प्रज्ञा ठाकुर की बहन ने कहा, ‘हम लंबे समय से इस क्षण की प्रतीक्षा में थे कि एक दिन वह समय आएगा जब सत्य की जीत होगी। साध्वी जी सत्य के साथ थीं, इसलिए सत्य की जीत हुई है, साध्वी जी की जीत हुई है, भगवा की जीत हुई है, इस हिंदू राष्ट्र की जीत हुई है।’
17 साल पुराने मालेगांव विस्फोट मामले में अन्य आरोपियों के साथ पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह के बरी होने को उनकी बहन उपमा सिंह ने सत्य की जीत बताया है। NIA अदालत के फैसले पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि साध्वी प्रज्ञा सत्य के साथ थीं, इसलिए उनकी जीत हुई है। हालांकि बिना अपराध साबित हुए उन्होंने जो अत्याचार झेले हैं उन्हें शब्दों में नहीं बताया जा सकता। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाली उपमा सिंह ने ये बातें एएनआई संवाददाता से बातचीत के दौरान कहीं। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि मुकदमे के दौरान उनके परिवार को किस तरह का सदमा सहना पड़ा और किस तरह इसी दौरान उनके पिता की मृत्यु भी हो गई। उन्होंने इस फैसले को भगवा की जीत और हिंदू राष्ट्र की जीत भी बताया, साथ ही कहा कि भारत को आतंकी देश घोषित करने का कुछ लोगों की जो साजिश थी, वह भी असफल हो गई।
पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी उपमा सिंह ने प्रज्ञा ठाकुर के संघर्ष की तुलना भगवान राम को मिले वनवास से करते हुए कहा, ‘भगवान राम के समय में त्रेता युग था, और यह कलयुग है। तो इसलिए कलयुग में ज्यादा समय तो अवश्य लगा, परंतु सच उस समय भी जीता था और सच इस समय भी जीता है। आज भी जीत सत्य की ही हुई है। और साध्वीजी सत्य के साथ हैं इसलिए साध्वी जी की विजय हुई है।’
‘इतनी प्रताड़ना मिली कि शरीर बेकार हो गया’
उन्होंने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है कि शायद विश्व के इतिहास में यह पहली घटना है, जिसमें किसी महिला पर बिना किसी अपराध के साबित हुए, उसे मनमाने ढंग से प्रताड़ना दी गई और इतनी प्रताड़ना दी गई कि जिसको शब्दों में भी बयां नहीं किया जा सकता। जिसने झेला है वही जानती हैं, और उसका प्रमाण है अपनी युवा अवस्था के दौरान फिजिकल फिट रही लड़की, फिजिकल ट्रेंड लड़की, फिजिकल टीचर रही लड़की जिसने बाद में संन्यास ले लिया, अब एक ऐसा शरीर बन चुका है कि आज उसे चलने फिरने के लिए भी सोचना पड़ता है।’
‘मां मुंह बंद करके रोती थीं, पिता सदमे में चल बसे’
साध्वी की गिरफ्तारी के बाद माता-पिता को लगे सदमे के बारे में बताते हुए उपमा बहुत भावुक हो गईं और उनकी आंखें भर आईं। रुंधे हुए गले से उन्होंने कहा, ‘हमारी मां स्टोर रूम में जाकर मुंह बंद करके चुपचाप रोती थीं, ताकि घर के अन्य सदस्यों को इस बात का पता ना चल सके। पिताजी चूंकि क्षत्रिय थे और स्वभाव से भी वह ठाकुर थे, साथ ही संघ के पदाधिकारी और बड़े ही दृढ़ व्यक्ति होने के कारण वह किसी के सामने रोते नहीं थे। पर अपने बच्चे की चिंता तो जानवरों को भी होती है और वह तो मनुष्य थे, ऐसे में उन्हें भी साध्वी की बहुत चिंता थी और उनका मन रोता था। जब साध्वी जी को कैंसर होने का पता चला तो चिंता के कारण हमारे पिता बहुत तनाव में आ गए। इसके बाद में हायपर टेंशन के कारण उनको ब्रेन हेमरेज हुआ और इसी वजह से कुछ दिन बिस्तर पर रहने के बाद वे चल बसे।’
‘यह भगवा की जीत, हिंदू राष्ट्र की जीत’
प्रज्ञा ठाकुर के बरी होने पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा ‘इस फैसले से हमारा पूरा परिवार प्रसन्न हैं, हम लंबे समय से इस क्षण की प्रतीक्षा में थे कि एक दिन वह समय आएगा जब सत्य की जीत होगी। आज सत्य की जीत हुई है। साध्वी जी की जीत हुई है, भगवा की जीत हुई है, इस हिंदू राष्ट्र की जीत हुई है। सनातन धर्म की जीत हुई है और भारतवर्ष की जीत हुई है। विरोधियों का, राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों का यह स्वप्न कि भारतवर्ष को, हिंदू राष्ट्र को आंतकवादी देश घोषित कराने की जो योजना थी, जो षडयंत्र था, उसमें वह विफल हुए हैं और सनातनियों की जीत हुई है।’
धमाकों में मारे गए थे 6 लोग और 95 घायल हुए थे
बता दें कि मुंबई की विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अदालत ने गुरुवार को 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाकों में शामिल सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। इस मामले में कुल सात लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधांकर धर द्विवेदी (शंकराचार्य) और समीर कुलकर्णी शामिल हैं।
29 सितंबर, 2008 को मालेगांव शहर के भिज्जू चौक स्थित एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोग मारे गए और 95 अन्य घायल हुए थे। मूल रूप से, इस मामले में 11 लोगों पर आरोप लगाए गए थे, लेकिन अदालत ने अंततः सात लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे। पीड़ित परिवारों के वकील ने कहा कि वह सात लोगों को बरी किए जाने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे।