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लाल-हरा मैत्री ने झारखंड अगल राज्य के लिए गोल्फ ग्राउंड से की थी आंदोलन की घोषणा

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झारखंड अलग राज्य के पुरोधा रहे बिनोद बिहारी महतो, एके राय और अब दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हो गया है. अलग झारखंड राज्य आंदोलन के ये तीनों स्तंभ थे. इसी का परिणाम है कि झारखंड अलग राज्य बना. 60 के दशक में बिनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन अलग-अलग आंदोलन कर रहे थे. इसी दौरान तीनों का संपर्क हुआ. रामलाल दा उर्फ पंचम प्रसाद बताते है कि 70 के दशक में बिनोद बिहारी महतो की मुलाकात हजारीबाग जेल में शिबू सोरेन से हुई थी. शिबू सोरेन से प्रभावित होकर उन्हें जेल से छुड़वाया. इसके बाद बिनोद बिहारी महतो, एके राय व शिबू सोरेन ने साथ में बैठक की. तय किया गया कि झारखंड अलग राज्य आंदोलन को अब व्यापक रूप देने का समय आ गया है.

चार फरवरी 1973 को हुई थी सभा :

झारखंड अलग राज्य के आंदोलन के लिए लाल व हरा मैत्री में चार फरवरी 1973 में गोल्फ ग्राउंड में सभा हुई थी. इसमें ग्रामीण, मजबूर, किसान अन्य शामिल हुए. भीड़ ने ही साफ कर दिया था कि झारखंड को अलग राज्य बनने से कोई रोक नहीं सकता है. इसी सभा से औपचारिक रूप से झारखंड अलग राज्य के आंदोलन की घोषणा की गयी थी. लाल-हरा मिल कर आंदोलन करने की घोषणा की गयी. इस सभा में मौजूद सभी ने हुंकार भरी थी. इसके बाद आंदोलन ने गति पकड़ी.

झारखंड अलग राज्य का विचार एके राय ने रखा था :

हरि प्रसाद पप्पू ने बताया कि एके राय ने झारखंड अगल राज्य के आंदोलन की बात रखी थी. इसके बाद बिनोद बिहारी महतो, एके राय और शिबू सोरेन ने कई बार मंथन किया. चार फरवरी 1973 को आंदोलन की घोषणा की गयी. इसकी गूंज छोटानागपुर व संताल तक फैली. 80 के दशक में सिद्धांतों और आपसी मतभेद के बाद शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो व एके राय अलग हो गये. अलग राज्य के लिए आंदोलन अपने-अपने स्तर पर चलता रहा. आंदोलन का परिणाम रहा कि आज झारखंड अलग राज्य है.

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