भारत के सामने 20 दिन का महत्वपूर्ण समय है जिसमें उसे कूटनीति, व्यापार वार्ता और रणनीतिक निर्णयों के माध्यम से इस संकट से निपटना होगा। रूस से तेल आयात में कमी, US से डील पर विचार किया जा सकता है, लेकिन जोखिम है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिससे भारतीय सामानों पर कुल टैरिफ 50% हो गया है। यह कदम भारत के रूस से कच्चे तेल की खरीद को लेकर उठाया गया है, जिसे ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने वाला बताया है। यह अतिरिक्त टैरिफ 21 दिन बाद, यानी 27 अगस्त से लागू होगा, जिससे भारत के पास इस संकट से निपटने के लिए 20 दिन का समय है। भारत अमेरिका का सबसे अधिक टैरिफ झेलने वाला एशियाई साझेदार बन गया है। यह फैसला ब्राजील के साथ भारत को एक कतार में खड़ा करता है, जो पहले ही उच्च अमेरिकी टैरिफ का सामना कर रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि यह टैरिफ लागू होता है, तो भारत की जीडीपी को 1% तक का नुकसान हो सकता है। भारत ने इस कदम को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और अव्यवहारिक” करार दिया है।
टैरिफ का कारण और भारत की स्थिति
ट्रंप ने अपने कार्यकारी आदेश में कहा कि भारत रूस से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तेल आयात कर रहा है, जिससे रूस के यूक्रेन पर हमले को वित्तीय रूप से समर्थन मिल रहा है। ट्रंप ने पहले ही भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जो 7 अगस्त से लागू हो चुका है। अब अतिरिक्त 25% टैरिफ की घोषणा ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। ट्रंप ने अन्य देशों, जैसे चीन, ब्राजील, तुर्की और बेलारूस पर भी इसी तरह के टैरिफ की धमकी दी है।
भारत ने इस टैरिफ को अनुचित बताते हुए कहा कि उसका रूस से तेल आयात 140 करोड़ लोगों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमारे आयात बाजार की स्थिति और राष्ट्रीय हितों के आधार पर किए जाते हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि अमेरिका ने भारत को निशाना बनाया, जबकि कई अन्य देश भी रूस से व्यापार कर रहे हैं।” भारत ने यह भी बताया कि 2022 में यूक्रेन संकट शुरू होने पर अमेरिका ने ही भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक तेल की कीमतें स्थिर रहें।
टैरिफ का भारत पर आर्थिक असर
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स का अनुमान है कि इस बढ़ोतरी से भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में 60% तक की कमी आ सकती है। इसका असर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पड़ेगा जिसमें लगभग 1% की कमी आ सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 में अर्थव्यवस्था के 6.5% की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है- जो पिछले साल के बराबर ही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 50% टैरिफ से भारत के निर्यात, विशेष रूप से कपड़ा, रत्न और आभूषण, ऑटो पार्ट्स, समुद्री उत्पाद और चमड़ा उद्योग पर गहरा असर पड़ेगा। 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 87 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया था, जो उसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, इस टैरिफ से भारत के अमेरिका को निर्यात में 40-50% की कमी आ सकती है। HDFC बैंक की प्रधान अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने चेतावनी दी है कि यदि कोई समझौता नहीं होता है, तो भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6% से नीचे आ सकती है, जो कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 6.5% के अनुमान से काफी कम है। भारतीय रुपये पर भी दबाव बढ़ गया है, और स्टॉक मार्केट में मामूली गिरावट देखी गई है। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) ने इस फैसले को “बेहद चौंकाने वाला” बताया और कहा कि यह भारत के 55% निर्यात को प्रभावित करेगा।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा बनाम अमेरिकी दबाव
भारत ने स्पष्ट किया है कि उसका रूस से तेल आयात पूरी तरह से बाजार आधारित है और यह ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है। लेकिन अमेरिकी टैरिफ से भारत के 86.5 अरब डॉलर की वार्षिक वस्तु-निर्यात पर बड़ा असर पड़ सकता है। नोमुरा, एक जापानी ब्रोकरेज कंपनी ने चेतावनी दी है कि अगर यह टैरिफ प्रभावी होता है तो यह “एक तरह के व्यापारिक प्रतिबंध” जैसा होगा, जिससे कुछ उत्पादों का निर्यात पूरी तरह बंद हो सकता है।
टेक्सटाइल और ज्वेलरी सेक्टर को भारी झटका
भारत के कपड़ा और आभूषण निर्यातक पहले से ही कम मार्जिन में काम करते हैं वे इस टैरिफ को झेलने में अक्षम हैं। बीबीसी से बात करते हुए कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) के राकेश मेहरा ने कहा, “यह हमारे निर्यातकों के लिए एक बहुत बड़ा झटका है, जो अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा को लगभग असंभव बना देगा।” हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा उत्पादों को अभी अतिरिक्त टैरिफ से राहत दी गई है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अस्थायी हो सकता है।
भारत के सामने रणनीतिक दुविधा
अमेरिका का यह फैसला ऐसे समय आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने पर चर्चा चल रही थी। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने लिखा, “हमारे सबसे बड़े डर अब सच हो गए हैं। यह एक अनावश्यक व्यापार युद्ध की ओर ले जा सकता है।” अब सवाल यह है कि मोदी सरकार अमेरिका के दबाव में आकर रूस से अपने व्यापारिक रिश्ते खत्म करेगी या फिर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर अडिग रहेगी? चैथम हाउस के डॉ. चितिगज बाजपेई के अनुसार, “भारत पहले से ही रूसी रक्षा उपकरणों पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है। ऐसे में कुछ कूटनीतिक संकेत दिए जा सकते हैं, जो भारत की मौजूदा नीति के अनुकूल होंगे।”
भारत के सामने विकल्प
भारत के पास इस संकट से निपटने के लिए कई विकल्प हैं, लेकिन प्रत्येक के अपने जोखिम और सीमाएं हैं।
1. रूस से तेल आयात में कटौती: भारत रूस से प्रतिदिन लगभग 1.75 मिलियन बैरल तेल आयात करता है, जो उसकी कुल तेल जरूरतों का 39% है। रूस से आयात में कमी करने से टैरिफ से बचा जा सकता है, लेकिन यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जोखिम भरा हो सकता है। रूस भारत को रियायती दरों पर तेल बेचता है, जिसके कारण तेल की कीमतें स्थिर रहती हैं। यदि भारत रूस से खरीद बंद करता है, तो वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर भारतीय उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। तेल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि रूस से तेल आयात ने वैश्विक तेल की कीमतों को स्थिर रखने में मदद की है।
2. अमेरिका के साथ व्यापार समझौता: भारत और अमेरिका कई महीनों से व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। ट्रंप ने भारत से मांग की है कि वह अपने कृषि और डेयरी बाजारों को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले, लेकिन भारत ने इसे खारिज कर दिया है, क्योंकि ये क्षेत्र 45% से अधिक भारतीयों की आजीविका का आधार हैं। 25 अगस्त को नई दिल्ली में होने वाली अगली बैठक में भारत कुछ रियायतें, जैसे औद्योगिक सामानों पर शून्य टैरिफ या कारों और शराब पर टैरिफ में कमी, दे सकता है। हालांकि, कृषि क्षेत्र को खोलना राजनीतिक रूप से संवेदनशील है।
3. अन्य बाजारों की तलाश: भारत अपने निर्यात के लिए नए बाजार तलाश सकता है, जैसे यूरोपीय संघ, दक्षिण पूर्व एशिया या मध्य पूर्व। हालांकि, अमेरिका जैसे बड़े बाजार की जगह लेना आसान नहीं होगा। घरेलू खपत को बढ़ावा देना भी एक विकल्प हो सकता है, लेकिन यह तत्काल समाधान नहीं है।
4. जवाबी टैरिफ: भारत अमेरिकी सामानों, जैसे तेल, गैस, रसायन और एयरोस्पेस उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगा सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि भारत को कम से कम छह महीने तक जवाबी कार्रवाई से बचना चाहिए ताकि व्यापार वार्ताएं पटरी पर रहें।
5. कूटनीतिक दबाव: भारत रूस के साथ अपनी मजबूत कूटनीतिक साझेदारी का उपयोग कर सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल वर्तमान में मॉस्को में हैं और रूस-यूक्रेन शांति वार्ता में भारत की भूमिका पर चर्चा कर रहे हैं। भारत यह तर्क दे सकता है कि वह वैश्विक ऊर्जा स्थिरता में योगदान दे रहा है।
क्या भारत फिर से रूस और चीन के करीब जाएगा?
अब निगाहें इस महीने चीन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन पर हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति से भारत-रूस-चीन त्रिपक्षीय वार्ता की संभावनाएं फिर से जिंदा हो सकती हैं। हालांकि भारत का चीन-प्लस-वन मॉडल अभी भी निवेशकों के लिए आकर्षक है, लेकिन वियतनाम जैसे देशों से मिल रही प्रतिस्पर्धा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब सवाल यह भी है कि क्या भारत अपने निर्यातकों को बचाने के लिए सब्सिडी या विशेष पैकेज की घोषणा करेगा? अभी तक सरकार ने सीधे सब्सिडी देने से परहेज किया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि फायनेंसिंग और प्रमोशन योजनाएं नाकाफी होंगी।
क्या भारत करेगा जवाबी कार्रवाई?
अब तक भारत ने बदले की भावना से कोई कदम नहीं उठाया है, लेकिन ऐसा करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। बार्कलेज रिसर्च के अनुसार, “2019 में भारत ने अमेरिका के 28 उत्पादों पर टैरिफ लगाया था, जिसमें सेब और बादाम भी शामिल थे।” फिलहाल मोदी सरकार ने कहा है कि वह “राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी”। लेकिन इस फैसले ने अमेरिका के साथ उनके “मेगा पार्टनरशिप” को गंभीर परीक्षा में डाल दिया है।
भारत की रणनीति: शांत और संतुलित दृष्टिकोण
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह दबाव में नहीं झुकेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “किसानों, मछुआरों और डेयरी क्षेत्र के हित हमारी प्राथमिकता हैं। अगर मुझे इसके लिए व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े, तो मैं तैयार हूं।” पूर्व विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने ट्रम्प की नीति को “अस्थिर” बताया और इसे “सांप-सीढ़ी का खेल” करार दिया। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अमेरिका पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया, क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय संघ भी रूस से यूरेनियम, पैलेडियम और उर्वरक जैसे उत्पाद आयात करते हैं।
ट्रंप की यह नीति न केवल भारत, बल्कि अन्य रूसी तेल खरीदार देशों, जैसे चीन और तुर्की, के लिए भी एक चेतावनी है। ट्रंप ने रूस को 8 अगस्त तक यूक्रेन के साथ शांति समझौता करने की समय सीमा दी है, अन्यथा वह रूस पर नए प्रतिबंध और रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ लगा सकते हैं। यह नीति वैश्विक तेल की कीमतों को बढ़ा सकती है, जिसका असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा।