सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिनमें चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। 24 जून के आदेश में चुनाव आयोग ने बिहार से शुरू कर देशभर में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने के निर्देश दिए हैं।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर जहां संसद से सड़क तक संग्राम जारी है, वहीं सुप्रीम कोर्ट भी इससे अछूता नहीं है। वहां इससे जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। इस बीच, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग द्वारा कराए गए SIR के बाद जारी की गई ड्राफ्ट लिस्ट में जो 65 लाख मतदाताओं के नाम छूट गए हैं, उनका विवरण प्रकाशित करने के लिए आयोग को निर्देश देने की मांग शीर्ष अदालत से की है। मामले में अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी।
सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिनमें चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। 24 जून के आदेश में चुनाव आयोग ने बिहार से शुरू कर देशभर में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कराने के निर्देश दिए हैं। मंगलवार को दायर अपनी याचिका में एडीआर ने अदालत से अनुरोध किया कि वह चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह 1 अगस्त को प्रकाशित मसौदा सूची से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं के नामों और विवरणों की विधानसभा क्षेत्र और भाग या बूथवार सूची प्रकाशित करे, और इसमें सूची से हटाए जाने के कारणों (मौत, स्थायी रूप से स्थानांतरित, डुप्लिकेट या लापता) को भी शामिल करे।
65 लाख लोगों में कौन-कौन?
SIR प्रक्रिया के तहत, चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि केवल उन्हीं मतदाताओं को ड्राफ्ट रोल में शामिल किया जाएगा जो 25 जुलाई तक गणना फॉर्म जमा करेंगे। चुनाव आयोग ने कहा कि राज्य के कुल 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 7.24 करोड़ से फॉर्म प्राप्त हो चुके हैं, यानी शेष 65 लाख को हटा दिया गया है। आयोग ने 25 जुलाई को एक प्रेस नोट में कहा था कि इनमें से 22 लाख मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है, जबकि 35 लाख या तो स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या फिर उनका पता नहीं चल पाया है और 7 लाख मतदाता एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत हैं।
अंतिम सूची से हटाए जा सकते हैं ऐसे नाम
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ADR की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामले की पैरवी की। मंगलवार को सुनवाई के दौरान उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि चुनाव आयोग विधानसभा क्षेत्र और भागवार या बूथवार उन मतदाताओं की सूची प्रकाशित करे, जो मसौदा सूची में शामिल थे, लेकिन बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा “अनुशंसित नहीं” की श्रेणी में रखे गए थे, जिसका अर्थ है कि उन्हें 30 सितंबर को प्रकाशित होने वाली अंतिम सूची से हटाया जा सकता है।
बता दें कि कई राजनीतिक दलों के अलावा गैर सरकारी संगठनों – एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, पीयूसीएल और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव समेत अन्य ने चुनाव आयोग के फैसले की वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती देते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं।