होम राजनीति Tej Pratap Yadav News: बागी तेवर, खास रणनीति और नई पारी… कहीं उपेंद्र कुशवाहा की राह पर तो नहीं बढ़ रहे तेज प्रताप यादव?

Tej Pratap Yadav News: बागी तेवर, खास रणनीति और नई पारी… कहीं उपेंद्र कुशवाहा की राह पर तो नहीं बढ़ रहे तेज प्रताप यादव?

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पटना. बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने नया सियासी दांव खेला है. राजद से छह साल के निकाले जाने के बाद तेज प्रताप ने ‘टीम तेज प्रताप’ के बैनर तले पांच पार्टियों-विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP), भोजपुरिया जन मोर्चा, प्रगतिशील जनता पार्टी, वाजिब अधिकार पार्टी और संयुक्त किसान विकास पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान किया है. उनके इस कदम ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है. इसके साथ ही उनके एक और कदम ने तब खलबली मचा दी जब उन्होंने राजद और कांग्रेस को भी गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया और साथ ही यह भी कह दिया कि, जिसको जो सोचना है सोचे. जानकार कहते हैं कि तेज प्रताप का यह बयान उनके भाई तेजस्वी यादव और राजद के प्रति उनकी नाराजगी को बता रहा है. लेकिन, यहां बड़ा सवाल यह है कि पार्टी और परिवार से दूर तेज प्रताप यादव की छटपटाहट दिख रही है, लेकिन क्या वह सही फैसला कर रहे हैं? कहीं कुशवाहा वाला हाल न हो जाए!

उपेंद्र कुशवाहा की राह पर तेज प्रताप यादव?

बीते विधानसभा चुनाव में कुछ-कुछ इसी तर्ज पर उपेंद्र कुशवाहा ने नया गठबंधन बनाया था. तब उन्होंने दावा किया था कि वह बिहार सीएम बनेंगे, लेकिन उनके गठबंधन की करारी हार हुई. ऐसा लगता है कि इसी तरह कहीं तेजप्रताप की बनती जा रही है. तेज प्रताप यादव ने भी टीम तेज प्रताप का निषाद नेता की नई पार्टी से गठबंधन का ऐलान किया है. उसने राजद-कांग्रेस और अन्य पार्टियों को भी गठबंधन में आने का ऑफर दिया है. उन्होंने यह भी कहा है कि जिसको जो सोचना है सोचे. (उनका इशारा आरजेडी और तेजस्वी यादव की ओर था) ऐसे में सवाल यह कि क्या तेज प्रताप यादव की दिशा सही है?
टीम तेज प्रताप यादव के साथ प्रमुख पांच पार्टियों का गठबंधन

कुशवाहा की ‘फेल रणनीति’ और सियासी सवाल

दरअसल, तेज प्रताप यादव का यह कदम उपेंद्र कुशवाहा की सियासी रणनीति की याद दिलाता है. तब कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के नेतृत्व में बसपा और AIMIM के साथ ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (GDSF) बनाया था और मुख्यमंत्री पद का दावा किया था. हालांकि, उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली और कुशवाहा खुद अपनी सीट हार गए.  GDSF को केवल 1.24% वोट मिले, जबकि AIMIM ने पांच सीटें जीतीं. कुशवाहा ने हार स्वीकार करते हुए कहा, हम चुनाव हारे हैं, हिम्मत नहीं.

तेज प्रताप यादव की जोखिम भरी रणनीति!

इसके आगे उपेंद्र कुशवाहा ने 2023 में राष्ट्रीय लोक मोर्चा बनाकर नीतीश कुमार के जदयू से अलग राह चुनी थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट से एनडीए उम्मीदवार के तौर पर लड़े. हालांकि, पवन सिंह के कारण त्रिकोणीय मुकाबले में हार गए. दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने भी मुख्यमंत्री बनने का दावा किया था, लेकिन उनकी लगातार हार ने उनकी सियासी ताकत को कमजोर कर दिया. ऐसे में जानकारों की नजर में तेज प्रताप की नई रणनीति भी इसी तरह जोखिम भरी दिख रही है, क्योंकि राजद के बिना उनकी सियासी जमीन कमजोर दिख रही है.

‘टीम तेज प्रताप’ और निषाद समुदाय की ताकत

तेज प्रताप ने निषाद नेता प्रदीप निषाद की VVIP पार्टी से गठजोड़ कर निषाद समुदाय को लुभाने की कोशिश की है. प्रदीप निषाद पहले मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के साथ थे, लेकिन अब उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई है. बता दें कि बिहार में निषाद समुदाय की आबादी लगभग 14% है जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है. तेज प्रताप यादव का यह गठबंधन निषाद वोटों को एकजुट करने की रणनीति हो सकती है, लेकिन तथ्य तो यह है कि मुकेश सहनी की VIP पहले से ही इस समुदाय में मजबूत पकड़ रखती है. ऐसे में तेज प्रताप यादव का मुकेश सहनी पर सियासी हमला शुरू हो गया है और ‘बहरूपिया’ वाला तंज भी इसी ताकत को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है.

परिवार और पार्टी से दूरी, तेज प्रताप की छटपटाहट!

जानकार कहते हैं कि राजद से निष्कासन और परिवार से दूरी ने तेज प्रताप को सियासी तौर पर अकेला कर दिया है. उनकी ‘टीम तेज प्रताप’ और महुआ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा उनके बगावती तेवर दिखाती है.  हालांकि, वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में देखने की बात कहकर परिवार के प्रति निष्ठा भी जताते हैं. उनका यह दोहरा रवैया उनकी अनिश्चित राजनीतिक रणनीति को जाहिर करता है. कथित प्रेमिका अनुष्का यादव प्रकरण और सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता को भी उनकी छवि बचाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि दरअसल, तेज प्रताप की यह छटपटाहट उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश है, लेकिन सियासी रूप से सफल होने में संगठनात्मक कमजोरी उनकी राह में रोड़ा बन सकती है.

तेज प्रताप का नया गठबंधन, सियासी बगावत या उपेंद्र कुशवाहा जैसी हार की राह?

क्या है तेज प्रताप यादव की असल चुनौती?

तेज प्रताप यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजद की मजबूत संगठनात्मक संरचना और तेजस्वी यादव की लोकप्रियता है. राजद का कोर वोट बैंक- यादव, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग तेजस्वी यादव के साथ आज भी मजबूती से जुड़ा दिखता है. वहीं, तेज प्रताप यादव का नया गठबंधन छोटे दलों के साथ है जिनका बिहार में बहुत ही सीमित प्रभाव है. इसके अतिरिक्त, महुआ में राजद के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन के खिलाफ उनके बागी तेवर आरजेडी के भीतर टेशन बढ़ा सकती है. अगर तेज प्रताप निर्दलीय या नई पार्टी से चुनाव लड़ते हैं तो वोटों का बंटवारा राजद को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन उनकी जीत की संभावना को लेकर अभी भी कई सवाल हैं.

तेज प्रताप यादव का क्या होगा भविष्य?

राजनीति के जानकार कहते हैं कि तेज प्रताप की सियासी राह अनिश्चित है. अगर तेजस्वी यादव 2025 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री बनते हैं तो परिवार में सुलह की गुंजाइश बन सकती है. लेकिन, अगर तेज प्रताप की बगावत तेज होती है तो वे उपेंद्र कुशवाहा की तरह हाशिए पर जा सकते हैं. राजनीति के जानकारों का मानना है कि बिना मजबूत संगठन और स्पष्ट रणनीति के तेज प्रताप का यह दांव जोखिम भरा है. उपेंद्र कुशवाहा की तरह, तेज प्रताप की राह भी अनिश्चित दिख रही है.  बहरहाल, बिहार की जनता और राजद कार्यकर्ता उनके इस नये तेवर, नई रणनीति और इस नई पारी को कैसे लेते हैं, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है.

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