होम राजनीति Bihar Chunav: बिहार में चौंका रहे कांग्रेस के नये कदम, आरजेडी की बढ़ेगी टेंशन! क्या कर्नाटक और तेलंगाना प्लान पर कर रही काम?

Bihar Chunav: बिहार में चौंका रहे कांग्रेस के नये कदम, आरजेडी की बढ़ेगी टेंशन! क्या कर्नाटक और तेलंगाना प्लान पर कर रही काम?

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पटना. बिहार की राजनीति में कांग्रेस के ताजा कदम न केवल सियासी हलचल पैदा कर रहे हैं, बल्कि लगातार चौंका भी रहे हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी 10 अगस्त से 26 अगस्त तक बिहार में पदयात्रा पर निकलने वाले हैं, जिसमें वे 18 जिलों का दौरा करेंगे और महागठबंधन के साथ मिलकर विपक्ष की ताकत का प्रदर्शन करेंगे. इससे पहले हाल ही में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और अन्य नेताओं की इमारते शरिया के मौलानाओं से मुलाकात ने सबका ध्यान खींचा है. इमरान प्रतापगढ़ी जैसे प्रभावशाली नेताओं को बिहार में सक्रिय किया गया है जो मुस्लिम समुदाय में खासा असर रखते हैं. दरअसल, राजनीति के जानकार इस ‘राजनीति’ को अलग नजरिये से देख रहे हैं और कहते हैं कि ये कदम संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की रणनीति बना रही है. बता दें कि बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 18% है जो सीमांचल, मिथिलांचल और मगध की 63 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है.

महागठबंधन पर असर: आरजेडी की मुश्किलें बढ़ेंगी?

कांग्रेस की यह रणनीति महागठबंधन, खासकर आरजेडी के लिए चुनौती बन सकती है. आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर टिका है. 2015 में महागठबंधन को 80% मुस्लिम वोट मिले थे, लेकिन 2020 में यह समीकरण कमजोर हुआ, जब AIMIM ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर RJD के वोट बैंक में सेंध लगाई. अगर कांग्रेस मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने में कामयाब रही तो RJD का वोट आधार और कमजोर हो सकता है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली RJD पहले ही सीट बंटवारे और गठबंधन की रणनीति को लेकर दबाव में है.

कर्नाटक-तेलंगाना मॉडल की झलक?

राजनीति के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस की यह रणनीति कर्नाटक, तेलंगाना और केरल की तर्ज पर दिखाई देती है जहां उसने मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की. बिहार में अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस न केवल महागठबंधन में अपनी सौदेबाजी की ताकत बढ़ाएगी, बल्कि खुद को एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में भी स्थापित कर सकती है. वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा के अनुसार, “मुस्लिम वोटर अब उस उम्मीदवार को चुन रहे हैं जो बीजेपी को हराने की सबसे ज्यादा संभावना रखता हो” कांग्रेस इस भावना को भुनाने की कोशिश में है. यही कारण है कि बार-बार वक्फ कानून और एसआईआर का मुद्दा उठा रही है.

असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति को खतरा?

असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM बिहार में मुस्लिम वोटों का एक विकल्प बनकर उभरी थी. 2020 में उसने पांच सीटें जीतीं, लेकिन हाल में महागठबंधन में शामिल होने की उसकी कोशिश नाकाम रही. कांग्रेस की सक्रियता से ओवैसी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि अगर कांग्रेस मुस्लिम वोटरों को अपने साथ जोड़ लेती है तो AIMIM का वोट शेयर सिकुड़ सकता है. हालांकि, ओवैसी 45 सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी में हैं जो महागठबंधन को अप्रत्यक्ष नुकसान पहुंचा सकता है. बावजूद इसके अगर कांग्रेस चुनाव मैदान में अधिक दम खम के साथ आती दिखी तो संभव है कि मुस्लिमों का भरोसा कांग्रेस पर अधिक हो.

कांग्रेस की रणनीति: अलग राह या इंतजार?

क्या कांग्रेस बिहार में अकेले दम पर लड़ेगी या महागठबंधन में रहकर अपनी ताकत बढ़ाएगी? वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा का कहना है, कांग्रेस अगर अकेले लड़ी, तो वह बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन अभी गठबंधन में रहना उसके लिए फायदेमंद है. राहुल गांधी के हाल के बिहार दौरे और “नौकरी दो, पलायन रोको” यात्रा से पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश है. हालांकि, कांग्रेस को सवर्ण, दलित और मुस्लिम वोटों का संतुलन बनाना होगा, क्योंकि उसका आधार वोट सवर्ण भी है जो RJD के साथ गठबंधन से छिटका हुआ रहता है.

आने वाले समय की तस्वीर: कांग्रेस का उदय?

कांग्रेस की यह कवायद बिहार में उसकी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश है. कभी लालू यादव के तंज का शिकार रही कांग्रेस अब “बी” नहीं, “ए” पार्टी बनने की राह पर आगे बढ़ती दिख रही है. कांग्रेस अपने पुराने आधार वोट को भी पुख्ता करने की कवायद कर रही है. वह दलित वोटों को लुभाने में लग गई है और मुस्लिम मतदाताओं के साथ ही ओबीसी समुदाय और सवर्णों को भी अपने पाले में करने में लग गई है. इस बीच अगर मुस्लिम वोटर कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुए तो वह न केवल RJD पर दबाव बनाएगी, बल्कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए भी चुनौती पेश करेगी. हालांकि, यह रणनीति तभी कामयाब होगी जब कांग्रेस जमीन पर संगठन को मजबूत करे और गठबंधन के भीतर संतुलन बनाए रखे.

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