प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा, ‘भारत जैसे विकासशील देश में ऐसी प्रथा की अनुमति देना, जो मानव की गरिमा की मूल अवधारणा के खिलाफ है।
उच्चतम न्यायालय ने देश की आजादी के 78 साल बाद भी हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के इस्तेमाल पर निराशा जताते हुए बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को माथेरान में छह महीने के भीतर इस ‘अमानवीय’ प्रथा को बंद करने और इसकी जगह ई-रिक्शा चलाए जाने का निर्देश दिया। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह माथेरान में स्थानीय लोगों को ई-रिक्शा किराए पर देने की संभावना तलाशे, जैसा कि गुजरात के अधिकारियों ने केवडिया में किया था।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने कहा, ‘भारत जैसे विकासशील देश में ऐसी प्रथा की अनुमति देना, जो मानव की गरिमा की मूल अवधारणा के खिलाफ है, सामाजिक और आर्थिक न्याय के संवैधानिक वादों को कमतर करता है।’ इसके साथ ही पीठ ने माथेरान में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया।
माथेरान एक पर्वतीय पर्यटन स्थल है जहां काफी संख्या में पर्यटक जाते हैं। गुजरात के केवडिया में सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा नर्मदा नदी के साधु बेट द्वीप पर स्थित है और अधिकारियों ने स्थानीय लोगों को ई-रिक्शा किराये पर दिए हैं। पीठ ने आजादी के 78 साल और संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा के इस्तेमाल की प्रथा की निंदा की और इसे ‘‘अमानवीय’’ करार दिया।
शीर्ष अदालत ने ‘‘आजाद रिक्शा चालक संघ बनाम पंजाब राज्य’’ मामले में 45 साल पुराने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि साइकिल-रिक्शा संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक न्याय के संकल्प के अनुरूप नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि ‘आजाद रिक्शा चालक संघ’ मामले में इस अदालत द्वारा की गई टिप्पणी के 45 साल बाद भी माथेरान में एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को खींचने की प्रथा अब भी जारी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या यह प्रथा सामाजिक और आर्थिक समानता तथा सामाजिक और आर्थिक न्याय के संवैधानिक वादे के अनुरूप है। इसका उत्तर ‘ना’ ही होगा।’’ पीठ ने कहा कि गरीबी अक्सर लोगों को ऐसे काम करने के लिए मजबूर करती है, लेकिन आर्थिक मजबूरी मानव श्रम के अपमान को उचित नहीं ठहरा सकती।
‘‘पीपुल्स ऑफ इंडिया फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’’ मामले में 1982 के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि कार्य की शोषणकारी स्थितियां अनुच्छेद 23 के तहत जबरन श्रम के समान हैं।
माथेरान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि यह पारिस्थितकी रूप से संवेदनशील हिल स्टेशन है जहां आपातकालीन वाहनों को छोड़कर कार या मोटरगाड़ी के उपयोग पर प्रतिबंध है तथा यह लंबे समय से पर्यटकों और सामान के परिवहन के लिए हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा पर निर्भर है।
हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा को छह महीने के भीतर चरणबद्ध तरीके से हटाने का निर्देश देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने दस्तूरी नाके से शिवाजी प्रतिमा तक कंक्रीट के ब्लॉक बिछाने का आदेश दिया।
पीठ ने राज्य सरकार को आगाह किया कि वह धन की कमी का बहाना न बनाए क्योंकि इसे लागू न करने की बात स्वीकार नहीं की जाएगी। न्यायालय ने माथेरान कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित माथेरान निगरानी समिति को वास्तविक रिक्शा चालकों की पहचान करने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, ‘‘जमीनी हकीकत पर विचार करने के बाद समिति द्वारा आवश्यक ई-रिक्शा की संख्या भी तय की जाए।’’