होम देश How will donald Trump new tariff policy affect Indian economy डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसा होगा असर?, India News in Hindi

How will donald Trump new tariff policy affect Indian economy डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसा होगा असर?, India News in Hindi

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अगर भारत और अमेरिका जल्द समझौता नहीं करते तो भारतीय निर्यातक भारी नुकसान का सामना कर सकते हैं। यह टैरिफ नीति अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में नए तनाव की शुरुआत बन सकती है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने के आदेश से भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में तनाव गहराने की आशंका है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह फैसला लागू होता है और लंबे समय तक प्रभावी रहता है तो इससे भारत के निर्यात क्षेत्र और व्यापक अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा। यह टैरिफ भारत के रूस से कच्चे तेल की खरीद के चलते लगाया गया है, जबकि चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, इन टैरिफों से अछूती हैं> इससे इस निर्णय को राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है।

ट्रंप द्वारा जारी कार्यकारी आदेश में कहा गया है कि, “भारत सरकार सीधे या परोक्ष रूप से रूस से तेल का आयात कर रही है। इसलिए, अमेरिकी सीमा शुल्क क्षेत्र में भारत से आने वाले उत्पादों पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा।” यह शुल्क पहले से लागू 25% आयात शुल्क के अलावा होगा। यानी कुल टैरिफ 50% हो जाएगा। आदेश के अनुसार, 7 अगस्त से मूल शुल्क प्रभावी होगा। 27 अगस्त से अतिरिक्त शुल्क लागू होगा।

किन क्षेत्रों पर पड़ेगा असर?

इस टैरिफ से भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्र जैसे कि टेक्सटाइल व परिधान, रत्न व आभूषण, सीफूड (झींगे आदि), चमड़ा के जूते, रासायनिक पदार्थ और इलेक्ट्रिकल व मैकेनिकल मशीनरी बुरी तरह प्रभावित होंगे। हालांकि, कुछ क्षेत्रों को छूट दी गई है जैसे कि दवाएं, ऊर्जा उत्पाद जैसे कि कच्चा तेल, गैस, कोयला, बिजली के अलावा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण में शामिल कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टीवी आदि।

जानकार मानते हैं कि लंबे समय के बाद अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी, जिससे अमेरिकी में रह रहे लोगों का जेब खर्च भी बढ़ेगा। भारत से अमेरिका को सर्वाधिक निर्यात करने वाले शीर्ष तीन उद्योग इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण तथा फार्मास्यूटिकल्स हैं, जिन पर अब सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।

मौजूदा समय में अमेरिका भारत का सबसे पहला निर्यात गंतव्य स्थल है। चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में भारत ने अमेरिका को 25.52 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है, जो वित्तीय वर्ष 2024-25 की समान तिमाही में 20.89 बिलियन डॉलर था। जबकि अमेरिका से 12.86 अरब डॉलर का आयात हुआ है जो बीते वित्तीय वर्ष की समान तिमाही में 11.52 बिलियन डॉलर का रहा था।

उधर, भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक है, जो दुनिया की कपास जरूरतों का 23 फीसदी से ज़्यादा पूरा करता है। यही कारण है कि देश का कपड़ा उद्योग मजबूती से फल-फूल रहा है। भारत में सूती धागे जैसे अत्यधिक मांग वाले उत्पाद बनते हैं। धागों के अलावा कई किस्म के कपड़े और गार्मेन्ट्स की भारी मांग है। अमेरिका को निर्यात होने वाले भारतीय सामानों में इसका सातवां स्थान है जिसका कुल मूल्य करीब 2.64 अमेरिकी अरब डॉलर है।

कृषि क्षेत्र का निर्यात होगा प्रभावित

विभिन्न बासमती किस्म के चावल, मुख्य रूप से रॉयल शेफ सीक्रेट, दावत सुपर और पारंपरिक बासमती, संयुक्त राज्य अमेरिका को भेजे जाते हैं। बासमती चावल, भैंस के मांस के बाद सर्वाधिक कृषि निर्यात किए जाने वाला कृषि उत्पाद समुद्री खाद्य है। भारत से अमेरिका हर साल 3,00,000 से 3,50,000 टन बासमती चावल खरीदता है। इस क्रम में अन्य वस्तुएं जैसे तिलहन, अरंडी का तेल और प्रसंस्कृत फल, मसाले और काजू का निर्यात भी प्रभावित हो सकता है।

भारत की तीखी प्रतिक्रिया

भारत ने इस कदम को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और एकतरफा दंडात्मक बताया है। विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा, “हम पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत की ऊर्जा खरीद नीतियां बाजार की स्थितियों और देश के 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं पर आधारित हैं। यह चिंताजनक है कि अमेरिका ने केवल भारत को निशाना बनाया, जबकि अन्य देश जो राष्ट्रीय हित में रूस से खरीदारी कर रहे हैं उन्हें बख्श दिया गया है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा।”

आर्थिक असर कितना गंभीर हो सकता है?

भारतीय निर्यात महासंघ के डीजी अजय सहाय ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, “अमेरिका का यह कदम बेहद चौंकाने वाला है। इससे अमेरिका को भारत के कुल निर्यात का 55% हिस्सा प्रभावित होगा।” वहीं, HDFC बैंक की अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता के ने कहा, “अगर कोई समाधान नहीं निकलता तो हमें वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी अनुमान को 6% से नीचे लाना होगा।”

व्यापार समझौते की क्यों इतनी जल्दबाजी?

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप इस निर्णय के जरिए भारत पर द्विपक्षीय व्यापार समझौते को जल्द अंतिम रूप देने का दबाव बना रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत औद्योगिक वस्तुओं, ई-वाहन, कृषि उत्पाद, डेयरी, जीएम फसलों के साथ-साथ शराब जैसे क्षेत्रों में आयात शुल्क कम करे।

क्या होगा आगे?

अगर भारत और अमेरिका जल्द समझौता नहीं करते तो भारतीय निर्यातक भारी नुकसान का सामना कर सकते हैं। यह टैरिफ नीति अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में नए तनाव की शुरुआत बन सकती है। भारत के लिए यह राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौती भी साबित हो सकती है।

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