अब रेगुलर बजट की बात करें तो अमेरिका ने साल 2025 में इसमें 22 फीसदी का योगदान किया था। अमेरिका की ओर से 82 करोड़ 3 लाख डॉलर का योगदान किया गया है। इस तरह करीब एक चौथाई फंड अमेरिका ही देता है, जबकि 20 फीसदी राशि चीन की ओर से दी जाती है। जापान का इसमें 6 पर्सेंट योगदान है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के 80 साल पूरे हो रहे हैं। दुनिया के किसी भी देश के लिए अपनी समस्याओं को रखने या फिर वैश्विक मामलों में चर्चा के लिए यह एकमात्र सार्वभौमिक मंच है। यही वह मंच है, जिस पर भारत की ओर से आतंकवाद को लेकर चिंता जाहिर की जाती रही है। इसके अलावा यूक्रेन रूस युद्ध और इजरायल एवं फिलिस्तीन में जारी जंग पर भी इसी मंच पर चर्चा होती रही है। हालांकि अमेरिका ने पिछले कुछ सालों में संयुक्त राष्ट्र संघ से जुड़ी कई संस्थाओं से खुद को अलग कर लिया है। इससे संस्थाओं की फंडिंग पर असर की बात की जा रही है। आइए जानते हैं, आखिर संयुक्त राष्ट्र के लिए कौन सा देश देता है कितना फंड और भारत की क्या है स्थिति…
अमेरिका ने पिछले कुछ सालों में विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO और मानवाधिकार परिषद को छोड़ दिया है। इसके अलावा अगले साल के अंत तक UNESCO से भी अमेरिका अलग होने की तैयारी में है। यही नहीं यूएन के मुख्य फंड में कटौती करने की भी तैयारी अमेरिका कर रहा है। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह भी कहा था कि उसके पास बजट की कमी है और इसके चलते उसे अपनी कुछ योजनाओं से हाथ पीछे खींचना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ के फंड में सदस्यों की ओर से जो योगदान किया जाता है, वह दो हिस्सों में होता है। पहला और अहम हिस्सा संयुक्त राष्ट्र का रेगुलर बजट होता है। इसके अलावा दूसरा बजट पीसकीपींग का होता है।
अब रेगुलर बजट की बात करें तो अमेरिका ने साल 2025 में इसमें 22 फीसदी का योगदान किया था। अमेरिका की ओर से 82 करोड़ 3 लाख डॉलर का योगदान किया गया है। इस तरह करीब एक चौथाई फंड अमेरिका ही देता है, जबकि 20 फीसदी राशि चीन की ओर से दी जाती है। जापान का इसमें 6 पर्सेंट योगदान है। जर्मनी 5.6, ब्रिटेन 3.9 और फ्रांस की तरफ से 3.8 फीसदी रकम दी जाती है। इनके अलावा टॉप 10 में इटली, कनाडा, साउथ कोरिया और रूस भी शामिल हैं। भारत का इस लिस्ट में 34वां स्थान है। भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र के लिए 3 करोड़ 76 लाख डॉलर की फंडिंग दी जाती है।
यदि कोई मुल्क UN में फंडिंग न चुकाए तो क्या ऐक्शन होगा
संयुक्त राष्ट्र के लिए जिस देश के हिस्से जो भी योगदान आता है, वह उसे प्रति वर्ष नियमित तौर पर देना होता है। यदि कभी किस्त नहीं चुकाई जाती तो उसे एरियर के तौर पर जोड़ लिया जाता है। यदि एरियर की रकम बीते दो सालों के योगदान से अधिक हो जाए तो फिर संबंधित सदस्य से संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में वोटिंग का अधिकार भी छिन सकता है। फिलहाल अफगानिस्तान, वेनेजुएला, बोलिविया, साओ टोम और प्रिंसिप की किस्त बकाया है। हालांकि साओ टोम और प्रिंसिप को वोटिंग की परमिशन दी गई है। संयुक्त राष्ट्र ने माना है कि ये दोनों बेहद छोटे द्वीपीय देश हैं। ऐसे में उनकी आर्थिक किल्लत को आपको समझना होगा।