भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं अब एक बार फिर संकट में आ गई हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ती मांगों और राजनैतिक संवेदनशीलताओं के कारण यह तय करना मुश्किल होता जा रहा है कि समाधान कैसे निकलेगा।
भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता को रुकावट का सामना करना पड़ा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए 1 अगस्त से भारतीय वस्तुओं पर 25% आयात शुल्क यानी टैरिफ लगाने की घोषणा की। ट्रंप ने इसका कारण भारत के हाई टैरिफ लगाने और गैर-टैरिफ बाधाओं को बताया है। इसके साथ ही, अमेरिका ने रूस से भारत के संबंधों को लेकर एक अतिरिक्त दंडात्मक कार्रवाई की बात भी कही है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक बढ़ाना था। हालांकि, अमेरिका द्वारा भारत के कृषि और डेयरी बाजारों में अधिक पहुंच की मांग ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया। भारत ने इन क्षेत्रों को हमेशा मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर रखा है, क्योंकि ये देश की 1.4 अरब आबादी के लगभग आधे हिस्से की आजीविका का आधार हैं।
कृषि को लेकर तनातनी
अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी उत्पादों के बाजार को खोले, लेकिन भारत का तर्क है कि ऐसा करने से करोड़ों गरीब किसानों की आजीविका पर संकट आ जाएगा। भारत की नीति रही है कि वह अपने कृषि क्षेत्र को मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से बाहर रखे ताकि घरेलू उत्पादकों की रक्षा हो सके।
मक्का, सोयाबीन, गेहूं और एथेनॉल जैसे अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने को लेकर भारत ने साफ इनकार कर दिया है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका अपने कृषि उत्पादों को भारी सब्सिडी देता है, जिससे भारतीय किसान असमान प्रतिस्पर्धा में फंस सकते हैं। अमेरिकी किसानों को प्रति वर्ष औसतन 61,000 डॉलर की सब्सिडी मिलती है, जबकि भारतीय किसानों को केवल 282 डॉलर।
इसके अलावा, भारत में जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों पर प्रतिबंध है, जबकि अमेरिका में मक्का और सोयाबीन का अधिकांश उत्पादन जीएम आधारित है। भारतीय वाहन उद्योग, फार्मा कंपनियों और लघु उद्योगों ने भी बाजार को अचानक पूरी तरह खोलने का विरोध किया है, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे अमेरिकी आयात के कारण उनके कारोबार पर असर पड़ेगा।
अमेरिका का आरोप
वाइट हाउस के अनुसार, भारत कृषि उत्पादों पर औसतन 39% ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका में यह दर मात्र 5% है। कई मामलों में भारत 50% तक शुल्क वसूलता है, जिसे ट्रंप प्रशासन भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में सबसे बड़ी बाधा मानता है।
अमेरिका चाहता है कि भारत कृषि, एथेनॉल, डेयरी, शराब, वाहन, फार्मा और चिकित्सा उपकरणों में अपने बाजार को और अधिक खोले। इसके साथ ही अमेरिका डिजिटल व्यापार, डेटा प्रवाह, पेटेंट कानूनों और गैर-शुल्कीय प्रतिबंधों में सुधार की मांग कर रहा है।
हालांकि भारत ने कुछ अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा उत्पादों का आयात बढ़ाया है और सीमित टैरिफ कटौती की पेशकश भी की है, लेकिन नई दिल्ली का कहना है कि उसे अभी तक वॉशिंगटन की ओर से स्पष्ट प्रस्ताव नहीं मिले हैं। भारतीय अधिकारियों को ट्रंप की अप्रत्याशित व्यापार नीतियों को लेकर चिंता है।
किसानों की राजनीति
भारत की करीब 4 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान महज 16% है, लेकिन यह देश की लगभग आधी आबादी की आजीविका का आधार है। यही कारण है कि किसानों को भारत में सबसे प्रभावशाली वोट बैंक माना जाता है। चार साल पहले जब मोदी सरकार ने कृषि सुधार कानूनों को लागू करने की कोशिश की थी, तो भारी विरोध के चलते उसे पीछे हटना पड़ा था। ऐसे में अमेरिका से सस्ते कृषि आयात की संभावना से स्थानीय कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है और विपक्ष को सरकार पर हमला करने का नया मौका मिल सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत अमेरिका को कृषि क्षेत्र में बाजार पहुंच देता है, तो उसे अन्य व्यापारिक साझेदारों को भी समान छूट देनी पड़ सकती है, जिससे उसकी समग्र व्यापार रणनीति गड़बड़ा सकती है।