प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि कहा है कि जांचकर्ताओं ने 2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट मामले में पीएम मोदी, आरएसएस चीफ मोहन भागवत, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत अन्य का नाम लेने के लिए उन पर दबाव बनाने की कोशिश की थी।
बीजेपी की पूर्व सांसद और मालेगांव बम धमाके में हाल ही में बरी हुईं प्रज्ञा ठाकुर ने एक सनसनीखेज दावा किया है। उन्होंने कहा है कि जांचकर्ताओं ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में पीएम मोदी, आरएसएस चीफ मोहन भागवत, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ समेत अन्य का नाम लेने के लिए उन पर दबाव बनाने की कोशिश की थी।
‘एनडीटीवी’ के अनुसार, प्रज्ञा ठाकुर ने दावा किया कि पीएम मोदी, सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा, आरएसएस से जुड़े चार लोगों को फंसाने के लिए उन्हें मजबूर किया गया था। आरएसएस नेताओं में इंद्रेश कुमार का भी नाम शामिल था।
प्रज्ञा ठाकुर ने शनिवार को कहा, ”उन्होंने मुझे राम माधव समेत कई लोगों के नाम लेने को कहा था। यह सब करने के लिए मुझे प्रताड़ित किया गया। मेरे फेफड़े जवाब दे गए और मुझे अस्पताल में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया। यह सब उस कहानी का हिस्सा होगा, जो मैं लिख रही हूं। सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता है। मैं गुजरात में रहती थी, इसलिए मुझसे पीएम मोदी का नाम लेने के लिए भी कहा गया। हालांकि, मैंने किसी का नाम नहीं लिया, क्योंकि वे मुझसे झूठ बोलने के लिए कह रहे थे।”
इससे पहले पूर्व एंटी टेरिरिस्ट स्क्वायड (एटीएस) के सदस्य रहे महबूब मुजावर ने भी कुछ ऐसा ही दावा किया था। उन्होंने कहा था कि टीम के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनसे आरएसएस चीफ मोहन भागवत को अरेस्ट करने के लिए कहा था, लेकिन मैंने उसे मानने से इनकार कर दिया। मुजावर ने शुक्रवार को भी यह दावा किया कि इसके पीछे उद्देश्य जांच को गलत दिशा में ले जाकर भगवा आतंकवाद का मामला बनाना था।
एनआईए की विशेष अदालत ने गुरुवार को प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित और पांच अन्य को मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी कर दिया। इसके बाद, प्रज्ञा समेत अन्य ने कांग्रेस की पूर्व सरकार पर इस मामले में फंसाने का आरोप लगाया और जमकर निशाना साधा। महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को हुए विस्फोट में छह लोगों की मौत के लगभग 17 साल बाद मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनके खिलाफ कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है।