होम विदेश हो जाए हिरोशिमा जैसा अटैक, फिर भी इस देश के लोगों पर नहीं आएगी रत्ती भर आंच

हो जाए हिरोशिमा जैसा अटैक, फिर भी इस देश के लोगों पर नहीं आएगी रत्ती भर आंच

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फाइल फोटो

हिरोशिमा एक ऐसी घटना जिसके नाम से ही कई लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और जहन में एक विनाश की तस्वीर बन जाती है. आज हिरोशिमा में अमेरिका की ओर से परमाणु बम गिराए जाने को 79 साल हो गए हैं. बता दें, 1945 के अंत तक हिरोशिमा में परमाणु बमबारी के परिणामस्वरूप लगभग 1,40,000 लोग मारे गए थे. International Campaign to Abolish Nuclear Weapons (परमाणु हथियारों को खत्म करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान) के मुताबिक इस संख्या में विस्फोट में तत्काल मारे गए लोग के साथ-साथ बाद में घायलों के संपर्क में आने से मरने वाले भी शामिल हैं.

इस हादसे के बाद से दुनिया भर के देशों ने कई समझौते किए और तय किया कि आगे ऐसी कोई घटना न हो. साथ ही कई देश यह सुनिश्चित करने में लग गए कि अगर हमारे देश पर कोई परमाणु हमला होता है, तो नागरिकों की जान कैसे बचानी है. इस कड़ी में कई देशों ने अपने यहां बंकर्स बनाने का काम शुरू किया, ताकि ऐसी किसी भी स्थिति में नागरिकों की जान बचाई जा सके.

आज दुनिया भर में कई देशों के पास ऐसे बंकर हैं, जिन पर परमाणु बमों का असर नहीं होगा, लेकिन इस रेस में स्विट्जरलैंड सबसे आगे है. कोल्ड वॉर के बाद से ही स्विट्जरलैंड ने अंडर ग्राउंड बंकरों और उपकरणों के लिए एक मजबूत प्रतिष्ठा हासिल की है. जिसने कर्नल गद्दाफी और सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाहों का भी ध्यान अपनी और खींचा है. नीदरलैंड के पास 3 लाख से ज्यादा बंकर है, जो परमाणु हमले में भी नहीं टूटने वाले हैं. यहां हर शख्स के लिए बंकर में एक सीट सुरक्षित की गई है.

बंकर एक कानूनी अधिकार

स्विट्जरलैंड के कानून के मुताबिक हर शख्स को बंकर का अधिकार है. अगर ऐसा कहें कि हर शख्स के लिए एक वर्ग मीटर बंकर में जगह तय है, तो गलत नहीं होगा. यह दुनिया का एकमात्र देश है जिसके पास ऐसा कानून है, जिसे 1962 में लागू किया गया था. हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी के बाद भविष्य के परमाणु खतरों और सबसे बढ़कर, शीत युद्ध के सालों की अनिश्चितता से प्रेरित हो कर यहां की सरकार ने 1963 में संघीय नागरिक सुरक्षा कार्यालय की स्थापना की, जिसका काम नागरिक सुरक्षा आश्रयों या बंकरों के निर्माण के दायित्व को लागू करना है.

यूक्रेन युद्ध के बाद स्विट्जरलैंड

रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान स्विट्जरलैंड की इस नीति और शांदार बंकर इंफ्रा पर गया है. क्योंकि रूस की ओर से पूरे यूरोप को एक बड़ी जंग का खतरा खड़ा हो गया है. पिछले कुछ सालों में, कुछ तानाशाहों ने स्विस कंपनियों से अपने हवाई हमले के ठिकानों के निर्माण या उपकरणों के लिए अनुरोध भी किया है.

2010 में लीबिया में जनांदोलन के दौरान, अल-जजीरा टीवी चैनल ने प्रदर्शनकारियों का अल-बैदा में कर्नल गद्दाफी के एक विला में पीछा किया, जहां उन्होंने एक बंकर को देखा, जिसमें वेंटिलेशन सिस्टम पूरी तरह से एक स्विस कंपनी की ओर से लगाया गया था. स्विस कंपनी आज दुनिया भर में अपने बंकरों से जुड़ी सामग्री को एक्सपोर्ट कर रही हैं.

स्विस सरकार ने बंकरों में किया बड़ा निवेश

1962 से स्विट्जरलैंड में परमाणु बंकरों के निर्माण पर लगभग 12 अरब स्विस फ़्रैंक यानी 13.2 अरब डॉलर खर्च किए जा चुके हैं. इनमें से ज़्यादातर निजी प्रॉपर्टी पर बने हैं जो अपार्टमेंट इमारतों या एकल-परिवार वाले घरों के तहखानों में स्थित हैं. इन बंकरों के निर्माण और रखरखाव का ज़िम्मा कैंटोनल और नगर पालिका अधिकारियों का है. हालांकि, आश्चर्यजनक रूप से आधिकारिक नीतियां अलग-अलग कैंटोनों में अलग-अलग होती हैं.

भारत में बंकरों की जरूरत

इस साल मई के दौरान भारत-पाकिस्तान में हुए संघर्ष के बाद से भारत में भी बंकरों को ज्यादा से ज्यादा बनाने की मांग उठी है. कई जानकारों ने मजबूत एयर डिफेंस के साथ-साथ बंकरों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया है.

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