होम नॉलेज Hiroshima Day 2025: हिरोशिमा में जिस परमाणु बम से 1.5 लाख मौते हुईं, उसे अमेरिका ने कैसे बनाया, लिटिल बॉय नाम क्यों दिया?

Hiroshima Day 2025: हिरोशिमा में जिस परमाणु बम से 1.5 लाख मौते हुईं, उसे अमेरिका ने कैसे बनाया, लिटिल बॉय नाम क्यों दिया?

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पायलट पॉल टिब्बेट्स ने 6 अगस्‍त, 1945 की सुबह 8:15 बजे जापान के शहर हिरोशिमा पर ‘लिटिल बॉय’ बम को गिराया.Image Credit source: Getty Images

Hiroshima Day 2025: हर साल छह अगस्त को हिरोशिमा डे मनाया जाता है, जो मानव इतिहास की सबसे भयावह घटनाओं में से एक की याद दिलाता है. इसी दिन साल 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर लिटिल बॉय नाम का परमाणु बम गिराया था. इस बम ने न सिर्फ एक शहर को तबाह किया, बल्कि पूरी दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरों से भी रूबरू कराया. अमेरिका को यहीं संतोष नहीं हुआ, उसने ठीक तीन दिन बाद यानी नौ अगस्त को नागासाकी पर भी बम गिराकर मानवता को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया.

आइए हिरोशिमा डे के बहाने जानते हैं लिटिल बॉय बम की पूरी कहानी, यह कैसे बना, क्यों हिरोशिमा को चुना गया? यह कितना पावरफुल था? इसका असर कितना था और आज तक उसके क्या परिणाम दिखते हैं?

सुबह-सुबह लोगों ने एक जहाज देखा

हिरोशिमा शहर रोज की तरह सुबह अंगड़ाई ले रहा था, तभी लोगों को एक बड़ा विमान आसमान में दिखाई दिया. जापानी सेना ने भी देखा लेकिन विश्वयुद्ध से तबाही झेल रहे जापान के पास इतना पेट्रोल नहीं था कि उसके विमान इस अनजान विमान को रोकने को आगे बढ़ पाते. जब तक लोग कुछ सोचते-समझते, तब तक आसमान से बम जमीन की ओर आकार गिरा और लगभग पूरे शहर को अपने आगोश में ले लिया. चारों ओर केवल और केवल चीत्कार सुनाई दे रहा था.

लिटिल बॉय: नाम जितना मासूम, उतना ही भयावह

लिटिल बॉय नाम सुनने में मासूम लगता है, लेकिन यह इतिहास का सबसे विनाशकारी हथियार था. इस बम का नाम लिटिल बॉय इसलिए रखा गया क्योंकि इसका आकार अपेक्षाकृत छोटा और लंबा था, और यह फैट मैन नामक दूसरे बम से अलग था, जिसे नागासाकी पर गिराया गया था. बम के डिजाइनर जॉनसन और उनके साथियों ने इसे लिटिल बॉय नाम दिया था, ताकि इसे कोड नेम के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके.

Little Boy Atomic Bomb Weight

लिटिल बॉय को अमेरिका के मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत तैयार किया गया था. यह प्रोजेक्ट द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ था, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के वैज्ञानिकों ने मिलकर परमाणु बम बनाने का काम किया. इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने किया था. बम के निर्माण में यूरेनियम-235 का इस्तेमाल किया गया था, जिसे अत्यंत शुद्धता के साथ अलग किया गया था. बम का वजन लगभग चार टन था और इसकी लंबाई करीब 10 फीट थी.

बम की ताकत और विनाश

लिटिल बॉय बम की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें लगभग 64 किलोग्राम यूरेनियम-235 था, जिसमें से केवल 0.7 ग्राम यूरेनियम का विखंडन हुआ, लेकिन इससे इतनी ऊर्जा निकली कि पूरा शहर तबाह हो गया. अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि अगर पूरा यूरेनियम विखंडित होता तो दृश्य कितना भयावह होता?

बम की शक्ति लगभग 15 किलो टन टीएनटी के बराबर थी. जब यह हिरोशिमा पर गिराया गया, तो 43 सेकंड में ही यह जमीन से छह सौ मीटर ऊपर ही फट गया. विस्फोट के तुरंत बाद लगभग 70 हजार लोग मारे गए और अगले कुछ महीनों में मरने वालों की संख्या डेढ़ लाख तक पहुंच गई.

Little Boy Atomic Bomb In Japan

परमाणु बम लिटिल बॉय, जिसके विस्फोट के तुरंत बाद लगभग 70 हजार लोग मारे गए. फोटो: Getty Images

हिरोशिमा को ही क्यों चुना गया?

अमेरिका ने हिरोशिमा को निशाना बनाने के पीछे कई कारण बताए थे. सबसे बड़ा कारण यह था कि हिरोशिमा एक बड़ा सैन्य केंद्र था, जहां जापानी सेना की छावनी, गोदाम और संचार केंद्र थे. इसके अलावा, शहर में कोई युद्धबंदी शिविर नहीं था, जिससे अमेरिकी सेना को लगा कि यहां बम गिराने से जापान की सैन्य शक्ति को बड़ा झटका लगेगा. साथ ही, हिरोशिमा का भौगोलिक आकार ऐसा था कि बम का असर अधिकतम हो सके.

बम गिराने की प्रक्रिया

6 अगस्त 1945 की सुबह, अमेरिकी बी-29 बॉम्बर विमान एनोला गे ने हिरोशिमा के ऊपर उड़ान भरी. पायलट पॉल टिब्बेट्स ने सुबह 8:15 बजे लिटिल बॉय बम को गिराया. बम गिरने के 43 सेकंड बाद ही शहर में भयानक विस्फोट हुआ. विस्फोट के केंद्र में तापमान चार हजार डिग्री सेल्सियस से भी अधिक पहुंच गया. विस्फोट की लहरों ने 13 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पूरी तरह तबाह कर दिया. हजारों लोग तुरंत जलकर मर गए, कई लोग रेडिएशन के कारण बाद में मारे गए.

बम का असर और आज की स्थिति

लिटिल बॉय बम का असर सिर्फ तत्काल मौतों तक सीमित नहीं था. विस्फोट के बाद रेडिएशन के कारण हजारों लोग कैंसर, ल्यूकेमिया और अन्य बीमारियों से पीड़ित हुए. कई पीढ़ियों तक बच्चों में जन्मजात विकृतियां देखी गईं. आज भी हिरोशिमा में हिबाकुशा (परमाणु बम पीड़ित) लोग जीवित हैं, जो उस त्रासदी की गवाही देते हैं.

फिर उठ खड़ा हुआ हिरोशिमा

आज हिरोशिमा फिर से सीना ताने खड़ा है. इस शहर ने खुद को शांति का प्रतीक बना लिया है. यहां हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क और एटॉमिक बम डोम जैसे स्थल हैं, जो दुनिया को शांति और परमाणु हथियारों के खिलाफ चेतावनी देते हैं. हर साल 6 अगस्त को यहां शांति प्रार्थना सभा होती है, जिसमें दुनिया भर के लोग शामिल होते हैं. बीते 80 सालों में हिरोशिमा ने खुद को जिस तरीके से खड़ा किया है, आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बना है, उससे दुनिया प्रेरित हो रही है.

लिटिल बॉय ने दुनिया को सोचने को किया था मजबूर

लिटिल बॉय बम ने न सिर्फ हिरोशिमा को तबाह किया, बल्कि पूरी मानवता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि विज्ञान का गलत इस्तेमाल कितना विनाशकारी हो सकता है. हिरोशिमा डे हमें याद दिलाता है कि युद्ध और हिंसा से कभी भी स्थायी समाधान नहीं निकल सकता. आज भी दुनिया के कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन हिरोशिमा की त्रासदी हमें बार-बार चेतावनी देती है कि शांति और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है.

हिरोशिमा की राख से उठी शांति की यह पुकार आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी 1945 में थी. हमें मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि ऐसी त्रासदी दोबारा कभी न हो, यही हिरोशिमा डे का असली संदेश है.

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