होम बिज़नेस why is India not bowing down to Trump’s tariffs? Top 5 factors that stock market investors should know ट्रंप के टैरिफ से क्यों नहीं झुक रहा भारत? टॉप-5 फैक्टर्स जो शेयर मार्केट इन्वेस्टर्स को पता होना चाहिए, Business Hindi News

why is India not bowing down to Trump’s tariffs? Top 5 factors that stock market investors should know ट्रंप के टैरिफ से क्यों नहीं झुक रहा भारत? टॉप-5 फैक्टर्स जो शेयर मार्केट इन्वेस्टर्स को पता होना चाहिए, Business Hindi News

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ट्रंप की टैरिफ नीति भारत को डराने में नाकाम रही है। भारत ने तथ्यों के साथ पश्चिम के दोहरे मापदंड उजागर किए हैं और रूसी तेल खरीदना जारी रखने का संकल्प दिखाया है। आने वाले दिनों में यह टकराव भू-राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ लगाया था, लेकिन 4 अगस्त को उन्होंने फिर हमला बोल दिया। ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में ट्रंप ने कहा कि भारत “रूसी तेल की भारी मात्रा खरीदकर उसे बाजार में बेच रहा है और मुनाफा कमा रहा है”।

उन्होंने आरोप लगाया कि भारत को यूक्रेन में मरने वालों की कोई परवाह नहीं। इसलिए, वे भारत पर लगने वाले टैरिफ को “जल्द ही बहुत ज्यादा बढ़ा देंगे।” ट्रंप ने सीएनबीसी को दिए इंटरव्यू में भी इसकी पुष्टि की, “हमने भारत के लिए 25% टैरिफ तय किया था, लेकिन अगले 24 घंटों में मैं इसे काफी बढ़ा दूंगा।”

भारत का जवाब: “दोहरे मापदंड ठहराए”

लाइव मिंट के मुताबिक भारत ने ट्रंप के आरोपों को “नाजायज और अतार्किक” करार देते हुए जोरदार जवाब दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि भारत ने रूसी तेल तभी खरीदना शुरू किया जब यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप ने पारंपरिक तेल आपूर्ति अपनी ओर मोड़ ली।

उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका ने खुद 2022 में भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था, ताकि वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें स्थिर रहें। भारत ने यूरोपीय संघ और अमेरिका पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा…

यूरोपीय संघ ने 2024 में रूस के साथ 67.5 अरब यूरो का व्यापार किया, जिसमें रूसी गैस की रिकॉर्ड 16.5 मिलियन टन आयात भी शामिल है।

अमेरिका आज भी रूस से यूरेनियम (परमाणु उद्योग), पैलेडियम (इलेक्ट्रिक वाहन) और रसायन आयात कर रहा है।

तेल व्यापार की असली तस्वीर

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, और रूस उसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। 2022 से पहले भारत रूसी तेल का सिर्फ 2.5% ही खरीदता था, लेकिन अब 35-40% (लगभग 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन) खरीद रहा है। भारत के पास इसके तीन ठोस कारण हैं…

1. सस्ता तेल: पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद रूस ने भारी छूट दी, जिससे भारत को सालाना अरबों डॉलर बचे।

2. वैश्विक स्थिरता: भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अगर भारत ने रूसी तेल नहीं खरीदा, तो तेल की कीमतें 2022 की तरह 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती थीं।

3. अमेरिकी मंजूरी: पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेट्टी ने 2024 में स्वीकार किया था,”हम चाहते थे कि कोई रूसी तेल खरीदे, ताकि वैश्विक कीमतें न बढ़ें… भारत ने ऐसा किया”।

आर्थिक असर: बाजारों में हलचल

ट्रंप की धमकियों से भारतीय शेयर बाजार और रुपया प्रभावित हुआ। सेंसेक्स 0.38% गिरा, जबकि रुपया डॉलर के मुकाबले 0.17% लुढ़का। अगर टैरिफ बढ़ता है, तो भारत के निर्यात पर गंभीर असर पड़ेगा। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है (2024 में 87 अरब डॉलर)। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जैसे अमेरिकी टेक कंपनियों (गूगल, मेटा) पर ‘डिजिटल टैक्स’ लगाना।

भारत क्यों नहीं झुकेगा?

1. रणनीतिक स्वायत्तता: भारत रूस के साथ अपने “पुराने और विश्वसनीय रिश्ते” को नहीं तोड़ेगा। रक्षा सहयोग (जैसे लड़ाकू विमानों का तकनीकी हस्तांतरण) और अब नैफ्था (रसायन उद्योग के लिए जरूरी) का आयात इस रिश्ते को और मजबूत करता है।

2. किसानों का हित: अमेरिका चाहता है कि भारत कृषि क्षेत्र में टैरिफ कम करे, लेकिन भारत इसे “आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा” मानता है। देश की 50% आबादी खेती पर निर्भर है, और विदेशी कंपनियों का प्रवेश छोटे किसानों को बर्बाद कर सकता है।

3. यूरोप का रवैया: यूरोपीय संघ ने हाल ही में भारतीय तेल रिफाइनरी नयारा पर प्रतिबंध लगाए, जिससे व्यापार में 20 अरब डॉलर का नुकसान होने का अंदेशा है। भारत इसे “गोलपोस्ट बदलना” मानता है।

आगे की राह: कूटनीति या टकराव?

दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता अटकी हुई है, और भारत के पूर्व वित्त सचिव सुभाष गर्ग के अनुसार, “समझौते की संभावना बहुत कम है”। हालांकि, कूटनीति के रास्ते भी खुले हैं।”

रूस के साथ संपर्क: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर जल्द ही रूस दौरे पर जा सकते हैं।

अमेरिकी वार्ता: अगस्त में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भारत आ सकता है, जहां कृषि और दवाओं जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सीमित समझौता हो सकता है।

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