ट्रंप और पुतिन
अमेरिका और रूस के बीच तनाव अपने चरम पर है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दो परमाणु पनडुब्बियों को रूस के नजदीकी क्षेत्रों में तैनात करने का आदेश दिया है. इसकी वजह है रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के वो बयान, जो अमेरिका को परमाणु हमले की अप्रत्यक्ष चेतावनी जैसे लग रहे हैं. ट्रंप ने इसे फाइनल अल्टीमेटम तक कह दिया.
इसी बयानबाजी के बीच आज से 63 साल पहले यानी 1962 के अक्टूबर की उस घटना की चर्चा हो रही है जिसे क्यूबा मिसाइल संकट कहा जाता है. ये वो समय था जब अमेरिका और सोवियत संघ एक वास्तविक परमाणु युद्ध के मुहाने पर पहुंच गए थे.
1. क्या था क्यूबा मिसाइल संकट?
इसे समझने के लिए पहले एक साल पीछे जाना होगा, यानी 1961 में. ये वो साल था जब बर्लिन की दीवार खड़ी गई थी. इससे यूरोप में तनाव चरम पर पहुंच चुका था. दूसरी तरफ वियतनाम में अमेरिका अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा था ताकि दक्षिण वियतनाम को कम्युनिस्ट उत्तर से बचा सके.
इसी समय अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष होड़ भी तेज थी. रूस ने 1959 में यूरी गगारिन को अंतरिक्ष में भेजकर अमेरिका को चौंका दिया था. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी पर दबाव था कि वो कम्युनिस्ट ताकतों के सामने मजबूती से खड़े हों.
2. सोवियत संघ और क्यूबा की डील
अमेरिका की तरफ से क्यूबा में 1961 की Bay of Pigs नाम की असफल साजिश के बाद सोवियत संघ ने क्यूबा को सैन्य सुरक्षा देने का फैसला किया. जुलाई 1962 में सोवियत नेता निकिता क्रुश्चेव और क्यूबा के फिदेल कास्त्रो के बीच एक गुप्त समझौता हुआ सोवियत संघ क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात करेगा. मकसद साफ था कि अगर अमेरिका दोबारा हमला करे, तो रूस क्यूबा की रक्षा कर सके.
3. क्यूबा और सोवियत संघ के बीच हुई डील की कहानी
The Guardian की एक खबर के मुताबिक मई 1962 में जब सोवियत संघ (रूस) ने क्यूबा में परमाणु हथियार तैनात करने का प्रस्ताव रखा, तो क्रांति से निकली क्यूबा सरकार ने तुरंत हामी भर दी. उस समय क्यूबा खुद को अमेरिका से बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहा था. अपने सशस्त्र बलों को मजबूत कर रहा था और किसी भी हमले को रोकने की रणनीति तैयार कर रहा था.
वहीं सोवियत संघ की अपनी रणनीतिक मजबूरियां और मंशाएं थीं. उस वक्त अमेरिका के मुकाबले रूस परमाणु ताकत के मामले में बहुत पीछे था अमेरिका के पास रूस से करीब सात गुना ज्यादा परमाणु वारहेड थे. जहां अमेरिका की मिसाइलें यूरोप में NATO देशों के जरिए रूस पर निशाना साधने में सक्षम थीं, वहीं सोवियत संघ के पास अमेरिका को सीधे निशाने पर लेने का कोई रास्ता नहीं था. क्यूबा में मिसाइल तैनात कर रूस इस कमजोरी को एक झटके में ताकत में बदल सकता था.
4. 8 करोड़ नागरिकों की जान खतरे में थी
14 अक्टूबर 1962 को अमेरिका का एक U-2 जासूसी विमान क्यूबा के ऊपर से उड़ान भरता है. वहां उसे सोवियत संघ द्वारा परमाणु मिसाइल साइट्स के निर्माण के सबूत मिलते हैं. क्यूबा, अमेरिका के फ्लोरिडा से सिर्फ 90 मील दूर है यानी वॉशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क जैसी बड़ी अमेरिकी आबादी मिसाइलों की सीधी ज़द में आ गई थी. अमेरिका की खुफिया एजेंसियों का अनुमान था कि करीब 8 करोड़ अमेरिकी नागरिकों की जान खतरे में है.
5. दुनिया पहुंची परमाणु युद्ध के कगार पर
अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी ने 22 अक्टूबर 1962 को राष्ट्र को संबोधित किया और क्यूबा की समुद्री नाकेबंदी की घोषणा की. यह बेहद नाजुक समय था. दोनों महाशक्तियां हथियारों से लैस थीं और किसी भी गलती से दुनिया एक भयानक युद्ध में घुस सकती थी. 9 दिन तक पूरी दुनिया की सांसें अटकी रहीं.
6. हल कैसे निकला?
आखिरकार, बातचीत और बैकचैनल डिप्लोमेसी के जरिए हल निकला. सोवियत प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव ने एक अदला-बदली का प्रस्ताव रखा. अगर अमेरिकी सोवियत संघ की सीमा से लगे तुर्की से अपनी मिसाइलें हटा लें, तो वे क्यूबा से सभी मिसाइलें हटा लेंगे. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सोवियत संघ की वापसी के बाद अमेरिका को क्यूबा पर आक्रमण न करने का भी वचन देना चाहिए. 27 अक्टूबर को कैनेडी ने इसे स्वीकार कर लिया और संकट टल गया.
संकट से सबक और बदलाव
हॉटलाइन बनी: कैनेडी और क्रुश्चेव की बातचीत में कई बार गलतफहमियां हुईं. इससे सबक लेकर व्हाइट हाउस और क्रेमलिन के बीच एक सीधा फोन संपर्क (Hotline) बनाया गया.
परमाणु हथियारों पर सोच: इस घटना के बाद दोनों देशों ने परमाणु हथियारों की दौड़ पर विचार करना शुरू किया और 1963 में परमाणु परीक्षण पर आंशिक प्रतिबंध संधि (Test Ban Treaty) पर सहमति बनी.
आज जब ट्रंप परमाणु पनडुब्बियों की बात कर रहे हैं और रूस की तरफ से डेड हैंड सिस्टम का जिक्र हो रहा है, तो ये उसी 1962 के डरावने इतिहास की याद दिला रहा है.