दिल्ली का लालकिला मुगलों के साथ आजादी से जुड़ी कई कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए है.
दिल्ली का लाल किला केवल मुगल शासन की आन-बान और शान नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति की अनमोल धरोहर है. यह भारत की आजादी की कहानियां भी अपने सीने में समाए है तो स्वाधीनता के प्रतीक स्वाधीनता दिवस की शान का गवाह भी है. स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर ही तिरंगा गर्व से फहराया जाता है. आइए जान लेते हैं कि लाल किला आजादी की कहानियों का हिस्सा कैसे बन गया?
मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं सदी में लाल किले का निर्माण कराया था. इसका पुराना नाम किला-ए-मुबारक था. करीब एक दशक में बनाया गया यह किला बादशाह की शक्ति और भव्यता का प्रतीक था. मुगल वास्तुकला के इस अद्वितीय नमूने में फारसी, तैमूरी के साथ ही हिन्दू शैलियों का मिश्रण दिखता है.
सबसे अहम बात तो यह है कि इस किले को मूलत: सफेद रंग का बनवाया गया था. तब इस किले की दीवारें और कई अन्य हिस्से सफेद चूने और संगमरमर से निर्मित किए गए थे, जिससे यह चमकदार सफेद किले के रूप में सामने आता था. पांचवें मुगल सम्राट शाहजहां ने जब शाहजहानाबाद को अपनी राजधानी बनाया, तब इस किले को मुगलिया महल परिसर के रूप में बसाया था.
1857 के विद्रोह का गवाह है दिल्ली का यह किला
साल 1857 में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारतीय सैनिकों में असंतोष फैला और इसके बाद प्रथम स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत हुई तो अंतत: इस विद्रोह का केंद्र शाहजहां का यह किला ही बना था. क्रांतिकारियों ने आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से इसी किले में समर्थन मांगा था. दरअसल, भारतीय सैनिकों की बगावत को देखते हुए अंग्रेज सैनिक दिल्ली की तरफ भागने लगे थे. पीछे-पीछे विद्रोही भी उनके पीछे दिल्ली पहुंच गए.

क्रांतिकारियों ने आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से इसी किले में समर्थन मांगा था.
दिल्ली पहुंचे विद्रोहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर से विद्रोह का नेतृत्व करने का आग्रह किया. साथ ही उनको अपना बादशाह घोषित कर दिया. अंतत: बहादुरशाह जफर ने उनके अनुरोध को मान लिया और खुद को अंग्रेजों से स्वतंत्र घोषित कर दिया. हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध में विद्रोहियों की हार हुई और दिल्ली पर वापस कंपनी का कब्जा हो गया.
अंग्रेजों ने किले को नष्ट करने और लूटपाट की कोशिश की. बहादुर शाह जफर भाग कर हुमायूं के मकबरे में चले गए. फिर सरेंडर कर दिया. अंग्रेजों ने मुकदमा चलाकर उनको दोषी घोषित कर बैलगाड़ी पर बैठाकर बर्मा भेज दिया. उनके दो बेटों और एक पोते की हत्या कर दी. इसके बावजूद यह किला भारतीयों की एकता का प्रतीक बन गया.

अंग्रेजों ने अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए तमाम नरसंहार किए. फोटो: Getty Images
अंग्रेजों ने कराई मरम्मत और बन गया लाल किला
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों का किले पर कब्जा हुआ तो उन्होंने अपनी तरह से इसकी देखरेख की. समय बीतने पर सफेद चूने की दीवारें खराब होने लगी थीं. इसके कारण 19वीं-20वीं सदी में अंग्रेजों ने इस किले की मरम्मत कराई. किले की दीवारों को लाल रंग से रंगाया. इससे किला संरक्षित हुआ और लाल बलुआ पत्थर लगाने के कारण यह लाल किला के नाम से प्रसिद्ध होता गया.
आजादी के बाद पहली बार फहराया गया था तिरंगा
अंग्रेजों से लंबी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को देश जब आजाद हुआ तो लाल किला एक बार फिर भारत की आजादी और गौरव का प्रतीक बन गया. आजादी की घोषणा के बाद इसी लाल किले की प्राचीर से लंबे समय बाद अंग्रेजों का झंडा उतारा गया था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार इसी लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया और इसके साथ ही भारत की स्वतंत्रता की शुरुआत हुई थी. तभी से इसे स्वाधीनता की कहानियों और सत्ता के केंद्र के रूप में देखा जाने लगा.
तब से हर साल 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से ही तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं. अपनी देश की उपलब्धियों का बखान करते हैं और भविष्य का लेखा-जोखा देश के सामने रखते हैं. यहीं पर स्वाधीनता दिवस से जुड़े रंगारंग समारोह होते हैं.
देश की स्वाधीनता और संप्रुभता का प्रतीक
अब लाल किला केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं रखता है, बल्कि विशाल प्राचीरें और दीवान-ए-आम इस किले को राष्ट्रीय समारोहों के लिए उपयुक्त बनाते हैं. इसीलिए गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति भवन से शुरू होकर परेड लाल किले पर ही जाकर समाप्त होती है. वर्तमान में लाल किला भारतीय स्वाधीनता की कहानियों का वर्णन करने के साथ ही देश का लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है. आज यह देश की स्वाधीनता और संप्रभुता का प्रतीक बन गया है. साल 2007 में यूनेस्को ने इसे अपने विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कर लिया.
पर्यटकों के आकर्षण का है केंद्र
लाल किले के दरबार हॉल को दीवान-ए-आम कहा जाता था, जहां मुगल बादशाह अपने शासन काल में जनता से मुलाकात करते थे और सार्वजनिक मुद्दों पर चर्चा करते थे. इसके अलावा दीवान-ए-खास निजी दरबार हॉल था, जहां पर बादशाह खास मेहमानों और दरबारियों से मुलाकात करते थे. शाही महिलाओं के लिए इसी किले में एक महल था, जिसे रंग महल कहा जाता था.
मुगल वास्तुकला की चारबाग शैली में बसाया गया लाल किले का बगीचा हयात बख्श बाग नाम से जाना जाता था. 17वीं शताब्दी में निर्मित सफेद संगमरमर की मस्जिद भी किले में है, जिसे मोती मस्जिद कहा जाता था. आज ये सभी पर्यकों के आकर्षण का केंद्र हैं. इनके अलावा इस किले में कई संग्रहालय बनाए गए हैं, जिनमें ऐतिहासिक कलाकृतियां, हथियार, चित्र और अन्य वस्तुएं रखी गई हैं.
इन संग्रहालयों को सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय, याद-ए-जलियां और 1857 के स्वाधीनता संग्राम से जुड़ा संग्रहालय हैं. अब तो हर शाम लाल किले में लाइट एंड साउंड शो होता है, जिसमें लाल किले का इतिहास और वास्तुकला दिखाई जाती है.
यह भी पढ़ें: भारत को टैरिफ की धमकी देने वाला अमेरिका कितने देशों से तेल खरीदता है?