Sensex Outlook: मॉर्गन स्टैनली के विशेषज्ञ रिधम देसाई का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार फिर से तेजी पकड़ सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया है कि जून 2026 तक बीएसई सेंसेक्स 89,000 के स्तर को छू सकता है। यह मौजूदा स्तर (लगभग 80,949) से करीब 10% यानी लगभग 8,000 अंकों की बढ़त होगी।
मॉर्गन स्टैनली के विशेषज्ञ रिधम देसाई का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार फिर से तेजी पकड़ सकता है। उन्होंने अनुमान लगाया है कि जून 2026 तक बीएसई सेंसेक्स 89,000 के स्तर को छू सकता है। यह मौजूदा स्तर (लगभग 80,949) से करीब 10% यानी लगभग 8,000 अंकों की बढ़त होगी। याद रहे, सितंबर 2024 में सेंसेक्स ने 85,978.25 का रिकॉर्ड ऊंचाई बनाई थी, जिसके बाद से बाजार में उतार-चढ़ाव रहा और अप्रैल में यह गिरकर 71,425.01 के 52-हफ्ते के निचले स्तर पर भी पहुंच गया था।
द इकनॉमिक टाइम्स की खबर के मतुाबिक देसाई कहते हैं कि उनका 89,000 का लक्ष्य सेंसेक्स को पिछले 25 साल के औसत P/E अनुपात (मूल्य-आय अनुपात) 21x से ऊपर, लगभग 23.5x पर ट्रेड करने का संकेत देता है। यह ऐतिहासिक औसत से अधिक प्रीमियम भारत की मजबूत मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं, वैश्विक बाजारों के मुकाबले कम उतार-चढ़ाव (कम बीटा), अधिक स्थिर दीर्घकालिक विकास दर और एक पूर्वानुमेय नीतिगत माहौल में उनके विश्वास को दर्शाता है।
ये हैं तेजी की 8 मुख्य वजहें
1. भारत की वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ती हिस्सेदारी: देसाई और उनके सहयोगी नयनत पारेख का कहना है कि मजबूत जनसंख्या वृद्धि, स्थिर लोकतंत्र, मैक्रो इकोनॉमिक स्थिरता, बेहतर होती बुनियादी ढांचे की स्थिति, उभरता उद्यमी वर्ग और सुधरते सामाजिक संकेतक जैसे मूलभूत कारकों की बदौलत आने वाले दशकों में वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ने की संभावना है।
2. विश्व की सबसे आकर्षक उपभोक्ता मार्केट बनने की राह पर: देसाई का तर्क है कि भारत के मैक्रोइकॉनॉमिक लाभ इसे दुनिया का सबसे चाहता उपभोक्ता बाजार बना देंगे। देश में ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा बदलाव होगा, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले कर्ज (क्रेडिट टू जीडीपी) का स्तर बढ़ेगा और विनिर्माण क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
3. जीडीपी पर तेल की निर्भरता घट रही है: रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी में तेल की खपत की तीव्रता कम होना, जीडीपी में निर्यातों (खासकर सेवाओं) की हिस्सेदारी बढ़ना और राजकोषीय समेकन (तीन साल में प्राथमिक अधिशेष की संभावना) से बचत और निवेश में असंतुलन कम होगा। इससे संरचनात्मक रूप से वास्तविक ब्याज दरें कम रहेंगी।
4. मुद्रास्फीति पर काबू और नतीजे: आपूर्ति पक्ष और नीतिगत बदलावों के कारण मुद्रास्फीति में उतार-चढ़ाव कम हुआ है। इसका मतलब है कि आने वाले सालों में ब्याज दरों और विकास दर में उतार-चढ़ाव भी कम होने की उम्मीद है। उच्च विकास दर के साथ कम उतार-चढ़ाव, गिरती ब्याज दरें और कम बीटा (वैश्विक बाजारों के मुकाबले कम अस्थिरता) मिलकर शेयरों के P/E अनुपात (मूल्यांकन) को बढ़ा सकते हैं।
5. घरेलू बचत का शेयर बाजार की ओर रुख: कम मुद्रास्फीति घरेलू बचत को शेयरों (इक्विटी) की तरफ मोड़ने में मदद कर सकती है, जिससे शेयरों को लगातार समर्थन मिल सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह कम बीटा खुद बेहतर मैक्रो स्थिरता और घरेलू बचत के इक्विटी की ओर संरचनात्मक बदलाव से पैदा हुआ है। शेयरों के दामों का उतार-चढ़ाव यह छिपा सकता है कि लॉन्ग बॉन्ड और सोने की तुलना में शेयर कितने सस्ते हो गए हैं और वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी कैसे बढ़ रही है।
6. मुनाफे में मंदी खत्म होने की उम्मीद: देसाई की राय है कि कंपनियों के मुनाफे (आय) में जो मंदी सितंबर 2024 (Q2 FY25) से शुरू हुई थी, वह अब खत्म होने वाली लगती है, हालांकि बाजार शायद अभी पूरी तरह यकीन नहीं कर रहा है। उनका आशावाद केंद्रीय बैंक की नरम (डोविश) नीति से आता है, लेकिन वे कहते हैं कि भविष्य के विकास पर पूरा विश्वास बाहरी विकास माहौल और जीएसटी दरों में तर्कसंगत बदलाव पर बेहतर स्पष्टता मिलने पर ही होगा।
7. तेजी के लिए संभावित उत्प्रेरक (कैटलिस्ट): अमेरिका के साथ अंतिम व्यापार समझौता, और निवेश (कैपेक्स) की नई घोषणाएं, कर्ज देने में तेजी, हाई-फ्रिक्वेंसी आर्थिक आंकड़ों (जैसे GST कलेक्शन, PMI) में एकसमान सुधार और चीन के साथ व्यापार संबंधों में सुधार बाजार के लिए उत्प्रेरक का काम कर सकते हैं।
8. विदेशी निवेशक (FPI) रुझान: हालांकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारत में निवेश साल 2000 के बाद से सबसे कम स्तर पर है, लेकिन देसाई का मानना है कि भारत का कम बीटा (कम अस्थिरता) वैश्विक मंदी के दौर में बेहतर प्रदर्शन करवा सकता है, भले ही तेजी के दौर में प्रदर्शन औसत रहे।
निवेश सलाह
देसाई सबसे ज्यादा भरोसा घरेलू चक्रीय शेयरों (जिनका प्रदर्शन घरेलू अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है) पर जताते हैं, उसके बाद रक्षात्मक (डिफेंसिव) और निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों पर। वे वित्तीय क्षेत्र (बैंक, वित्त कंपनियां), उपभोक्ता ड्यूरेबल्स (गैर-जरूरी सामान) और औद्योगिक क्षेत्रों में ‘ओवरवेट’ (अधिक निवेश की सलाह) बने हुए हैं, जबकि ऊर्जा, कच्चा माल (मटीरियल्स), यूटिलिटीज (बिजली, गैस) और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में ‘अंडरवेट’ (कम निवेश की सलाह) हैं।
(डिस्क्लेमर: एक्सपर्ट्स की सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं, लाइव हिन्दुस्तान के नहीं। शेयर मार्केट में निवेश जोखिमों के अधीन है और निवेश से पहले अपने एडवाइजर से परामर्श कर लें।)