हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव बाबर ने रखी थी.
आठ साल के भीतर हिंदुस्तान पर बाबर का यह पांचवां हमला था. 21 अप्रैल 1526 को पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को हरा कर वो हिंदुस्तान पर काबिज़ होने में कामयाब हुआ था. बाबर के मुताबिक उसका ऐसे बैरी से मुकाबला था ” जिस बहादुर (!) ने जैसे लड़ाई देखी ही न हो. जिसने लड़ाई का कोई बंदोबस्त नहीं किया. न बढ़ने का, न टिकने और न भागने का. जब हम झमेलों में उलझे हुए थे, तब हम पर टूट पड़ने की उसे सूझी ही नहीं !”
पानीपत की जीत के तीन दिन के भीतर दिल्ली और फिर दस दिन के फासले पर आगरा में धमके बाबर ने पिछले मौकों की नाकामयाबियों को याद करते हुए इस जीत को अल्लाह की निगाह फिरना माना और नतीजतन हिंदुस्तान जैसा लंबा चौड़ा मुल्क दिला दिया.
“बाबरनामा” उसी विदेशी आक्रांता बाबर की आत्मकथा है. वो विजेता था. जाहिर है कि दर्ज यादों में जीत का घमंड नज़र आता है. लेकिन इसके बहाने बाबर की शख्सियत और उस दौर के हिंदुस्तान के हालात को समझने में कुछ मदद मिलती है. पढ़िए हिंदुस्तान में मुगल सल्तनत की बुनियाद डालने वाले बाबर से जुड़े कुछ किस्से.
पीने-पिलाने और शायरी का सिलसिला
बाबर ने काबुल से हिंदुस्तान की ओर कूच करने के लिए जुमा का दिन चुना. तारीख 17 नवंबर 1526 थी. रास्ते में लाहौर के दीवान से चौबीस हजार अशर्फियां आईं. बाग वफ़ा में हुमायूं और उसके लश्कर के इंतजार में बाबर कई दिन रुका. वहां अक्सर शराब के जलसे हुए. हुमायूं वायदा करके भी नहीं पहुंचा. फिर बाबर ने उसे फटकारते हुए चिट्ठी लिखी. इस दौरान बाबर की मयनोशी किस पैमाने पर थी, उसका इशारा ये लाइनें देती हैं, ” इतवार को सुबह ही पी कर उठा था कि हुमायूं आया. उसे बहुत डांटा. फिर हम आगे चले.”

बाबर ने हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखी थीं.
हिंदुस्तान फतह करने निकले बाबर के लश्कर का जहां ठहराव होता, वहां पीने-पिलाने के साथ-साथ हंसी- मजाक और शेरों-शायरी का सिलसिला भी चलता. बाबर भी इनमें हिस्सा लेता था. ऐसी ही एक नशिस्त में मुहम्मद सालिह का शेर पढ़ा गया
जो प्यार हर अदा का मिले, क्या करे कोई
तू हो तो और क्यों हो कि ले क्या करे कोई
मौजूद लोगों से कहा गया कि इस शेर पर गोशा लगाओ. लोग सोच ही रहे थे कि बाबर ने हंसने-हंसाने के लिए इसमें जोड़ा-
मदहोश अगर तुमसा मिले,क्या करे कोई
हो आप सांड़ तो गधी ले क्या करे कोई
शायरी से तौबा : कलम तोड़ दी
बाबर को बाद में बड़ा पछतावा हुआ कि इतने पाक बोल के साथ मैंने इतना घटिया और बेहूदा ख्याल जोड़ा. दो दिन बाद बाबर को जूड़ी देकर बुखार आया. बलगम साथ खून भी निकला. बाबर ने इसे चेतावनी समझते हुए लिखा,
तेरा इलाज क्या करूं मैं, ऐ मेरी ज़बान
तेरे तुफैल दिल मेरा हुआ लहूलुहान
वे शेर कहां, और, कहां ये खोखले हज़ल
फूहड़, घिनौने कि झूठ,गंदगी की खान
अगर तू कहे कि कैसे जलूं कसम की आग में
तो बाग मोड़, छोड़ य’ मैदान, कहा मान
बाबर ने तौबा की. उसके लिखा, “मैंने फिर तौबा की. फिर इनाबत की. फिर इस बेकार और बेहूदा काम से जी हटा लिया. कलम तोड़ दिया. सच है, गुनाहगार बंदे के मन में ऐसी बातों का उठना एक बड़ी दौलत है,जो दोनों दुनिया के मालिक की ओर से मिलती है. जो बन्दा यों चेत ले, वह इसे अपनी सबसे बड़ी नेकनसीबी समझे.”
पानीपत में थी पूरी तैयारी
रास्ते की लूटपाट और फतह के जश्न के बीच बाबर का रुख दिल्ली की ओर था, जिसकी बागडोर सुल्तान इब्राहिम बिन-सुल्तान-सिकंद-लोदी-पठान के हाथों में थी और जो उन दिनों हिंदुस्तान का बादशाह था. बाबर ने उसके बारे में सुना था कि उसके पास दो पुश्तों का बड़ा खजाना, एक लाख फौज और एक हजार हाथी हैं. आगे बढ़ते बाबर को रोकने के लिए इब्राहिम ने दिल्ली के उत्तर 60 मील दूर पानीपत का रुख किया था. बाबर को इसकी पहले ही जानकारी मिल चुकी थी. वहां अपनी तैयारियों के बारे में बाबर ने लिखा, “जुमरात सल्ख को पानीपत पहुंचे. शहर को दाएं रखा. सामने ओटे-अराबे जमा किए. बाएं खाईयां खोद दीं.
खाइयों पर झांखर लगा दिए. हर ओर तीर की पहुंच भर इतनी-इतनी जगह छोड़ दी कि सौ सवार निकल जाएं.” हालांकि, बाबर के लश्कर में लोग डरे हुए थे. घर छोड़े कई महीने बीत चुके थे. अजनबी से मुकाबला था. दोनों एक- दूसरे की बोली से अनजान थे. सवाल-जवाब और हिसाब-किताब हथियारों और जंग के दांव-पेंच के जरिए ही होना था. बाबर ने साथियों में अल्ला के हवाले से हौसला भरा. कहा होगा वही जो ऊपर वाला तय करेगा. पर हमें फतह के भरोसे से लड़ना है.

मुगलों के दौर में तोपों को खींचने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया जाता था. फोटो: META
एकतरफा मुकाबले में आसान जीत
बाबर के ब्यौरों के मुताबिक इब्राहिम लोदी की बड़ी फ़ौज के मुकाबले कम सैनिकों और अनजान इलाके के बाद भी चतुर रणनीति और उसके सैनिकों की बहादुरी ने जीत आसान की. उसने लिखा,” बैरी की परछाईं देखते ही हम जान गए कि उसका भर हमारे दाएं पर है. इसलिए तरह को दाएं की कुमुक पर भेजा. बैरी हम पर सीधा लपका आ रहा था. हमारी पांतो ने तीरों और बढ़िया गोला बारी से उन्हें चारों ओर से घेर लिया. लड़ाई गरमाई. बैरी ने हमारे दाएं-बाएं एकाध चोटें कीं लेकिन हमारे तीरों ने उसे उसके कूल में धकेल दिया.
उनकी हालत यह हो गई कि न आगे बढ़ पाते थे और न भागने की राह पाते थे. दोपहर तक घमासान लड़ाई के बीच धूल के बादल ऐसे थे कि हाथ को हाथ न सूझे. दिन ढलना भी नहीं शुरू हुआ था कि बैरी पस्त हो गया. बैरी का अनगिनत लश्कर डेढ़-दो पहर में धूल में मिल गया. पांच-छह हजार तो सुल्तान इब्राहिम के पास ही मरे पड़े थे.
हर कहीं लाश के टीले लगे थे. हमने मरे हुओं की गिनती पंद्रह-सोलह हजार अंदाजी. लेकिन आगरा पहुंचने पर पता चला कि पचास-साठ हजार मारे गए. फिर भागने वालों का पीछा किया. अंदेशा था कि इब्राहिम भाग गया होगा. लेकिन ताहिर तीबरी लाशों के किसी बड़े ढेर में उसकी लाश खोजकर सिर काट लाया.”
पांचवें हमले में हिंदुस्तान पर जीत
इब्राहिम लोदी की कमजोरियों ने बाबर की फतह आसान की. लोदी में न खुद लड़ने का बूता था न अपनी फ़ौज को वो लड़ने लायक बना सका. बाबर ने लिखा कि हिंदुस्तान में चलन है कि जरूरत पड़ने पर तय पैसे पर सिपाही भर्ती किए जा सकते हैं. लोदी के पास पुरखों का छोड़ा खजाना था. उसके पास एक लाख सैनिक पहले ही थे. वो जरूरत पर और सैनिक भर्ती कर सकता था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. बाबर ने इसकी वजह लोदी की कंजूसी बताई है. उसे ऐसा मक्खीचूस बताया है जो रुपया सिर्फ तल्लड़ में बंद रखने का सुख उठाते हैं.
बाबर के मुताबिक उसका ऐसे बैरी से मुकाबला था ” जिस बहादुर (!) ने जैसे लड़ाई देखी ही न हो. जिसने लड़ाई का कोई बंदोबस्त नहीं किया. न बढ़ने का , न टिकने और न भागने का. जब हम पानीपत में अराबों, खाइयों और झांखरों के झमेलों में उलझे हुए थे, तब हम पर टूट पड़ने की उसे सूझी ही नहीं ! कोई भी जानकार लड़वैया ऐसी गहरी चूक कभी न करता.” 1705 में काबुल हासिल करने के समय से ही बाबर हिंदुस्तान पर फतह के सपने देखता था . कभी बेगों की बेहिम्मती तो कभी भाइयों के बिगड़ने से उसकी चाहत वर्षों तक पूरी नहीं हो पाई. शुरुआती चार हमलों में उसे शिकस्त मिली. बाबर ने लिखा , “पांचवी बार अल्लाह ने निगाह फेरी. इब्राहिम जैसे बैरी को हराया और हिंदुस्तान जैसा लंबा-चौड़ा मुल्क जीत लिया.”
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