होम उत्तर प्रदेश रामदूत की वापसी: जब समाज ने स्वयं उठाया मंदिर संरक्षण का दायित्व — लखनऊ छावनी से विशेष रिपोर्ट

रामदूत की वापसी: जब समाज ने स्वयं उठाया मंदिर संरक्षण का दायित्व — लखनऊ छावनी से विशेष रिपोर्ट

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प्रतिवेदक: स्थानीय संवाददाता, लखनऊ
स्थान: एकांतेश्वर महादेव मंदिर, के.के.सी. कॉलेज मार्ग, छावनी क्षेत्र, लखनऊ

लखनऊ।
छावनी क्षेत्र के के.के.सी. कॉलेज मार्ग पर स्थित एक प्राचीन एवं उपेक्षित एकांतेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों विशेष गतिविधि देखी जा रही है। खंडहर होती दीवारों और जर्जर छतों के मध्य अब केवल सफाई ही नहीं, बल्कि एक गहन संरचनात्मक पुनरुद्धार का कार्य आरंभ हो चुका है।

मंदिर की क्षतिग्रस्त सीढ़ियाँ, टूटते खंभे और उपेक्षित गर्भगृह के बीच कुछ उत्साही युवा पूरे समर्पण और ऊर्जा के साथ कार्यरत हैं। पूछने पर ज्ञात हुआ कि ये सभी रामदूत रिस्टोरर्स संस्था से जुड़े स्वयंसेवक हैं — एक ऐसा संगठन जो भारत भर के गुमनाम, जीर्ण-शीर्ण मंदिरों को फिर से जीवंत करने में संलग्न है।

स्थानीय अभियान समन्वयक वसुदेव भट्ट बताते हैं —

“शासकीय व्यवस्था को इन मंदिरों की न तो चिंता है, न ही इनके इतिहास का मूल्यांकन। किन्तु हमारे लिए ये केवल ईंट-पत्थर की संरचनाएँ नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा हैं। अतः हम हर सप्ताह ऐसे मंदिरों को बचाने हेतु प्रयासरत रहते हैं।”

इस बार संस्था की दृष्टि लखनऊ के इस प्राचीन शिव मंदिर पर पड़ी, जो वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा। मंदिर के चारों ओर गंदगी, खंडित स्तंभ और भीतर रिसता जल — यही इसकी पहचान बन चुकी थी। अब रामदूत की टीम ने यहाँ पर सफाई, मरम्मत, पुनर्निर्माण और नियमित पूजा-पाठ की व्यवस्था प्रारंभ कर दी है। उनका लक्ष्य है कि अगले तीन माह में यह मंदिर पुनः पूजन योग्य हो जाए

यह संस्था की पहली पहल नहीं है। इससे पूर्व रामदूत रिस्टोरर्स ने लखनऊ के डालीगंज क्षेत्र स्थित मानभवेश्वर महादेव मंदिर का भी सफल संरक्षण किया था, जहाँ उपेक्षित अवस्था में पड़े मंदिर को उन्होंने स्थानीय जनता के सहयोग से संजीवनी प्रदान की।

टीम का अनुभव भी अत्यंत समृद्ध है। उन्होंने बताया कि विगत वर्ष महाराष्ट्र के भंडारा ज़िले में स्थित एक ३५० वर्ष पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया, जो मुगल आक्रमणों में ध्वस्त हो गया था। आज वह मंदिर पुनः सजीव है — वहाँ कलश स्थापित हो चुका है, पुजारी नियुक्त हैं तथा नियमित पूजन होता है।

वर्तमान में टीम गुजरात के पांचखोबला गाँव में एक ८०० वर्ष पुराने शिव मंदिर के पुनरुद्धार में लगी है। वहाँ मंदिर के अधिकांश पत्थर भूमि में बिखरे पड़े थे, स्थानीय लोगों के पास न तो संसाधन थे, न ही विशेषज्ञता। रामदूत रिस्टोरर्स वहाँ प्राचीन इंटरलॉकिंग तकनीक से स्तंभ, छत एवं गर्भगृह को उसकी मूल शैली में पुनः स्थापित कर रही है।

टीम के एक युवा सदस्य से जब पूछा गया कि इस कार्य को करते समय उन्हें कैसा अनुभव होता है, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया:

“यह कोई काम नहीं, तपस्या है। हम केवल मंदिर नहीं बना रहे, हम अपनी जड़ों को पुनः सींच रहे हैं।”

आज यह स्पष्ट हो चुका है कि जहाँ सरकारी तंत्र फाइलों और अनुमतियों में उलझा हुआ है, वहाँ समाज स्वयं अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा हेतु आगे आ रहा है। रामदूत रिस्टोरर्स जैसे संगठन केवल मंदिरों का पुनर्निर्माण नहीं कर रहे, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ज्वाला भी प्रज्वलित कर रहे हैं।

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