रूस में पूर्वी क्षेत्र में कुरील द्वीप के पास कामचटका में रविवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए.
रूस में एक बार फिर रविवार (3 अगस्त 2025) को भूकंप आया. देश के पूर्वी क्षेत्र में कुरील द्वीप के पास कामचटका में तेज झटके महसूस किए गए. इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.7 मापी गई है. इसके बाद देश में सुनामी की चेतावनी जारी की गई है. इससे रूस में मुश्किलें बढ़ गई हैं. यह वही क्षेत्र है, जहां पिछले हफ्ते 8.8 तीव्रता का भूकंप आया था. इसके बाद कई देशों में सुनामी की आशंका जताई गई थी. इसके साथ ही रूस में पिछले 600 साल में पहली बार एक ज्वालामुखी फटा है.
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या ज्वालामुखी भी भूकंप या सुनामी की वजह बनता है? इस ज्वालामुखी का क्या असर होगा? आइए जानने की कोशिश करते हैं.
कब होता है ज्वालामुखी विस्फोट?
वास्तव में ज्वालामुखी विस्फोट तब होता है, जब धरती की सतह के नीचे पिघला लावा (मैग्मा), गैसें और राख तेजी से ऊपर उठती हैं और धरती की सतह में विस्फोट कर बाहर निकलने लगती हैं. वहीं, भूकंप तब महसूस किया जाता है, जब धरती की टेक्टोनिक प्लेटें या तो एक-दूसरे से टकराती हैं, एक-दूसरे के नीचे खिसकती हैं या फिर इधर-उधर होती हैं.
ज्वालामुखी के कारण आ सकता है भूकंप
ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप, दोनों ही धरती की सतह पर होने वाली प्राकृतिक घटनाएं हैं. ये अक्सर एक-दूसरे से संबंधित होती हैं. फिर ज्वालामुखी के साथ ही भूकंप भी धरती की प्लेटों और टेक्टोनिक हलचल से जुड़े होते हैं. ऐसे में ज्वालामुखी के अंदर मैग्मा की स्पीड और गैसों का प्रेशर भूकंप का कारण बन सकता है. इसलिए हम कह सकते हैं कि ज्वालामुखी के कारण भूकंप आ सकता है.

रूस में क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी 600 सालों में पहली बार फटा है. फोटो: Sheldovitsky Artem Igorevich / IViS / Handout/Anadolu via Getty Images
वास्तव में ज्वालामुखी का मैग्मा जब तेजी से सतह की ओर बढ़ता है तो इसकी स्पीड चट्टानों पर प्रेशर डालती है. इस प्रेशर के कारण चट्टानें टूट सकती हैं, जिससे भूकंप आ सकता है. इसके अलावा ज्वालामुखी विस्फोट से पहले भी या विस्फोट के दौरान मैग्मा और गैसों की स्पीड अगर बेहद ज्यादा होती है, तब भी भूकंप आने की आशंका रहती है. हालांकि, ज्वालामुखी के कारण आने वाले भूकंप और टेक्टोनिक भूकंप में अंतर है. ज्वालामुखी के कारण आने वाले भूकंप का कारण मैग्मा और गैसों की स्पीड का प्लेटों पर दबाव होता है. वहीं, टेक्टोनिक भूकंप का कारण टेक्टोनिक प्लेटें खिसकना होता है.
रूस में भी भूकंप का कारण हो सकता है ज्वालामुखी
जहां तक रूस में आए भूकंप की बात है, तो जानकारों का कहना है कि देश के पूर्वी इलाके में 600 साल से भी अधिक समय में पहली बार फटे ज्वालामुखी से इसका संबंध हो सकता है. बताया जा रहा है कि कामचटका के क्रशेनीनिकोव ज्वालामुखी से लगभग छह किलोमीटर की ऊंचाई तक राख का गुबार उठा. ऐसे में पिछले हफ्ते आया 8.8 तीव्रता का और तीन अगस्त को आया 7.0 तीव्रता का भूकंप इसी का नतीजा हो सकता है.
ज्वालामुखी के कारण आ सकती है सुनामी
रूस में ज्वालामुखी विस्फोट के बाद कामचटका के तीन इलाकों में सुनामी की आशंका जताई गई है. इसके अलावा रूस की आरआईए राज्य समाचार एजेंसी और वैज्ञानिकों ने यह भी आशंका जताई है कि भीषण भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट के कारण फ्रेंच पोलिनेशिया और चिली तक सुनामी आ सकती है. इससे पहले भीषण भूकंप के बाद भी रूसी वैज्ञानिकों ने आशंका जताई थी कि इस क्षेत्र में अगले कुछ हफ्ते तक भूकंप आ सकते हैं.

रूस में भूकंप ने मचाई तबाही
एक नहीं, रूस में दो ज्वालामुखी विस्फोट
रूस में वास्तव में एक नहीं, दो ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं. कामचटका में 600 साल बाद पहली बार क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ. 1856 मीटर ऊंचाई वाले क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी में विस्फोट से छह हजार मीटर तक ऊंचा राख का गुबार फैलने से इस क्षेत्र में एयर स्पेस बंद कर दिया गया है. इससे पहले बुधवार (30 जुलाई) को कामचटका प्रायद्वीप के क्ल्यूचेव्स्काया सोपका ज्वालामुखी में भी विस्फोट देखने को मिला था. एक ओर जहां क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी सोया पड़ा था, वहीं सोपका ज्वालामुखी यूरोप ही नहीं, एशिया में भी सबसे एक्टिव ज्वालामुखी है. जानकार मानते हैं कि इन्हीं दोनों ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण रूस में धरती कांपी होगी.
रूस में क्यों फटा क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी?
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये दोनों ज्वालामुखी विस्फोट रूस के उस इलाके में हुए हैं, जो रिंग ऑफ फायर के पास स्थित है. रिंग ऑफ फायर एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई महाद्वीपों के साथ ही ओशियनिक टेक्टोनिक प्लेटें भी स्थित हैं. जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं तभी ज्वालामुखी फटते हैं, भूकंप आता है या सुनामी आती है. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी इतने लंबे समय से शांत रहा होगा, क्योंकि इसका मैग्मा और गैसों की तीव्रता इतनी नहीं रही होगी कि विस्फोट कर सकें. इनको प्लेटें टकराने से बाहर निकलने का मौका मिला होगा और ज्वालामुखी में विस्फोट हो गया होगा.
आरआईए और कामचटका ज्वालामुखी विस्फोट प्रतिक्रिया दल की प्रमुख ओल्गा गिरिना की मानें तो क्रशेनिनिकोव ज्वालामुखी में अंतिम ज्ञात विस्फोट साल 1463 के 40 सालों के भीतर हुआ था. इसके बाद से इस ज्वालामुखी में कोई विस्फोट सामने नहीं आया था. इतने सालों बाद अब एक बार फिर इसमें विस्फोट हुआ है.
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