. वहीं, पीएम मोदी से पुतिन की यह बातचीत ऐसे समय में हुई जब ट्रंप ने कुछ दिन पहले ही भारतीय सामान पर 50% टैरिफ लगा दिया था, जिसका कारण भारत का रूस से तेल खरीदना बताया गया है.
शी जिनपिंग और पुतिन में क्या बात हुई?
शी और पुतिन की यह बातचीत उस वक्त हुई है जब रूस और अमेरिका के बीच यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए एक संभावित बैठक की तैयारी चल रही है. दोनों पक्षों ने पुष्टि की है कि इस बैठक के लिए बातचीत जारी है और संभव है कि मुलाकात अगले हफ्ते हो, हालांकि तारीख और स्थान तय नहीं हुए हैं.
वार्ता में शी जिनपिंग ने कहा कि चीन चाहता है कि रूस और अमेरिका आपसी संपर्क बनाए रखें, रिश्तों में सुधार करें और यूक्रेन संकट का राजनीतिक समाधान निकालें. पुतिन ने शी को अमेरिका और रूस के बीच हालिया संपर्क और यूक्रेन की मौजूदा स्थिति पर जानकारी दी. शी ने यह भी दोहराया कि चीन रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.
मोदी और पुतिन की क्या बात हुई?
बातचीत में पुतिन ने पीएम मोदी को यूक्रेन की मौजूदा स्थिति की ताजा जानकारी दी. पीएम मोदी ने पुतिन का आभार जताते हुए कहा कि भारत हमेशा से इस मसले का शांतिपूर्ण हल निकालने के पक्ष में रहा है. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को इस साल के अंत में भारत आने का न्योता भी दिया, जहां 23वां भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन होना है. इससे एक दिन पहले, गुरुवार को पीएम मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा से भी फोन पर बात की. दोनों नेताओं ने व्यापार, तकनीक, ऊर्जा, रक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने जैसे कई मुद्दों पर सहयोग मजबूत करने का ढांचा तय किया.
अमेरिका के खिलाफ इसे क्यों माना जा रहा?
पुतिन की इन दोनों नेताओं से बातचीत अमेरिका के खिलाफ इसलिए अहम है क्योंकि भारत पर टैरिफ लगाने का बड़ा कारण ट्रंप ने रूसी तेल को बताया है. भारत रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है, जिससे रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक सहारा मिल रहा है. ये वॉशिंगटन को खटकता है. दूसरी ओर, चीन भी रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा ग्राहक है और अमेरिका के साथ व्यापारिक टकराव में है. पुतिन अगर चीन और भारत को एक मंच पर ले आते हैं तो ये न सिर्फ अमेरिकी टैरिफ नीति को चुनौती बल्कि व्यापार और कूटनीति में एक वैकल्पिक गठजोड़ खड़ा कर देगा जो अमेरिकी के प्रभाव पर सीधा असर डालेगा.