अफगान महिलाओं हो रहे अत्याचार
अफगानिस्तान के तालिबान में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार को लेकर संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार जांचकर्ता रिचर्ड बेनेट ने चिंता व्यक्त की. बेनेट ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को सौंपी एक रिपोर्ट में बताया कि तालिबान शासको ने महिलाओं और लड़कियों पर अत्याचार करने के लिए कानूनी और न्यायिक व्यवस्था को हथियारबंद कर लिया है. उन्होंने कहा कि यह मानवता के खिलाफ अपराध के बराबर है.
रिचर्ड बेनेट ने बताया कि 2021 में सत्ता हथियाने के बाद, तालिबान ने 2004 के संविधान में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानूनों को खत्म कर दिया. उन्होंने कहा कि इन कानूनों में बलात्कार, बाल विवाह और जबरन विवाह सहित महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे अपराध शामिल थे.
सभी न्यायाधीशों को किया बर्खास्त
बेनेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तालिबान ने पिछली अमेरिका समर्थित सरकार के सभी न्यायाधीशों को बर्खास्त कर दिया, जिनमें लगभग 270 महिलाएं भी शामिल थीं. इन न्यायधीशों की जगह ऐसे लोगों को न्यायाधीश नियुक्त किया जो कट्टर इस्लामी विचारों को मानते थे. उन्हें कानून या न्याय की कोई समझ नहीं है. वह तालिबान द्वारा जारी किए गए आदेशों के आधार पर फैसले सुनाते हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा तालिबान ने कानून प्रवर्तन और जांच एजेंसियों पर पूरा कंट्रोल कर लिया है और पिछली सरकार के लिए काम करने वाले सभी अफगान व्यक्तियों को उनके पद से हटा दिया है.
कक्षा 6 के बाद लड़कियां नहीं कर सकती पढ़ाई
बेनेट ने कहा कि जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, तब से महिलाओं और लड़कियों की स्थिति और भी दयनीय हो गई है और इसकी व्यापक रूप से भी काफी निंदा की गई. रिपोर्ट में बताया गया कि तालिबान नेताओं ने छठी कक्षा के बाद महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर रोक लगा दी है और रोजगार पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. इतना ही नहीं महिलाओं को पार्क, जिम और हेयरड्रेसर सहित कई सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोक दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस नए कानून महिलाओं की आवाज और घर के बाहर बिना चेहरा ढके जाने पर भी प्रतिबंध है. बेनेट ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों पर अपने प्रतिबंधों के कारण तालिबान पश्चिम से अलग-थलग है और उसे केवल रूस ने ही मान्यता दी है.
‘शरिया कानून के तहत कर रहे हैं काम’
बेनेट ने बताया कि तालिबान अपने दृष्टिकोण का बचाव करने के लिए यह दावा करते हैं कि वे इस्लामी शरिया कानून लागू कर रहे हैं. लेकिन इस्लामी विद्वानों और अन्य लोगों का कहना है कि उनकी कानून अन्य मुस्लिम-बहुल देशों में अलग है और इस्लामी शिक्षाओं का पालन नहीं करती. उनका कहना है कि महिलाओं के कानूनी अधिकारों की रक्षा प्राथमिकता है.
महिलाओं के पास नहीं है कोई अधिकार
बेनेट ने बताया कि तालिबान में महिलाओं के पास कोई भी अधिकार नहीं हैं. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि तालिबान में कोई महिला न्यायाधीश या वकील नहीं हैं. पुलिस और अन्य संस्थानों में भी कोई महिला अधिकारी नहीं है. इसका परिणाम यह होता है कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की व्यापक रूप से कोई रिपोर्टिंग ही नहीं हो पाती है. उन्होंने कहा कि तालिबान की यह अनिवार्यता है कि अगर कोई महिला शिकायत दर्ज करवाती है तो उसके साथ एक पुरुष होना अनिवार्य है, ये कई मायनों में बाधाएं पैदा करती हैं.
अदालत महिलाओं की शिकायत कर देती है रद्द
बेनेट ने बताया कि तालिबान की अदालतें अक्सर महिलाओं द्वारा की गई शिकायतों को खारिज कर देती है और तलाक, बच्चों की कस्टडी और लिंग आधारित हिंसा से संबंधित मामलों को स्वीकार करने में आनाकानी करती हैं. बेनेट ने कहा कि इन बाधाओं का सामना करते हुए, महिलाएं औपचारिक जिरगा और शूरा जैसी पारंपरिक तरीकों की ओर जा रही है, इसमें गांव या समुदायों में बुजुर्गों की परिषदें होती हैं, जो आपसी झगड़ों को सुलझाती हैं और कुछ महिलाएं धार्मिक नेता या परिवार के बुजुर्गों से मदद मांगती है. बेनेट का कहना है लेकिन ये सारा सिस्टम पुरुष-प्रधान हैं, तो स्वाभाविक है कि महिलाओं या लड़कियों के अधिकारों का हनन होगा और इंसाफ मिलने के चांस बहुत कम हो जाते है.
आईसीजे में लाने का किया अनुरोध
बेनेट ने अपील करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंच न्याय दिलाने की बड़ी उम्मीद है. उन्होंने बताया कि 23 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ने तालिबान के दो वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ महिलाओं के साथ लैंगिंग आधार पर उत्पीड़न करने के मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आग्रह किया. उन्होंने सभी देशों अपील करते हुए यह भी कहा कि अफगानिस्तान को सबसे बड़ी अदालत आईसीजे में ले जाने में समर्थन करें. उन्होंने कहा कि तालिबान ने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव खत्म करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन किया है.