लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच दोस्ती और दुश्मनी के रिश्ते को समझ पाना सबके बस की बात नहीं.
अदावत में भी बनी रही नरमी
लालू यादव और नीतीश कुमार की सियासी दुश्मनी के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे के लिए सद्भाव बनाए रखा. लालू यादव की आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ में वे नीतीश को ‘ऋणी’ बताते हैं, क्योंकि नीतीश ने 1990 में उनका समर्थन किया था. लेकिन, वे यह भी कहते हैं कि नीतीश ‘वैचारिक रूप से ढुलमुल’ हो गए. दूसरी ओर नीतीश कुमार ने 2005 में लालू के ‘जंगल राज’ को खत्म करने का दावा किया. हालांकि, एक हकीकत तो यह भी है कि नीतीश कुमार ने हमेशा लालू यादव के परिवार के आयोजनों में शिरकत की. वर्ष 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा और 2015 में लालू के साथ महागठबंधन बनाया. लालू-नीतीश की दोस्ती का यह नया अध्याय था. दोनों नेताओं ने महागठबंधन के तहत बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा और बड़ी जीत प्राप्त की. नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, जबकि लालू यादव की पार्टी राजद ने सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई और वर्ष 2017 में भ्रष्टाचार के आरोपों पर नीतीश फिर बीजेपी के साथ चले गए.
लालू यादव ने नीतीश कुमार का स्वागत किया
लालू-नीतीश बार-बार साथ हुए, फिर जुदाई
इसके बाद से आज तक लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच सियासी अदावत जारी है. दोनों नेता बिहार की राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ सियासी जंग लड़ रहे हैं. लेकिन, 2024 में ही लालू यादव ने कई बार नीतीश कुमार को ऑफर दिया कि ‘दरवाजे खुले हैं’. लेकिन, तेजस्वी यादव ने इसे खारिज करते हुए कहा, नीतीश कुमार के लिए दरवाजे बंद हैं. दरअसल, वास्तविकता यह है कि लालू यादव और नीतीश कुमार, दोनों के बीच सियासी गणित और वैचारिक मतभेद रिश्तों को जटिल बनाते हैं. नीतीश की ‘जंगल राज’ की आलोचना और लालू की ‘पलटूराम’ और तेजस्वी यादव की ‘पलटू चाचा’ वाली तंजबाजी इस अदावत की आग में घी डाल देती है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में दोनों नेताओं के बीच क्या होता है और बिहार की राजनीति में क्या नया मोड़ आता है.

लालू यादव की दोस्ती-दुश्मनी… सत्ता, और सियासी हितों के बीच के कई सवालों में लिपटे हुए रिश्तों को दर्शाती है.
दोस्ती और अदावत का अनोखा मेल
लालू-नीतीश क्या फिर साथ आएंगे?
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू और नीतीश की यह कहानी फिर चर्चा में है. लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव अब नीतीश कुमार के खिलाफ मजबूत विपक्षी चेहरा हैं, लेकिन लालू का नीतीश कुमार को ‘खुले दरवाजे’ का ऑफर सियासी गणित की नई बिसात बिछाता है. क्या नीतीश कुमार फिर पलटकर लालू यादव के साथ हो जाएंगे, या तेजस्वी की नई पीढ़ी इस दोस्ती-अदावत को नया मोड़ देगी? यह सवाल बिहार की सियासत को और रोमांचक बनाता है.