उत्तर प्रदेश में नए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष को लेकर लगातार अटकलों का दौर जारी है. लेकिन, अब इसका ऐलान नहीं हुआ, अब चर्चा है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद ही उत्तर प्रदेश को नया नेतृत्व मिलेगा. इसकी एक वजह यह भी है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए आधे से अधिक राज्यों के अध्यक्षों के चयन का ‘कोरम’ पूरा हो गया है. देश के 28 राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव संपन्न हो चुका है. उधर राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि समाजवादी पार्टी की पीडीए पाठशाला की नई रणनीति को ध्यान में रखते हुए बीजेपी में अब नए सिरे से मंथन शुरू हो गया है.
कब होगा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पर फैसला?
बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर कहा, ”राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का निर्वाचन होगा.” उन्होंने यह भी कहा कि ”प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल नेताओं को दिल्ली में कह दिया गया है कि उत्तर प्रदेश में जाकर काम करिए, जो निर्णय होगा, पता चल जाएगा.
यूपी का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इस पर अभी कोई दावा करना मुश्किल है, क्योंकि पार्टी सिर्फ तात्कालिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि दूरगामी समीकरणों के आधार पर फैसला करती है.
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में बीजेपी की कुल 98 संगठनात्मक जिला इकाइयां हैं. मार्च के दूसरे पखवाड़े में बीजेपी उत्तर प्रदेश के संगठनात्मक चुनाव प्रभारी पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय ने 98 इकाइयों में 70 में जिलाध्यक्षों की घोषणा की थी, जिसके बाद ये कयास तेज हो गये कि जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा होगी.
बीजेपी में आधे से अधिक जिलों में निर्वाचन के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होती है. हालांकि चार माह बीतने के बाद भी पार्टी अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. अभी तक बीजेपी के प्रदेश परिषद के सदस्यों की भी सूची जारी नहीं हुई है.
बीजेपी में कई नेता प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल
बीजेपी के एक पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए राज्य परिषद के सदस्य ही मतदाता होते हैं और वे प्रस्तावक व समर्थक का कार्य भी करते हैं, इसलिए चुनाव प्रक्रिया पूरी करने के लिए उनका चयन जरूरी है.
उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष पद के कई दावेदारों के नाम चर्चा में हैं. चूंकि 2027 में विधानसभा चुनाव और उससे पहले 2026 में पंचायत चुनाव होने हैं, इसलिए पार्टी नेतृत्व अध्यक्ष के चयन के लिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर ध्यान केन्द्रित किये हुए है. साथ ही मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की रणनीति पर भी बीजेपी की नजर है.
बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी ने अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) अभियान को तेज किया है और अब तो सपा पीडीए पाठशाला का भी आयोजन कर रही है, इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग को लगता है कि बीजेपी अपने अध्यक्ष के चयन में पिछड़े वर्गों को प्राथमिकता दे सकती है.
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पिछड़े और दलित वर्ग के इन नेताओं के नाम की भी चर्चा
पार्टी के करीबी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए एक बार फिर पिछड़े वर्ग की ओर रुख कर सकती है. 2016 से, इस पद पर ब्राह्मण और ओबीसी, दोनों ही समुदायों के नेता रहे हैं: डॉ. महेंद्र नाथ पांडे (ब्राह्मण), जबकि स्वतंत्र देव सिंह और मौजूदा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ओबीसी समुदाय से हैं.
किसी दौर में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले कल्याण सिंह (लोध जाति) और ब्राह्मण नेता कलराज मिश्र की जोड़ी ने बीजेपी को उत्तर प्रदेश में मजबूती दी थी, लेकिन बाद के दिनों में लोध जाति को कभी नेतृत्व का मौका नहीं मिला.
राजनीतिक जानकारों का दावा है कि इस बार बीजेपी उत्तर प्रदेश के नेतृत्व के लिए लोध समाज की सबसे मजबूत दावेदारी है. इसके लिए प्रदेश सरकार के मंत्री धर्मपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा का नाम भी सामने आ रहे हैं. इन दोनों नेताओं में अगर किसी का चयन होता है, तो उसके लिए दिवंगत कल्याण सिंह के परिवार के सदस्यों की सहमति भी जरूरी होगी.
दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग में आने वाली कुर्मी जाति से उत्तर प्रदेश में विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह और स्वतंत्र देव सिंह बीजेपी की राज्य इकाई का नेतृत्व कर चुके हैं और अब भी इस पद के लिए स्वतंत्र देव सिंह का नाम चर्चा में है. इनके अलावा निषाद समाज से राज्यसभा सदस्य बाबू लाल निषाद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति का भी नाम चर्चा में है.
ब्राह्मण समाज से ये नेता रेस में शामिल
बीजेपी अगर ब्राह्मण समाज से प्रदेश अध्यक्ष का चयन करती है तो पूर्व उप मुख्यमंत्री व राज्यसभा सदस्य डॉक्टर दिनेश शर्मा, बीजेपी के प्रदेश महामंत्री व एमएलसी गोविंद नारायण शुक्ल, गौतमबुद्ध नगर के सांसद महेश शर्मा और पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी समेत कई नाम दावेदारों की सूची में हैं.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लगातार कमजोर होते जनाधार के चलते बीजेपी की नजर दलितों पर खासतौर से पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक प्रभाव रखने वाली सोनकर जाति पर है. यही वजह है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए पार्टी पूर्व सांसद विद्यासागर सोनकर का नाम भी चर्चा में है. दलित समाज की गैर जाटव जातियों के अन्य कई नेता भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हैं.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के निर्वाचन के संबंध में जब पार्टी के वरिष्ठ प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ‘बीजेपी का सांगठनिक चुनाव बूथ, मंडल और जिला से संपन्न होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होता है, जिसमें प्रदेश परिषद के सदस्य भाग लेते हैं.’
श्रीवास्तव ने कहा, ‘प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए आवश्यक आधे से अधिक जिलों का चुनाव संपन्न हो चुका है. केंद्रीय नेतृत्व द्वारा नामित चुनाव अधिकारी कार्यक्रम घोषित करेंगे, जिसके अनुरूप प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव संपन्न होगा.’