होम राजनीति रिएलिटी और नैरेटिव का फर्क…क्या राहुल गांधी के एटम बम को तेजस्वी यादव ने फुस्स कर दिया?

रिएलिटी और नैरेटिव का फर्क…क्या राहुल गांधी के एटम बम को तेजस्वी यादव ने फुस्स कर दिया?

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पटना. राहुल गांधी ने शुक्रवार को संसद परिसर में एक सनसनीखेज बयान दिया था जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग (ECI) पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि उनके पास ‘एटम बम’ जैसा सबूत है, जो ECI की कथित BJP के लिए मतदाता सूची में हेरफेर को उजागर करेगा. इस दौरान राहुल ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार में मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया, जिसमें 1 करोड़ वोटरों को जोड़ा गया. उनका कहना था कि 6 महीने की जांच में ‘पुख्ता सबूत’ मिले हैं, और 5 अगस्त को बेंगलुरु में इसका खुलासा होगा. यह बयान INDIA गठबंधन की रणनीति का हिस्सा था जो बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए है. इसी बीच तेजस्वी का वोटर आईडी दावा और ECI के पलटवार ने नैरेटिव और रिएलिटी की पॉलिटिक्स का नया विमर्श शुरू कर दिया है. दरअसल, तेजस्वी यादव के उस दावे को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं होने का आरोप लगाया था. चुनाव आयोग ने सबूत के साथ तेजस्वी यादव के आरोप का जवाब सार्वजनिक तौर पर दिया है.

दरअसल, राजद नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब है. तेजस्वी यादव ने ECI के ऐप में अपना EPIC नंबर डालकर दिखाया, जिसमें ‘एरर’ आया. उन्होंने इसे SIR की गड़बड़ी का सबूत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की. लेकिन, इसके कुछ मिनट के भीतर ही ECI ने तुरंत पलटवार किया. ECI ने स्पष्ट किया कि तेजस्वी का नाम पटना के 181-दीघा विधानसभा के मतदान केंद्र में मौजूद है और उनका EPIC नंबर वैध है. ECI ने इसे ‘निराधार’ दावा करार दिया, जिससे तेजस्वी यादव के दावे झूठे साबित होते दिखे तो उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे.

रिएलिटी बनाम नैरेटिव

बता दें कि राहुल का ‘एटम बम’ बयान एक सियासी नैरेटिव बनाने की कोशिश है, जिसका उद्देश्य बिहार में SIR के खिलाफ जनता को गोलबंद करना और ECI की निष्पक्षता पर सवाल उठाना है. यहां यह भी जान लीजिये कि बिहार में मतदाता गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर (SIR) के बाद 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटे हैं. इनमें सबसे अधिक पटना और पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में हुई है. वहीं, इनकी तुलना में सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिलों में बहुत कम हुए हैं. बावजूद इसके राहुल गांधी और INDIA गठबंधन इसे अल्पसंख्यक वोटरों को दबाने की साजिश बता रहे हैं. लेकिन तेजस्वी का गलत दावा इस नैरेटिव को कमजोर करता दिखा. इसी बीच ECI के खंडन ने न सिर्फ तेजस्वी को बैकफुट पर ला दिया, बल्कि राहुल के आरोपों की गंभीरता को भी हल्का कर दिया.

सियासी रणनीति में चूक?

तेजस्वी यादव की प्रेस कॉन्फ्रेंस को गठबंधन की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा था, लेकिन उनका दावा तथ्यात्मक रूप से गलत साबित हुआ. जाहिर है यह एक बड़ी चूक थी, क्योंकि ECI ने तुरंत तथ्यों के साथ जवाब दिया. BJP ने इसे मौके के रूप में भुनाया. संबित पात्रा ने 1 अगस्त को कहा, “राहुल का एटम बम फुस्स है, तेजस्वी ने इसे और कमजोर किया”. केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने राहुल पर संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने का आरोप लगाया. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के साथ विजय कुमार सिन्हा ने भी हमलावर तेवर अपना लिये. सम्राट चौधरी ने जहां तेजस्वी यादव की शिक्षा को लेकर सवाल खड़ा कर दिया, वहीं विजय सिन्हा ने कहा कि-जैसे पिता(लालू यादव) वैसे ही पुत्र(तेजस्वी यादव) हैं. झूठ बोलने की सबसे बड़ी ठेकेदारी इन्होंने ली है. ये लोग एक तरफ संविधान की किताब लेकर चलते हैं और दूसरी तरफ संवैधानिक संस्था(चुनाव आयोग) को अपमानित करेंगे…इन लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए.

मांझी-सहनी के अपने दावे

वहीं, जीतन राम मांझी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा, “मैं तो यही समझता हूं कि ये लोग SIR को खत्म कराना चाहते हैं. उन्होंने चुनाव आयोग के काम की सराहना करते हुए कहा कि आयोग ने ड्राफ्ट तैयार कर दिया है और लोगों के पास अभी भी एक महीने का समय है कि वे लिस्ट में अपना नाम देख लें. अगर नाम नहीं है, तो उसे जुड़वा सकते हैं. उन्होंने विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि झारखंड और कर्नाटक में भी SIR होने जा रहा है, लेकिन वे इसकी चर्चा नहीं करेंगे. मांझी ने आरोप लगाया कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए वे सिर्फ ‘SIR हटाओ‘ की रट लगाए हुए हैं.दूसरी ओर वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी ने तेजस्वी यादव के दावे का बचाव करते हुए कहा है कि यह पूरी प्रक्रिया ‘फर्जीवाड़ा‘ है. उन्होंने अपनी पत्नी का उदाहरण देते हुए कहा, “मेरी पत्नी मुंबई में रहती है, फिर भी उसका नाम बिहार की वोटर लिस्ट में है. उन्होंने इसे कई तरह के फर्जीवाड़े का एक हिस्सा बताया और कहा कि ऐसे में लोकतंत्र खतरे में है.

ईसी ने पानी फेर दिया!

बहरहाल, दावों प्रतिदावों के बीच राजनीति जारी है. लेकिन, इतना साफ है कि यह घटना न केवल विरोधी दलों की तैयारी की कमजोरी और रणनीतिक चूक को बताती है, बल्कि गठबंधन के भीतर तालमेल की कमी को भी उजागर करती है. जानकार कहते हैं कि तेजस्वी यादव के वोटर आईडी विवाद और इस पर चुनाव आयोग का सबूतों के साथ पलटवार ने उनकी रणनीति पर पानी फेर दिया है. वहीं राहुल गांधी के हमलों को भी कमजोर कर दिया है. ऐसे में यह वाकया यह दिखाता है कि तेजस्वी यादव सियासी शोर मचाकर जनता से तो जुड़ना चाहते हैं, लेकिन जानकारों की नजर में तथ्यों की अनदेखी उनकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकती है. वहीं, इस एक घटना ने चुनाव आयोग पर उठते तमाम सवालों के जवाब दे दिये हैं और आरोपों के बीच आयोग की स्थिति मजबूत हुई लगती है.

ECI की भूमिका और सवाल का नैरेटिव?

वहीं, ECI ने SIR को अवैध मतदाताओं को हटाने की कवायद बताया है. 1 अगस्त को जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मतदाताओं को 1 सितंबर तक दावे-आपत्तियां दर्ज करने का मौका दिया गया है. बावजूद इसके राहुल और तेजस्वी के आरोपों ने ECI की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है और 5 अगस्त को बेंगलुरु में राहुल का खुलासा इस विवाद को नया मोड़ दे सकता है. राहुल का ‘एटम बम’ दावा सियासी नैरेटिव को मजबूत करने की कोशिश थी, लेकिन तेजस्वी की तथ्यात्मक चूक ने इसे कमजोर किया. ECI का त्वरित जवाब और तथ्य सामने लाना उनकी साख को बचाने में कामयाब रहा. लेकिन बिहार में SIR और मतदाता सूची विवाद 2025 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है. गठबंधन को अपनी रणनीति में तालमेल और तथ्यों की मजबूती पर ध्यान देना होगा.

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