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bihar chunav 2025 luck of these 5 big leaders is going to shine will they become kingmakers for government formations

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पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 गुमनामी और राजनीतिक अज्ञातवास काट रहे नेताओं के लिए क्या खुशखबरी लेकर आएगा? क्या इस बार के बिहार चुनाव में कई नेताओं की कुंभकरणी नींद खुलने वाली है? क्या राजनीतिक वनवास काट रहे नेता बिहार की राजनीति में नया रोल रोल निभाने वाले वाले हैं? बिहार की सियासत में वैसे तो कई नेता हैं, जो अचानक से राजनीति से गायब हो गए. लेकिन कम से कम पांच ऐसे नेता हैं जो अब भी राजनीतिक रुप से जिंदा हैं. इनमें से सभी ने कभी लालू यादव से लेकर नीतीश कुमार को समय-समय पर खूब मदद किया है. हालांकि, ये नेता हाल के वर्षों में कई कारणों से राजनीतिक वनवास काट रहे हैं या फिर गायब हो गए हैं. लेकिन बिहार चुनाव 2025 में इन नेताओं का भाग्य उदय हो सकता है. इस बार इन नेताओं का ठिकाना एनडीए के साथ-साथ महागठबंधन और पीके की जन सुराज पार्टी में भी तलाशे जा रहे हैं. आइए उन पांच नेताओं के बारे में जानें, जिनकी पकड़ अभी भी जमीन पर काफी मजबूत है.

1- नागमणी

नागमणी, जो कभी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के करीबी रहे, बिहार की सियासत में कुशवाहा (कोइरी) समुदाय के बीच प्रभाव रखते हैं. बिहार की आबादी में कुशवाहा समुदाय लगभग 4-5% है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है. 2014 के बाद नागमणी की सक्रियता कम हुई और वह राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) से अलग होने के बाद गुमनामी में चले गए. उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा और बेटे सुदर्शन सिंह के जरिए वह फिर से सियासी जमीन तलाश रहे हैं. 2025 में उनकी रणनीति कुशवाहा वोट बैंक को एकजुट कर गठबंधनों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की है. उनकी क्षेत्रीय छवि और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता उन्हें फिर से चर्चा में ला सकती है. कहा जा रहा है कि नागमणी पर आरजेडी और जन सुराज दोनों की नजर है.

2- अरुण कुमार

जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार भूमिहार जाति में जबरदस्त पैठ रखते हैं. अपने दम पर कई विधानसभा सीटों का गणित अरुण कुमार बिगाड़ सकते हैं. अरुण कुमार वैसे फिलहाल एलजेपी में हैं, लेकिन वह बीते कई सालों से सही ठिकाने की तलाश में हैं. साल 2014 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी से सांसद चुने गए थे. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा से मनमुटाव के बाद उनका अभी तक सही राजनीतिक ठिकाना नहीं मिल पाया है. अरुण कुमार नीतीश कुमार के कभी करीबी रहे तो कभी उनकी छाती पर दाल रगड़ने वाले बयान से सुर्खियों में रह चुके हैं. अरुण कुमार इस बार के बिहार चुनाव में बड़ा रोल अदा करें तो हैरानी नहीं होगी.

3- ददन पहलवान

ददन पहलवान, जिन्हें ददन यादव के नाम से भी जाना जाता है, बक्सर क्षेत्र में अपनी बाहुबली छवि के लिए मशहूर रहे हैं. यादव और मुस्लिम वोट बैंक, उनकी ताकत है. कई निर्दलीय विधायक रह चुके हैं. जेडीयू और आरजेडी दोनों में भी रहे हैं. बसपा के टिकट पर भी चुनाव लड़ चुके हैं. 2015 के बाद आपराधिक मामलों और सियासी गतिविधियों में कमी के कारण वह हाशिए पर चले गए. 2025 में वह फिर से निर्दलीय या किसी क्षेत्रीय दल के साथ अपनी सियासी पारी शुरू कर सकते हैं. उनकी स्थानीय प्रभाव और जनता से सीधा जुड़ाव उन्हें बक्सर के अगल-बगल की कुछ सीटों पर निर्णायक बना सकता है.

4- रेणु कुशवाहा

रेणु कुशवाहा, जो कुशवाहा समुदाय से आती हैं, कभी जदयू और राजद के साथ सक्रिय थीं. बीते कुछ सालों में उनकी सियासी सक्रियता कम रही और वह गुमनामी में चली गईं. साल 2024 में खगड़िया से एलजेपी से टिकट के दावेदारों में सबसे आगे थी. लेकिन टिकट नहीं देने पर गुमनामी चली गईं. एक महीने पहले तेजस्वी यादव की मौजूदगी में आरजेडी ज्वाइन की है. कुशवाहा और महिला होना रेणु कुशवाहा के फेवर में जा रहा है. कुशवाहा और अन्य ओबीसी वोटरों के बीच उनकी स्वीकार्यता उनकी ताकत है. 2025 में वह अपने समुदाय और महिला मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही हैं. उनकी रणनीति सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण पर आधारित है, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में प्रभाव डाल सकती है.

5- जयप्रकाश नारायण यादव

जयप्रकाश नारायण यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के करीबी माने जाते हैं. लेकिन हाल के वर्षों में तेजस्वी यादव की पार्टी में दबदबे के बाद वह तकरीबन सार्वजनिक जीवन से गायब रहे हैं. बेटी को पिछला चुनाव में हार के बाद वह कम ही नजर आते हैं. कभी लालू यादव के साथ साये की तरह साथ चलने वाले जयप्रकाश यादव एक बार फिर से आरजेडी में दमदार वापसी कर सकते हैं. 2010 के बाद से उनका राजनीतिक प्रभाव थोड़ा कम हुआ है, लेकिन यादव समाज में उनकी पकड़ मजबूत है. यादव समाज बिहार का एक बड़ा वोट बैंक है, जो चुनाव के दौरान निर्णायक भूमिका निभाता है. 2025 में उनका सक्रिय होना आरजेडी के लिए फायदे का सौदा साबित हबो सकता है.

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