क्या है यह घोटाला?
बिहार में हाल ही में 70,000 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया गया है जिस पर विपक्ष नीतीश सरकार को घेर रहा है. यह आरोप कैग रिपोर्ट के आधार पर लगाया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार ने 70,877 करोड़ रुपये की परियोजनाओं के उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किए हैं. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार सरकार ने कई विभागों को दी गई राशि की उपयोगिता रिपोर्ट 18 महीने के भीतर जमा नहीं की जो नियमों के खिलाफ है. पवन खेड़ा का कहना है कि यह पैसा विभिन्न योजनाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के लिए था, लेकिन इसका हिसाब-किताब गायब है. अगर यह सच है तो यह बिहार के विकास बजट पर गहरा असर डाल सकता है. विपक्ष इसे भ्रष्टाचार का सबूत बता रहा है, जबकि सरकार इसे प्रक्रियात्मक कमी कह रही है.
घोटाले की डिटेल
– शिक्षा विभाग में 12,623 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित है.
– शहरी विकास विभाग में 11,065 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित है.
– ग्रामीण विकास विभाग में 7,800 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित है.
– कृषि विभाग में 2,107 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित है.
विपक्ष का आरोप
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि नीतीश सरकार ने घोटाले को छिपाने की कोशिश की है और जनता के पैसे का दुरुपयोग किया है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि पहले ये लोग घोटाला करते हैं और फिर लोगों को मछली-मटन-मुसलमान में फंसाने लगते हैं. जबकि, सरकार ने आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो सभी राज्यों में लागू होती है. वित्त विभाग के प्रधान सचिव आनंद किशोर ने कहा है कि यह कोई गबन या वित्तीय गड़बड़ी का मामला नहीं है.
सरकार का पक्ष
जानकारों का नजरिया
जानकारों का मानना है कि यह घोटाला साबित करना मुश्किल होगा, क्योंकि उपयोगिता रिपोर्ट न जमा करना तकनीकी कमी हो सकती है न कि सीधा भ्रष्टाचार. एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा कि अगर फंड का दुरुपयोग हुआ तो इसका असर योजनाओं पर दिखना चाहिए, जिसकी जांच जरूरी है. वहीं, राजनीति कदे जानकार मानते हैं कि विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाना चाहता है, लेकिन बिना ठोस सबूत के यह दावा हवा-हवाई लगता है. कैग की रिपोर्ट सवाल उठाती है, लेकिन नतीजा जांच पर निर्भर करेगा.
सवाल और चुनौतियां
आगे क्या होगा?
यह विवाद 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी गहमागहमी को बढ़ा सकता है. विपक्ष इसे जनता के सामने बड़ा मुद्दा बनाना चाहता है, जबकि सरकार अपनी छवि बचाने के लिए तेजी से कदम उठा रही है. जांच और पारदर्शिता ही तय करेगी कि यह सचमुच घोटाला था या सिर्फ आरोप. बिहार की जनता की नजर अब सरकार और विपक्ष दोनों पर टिकी है, क्योंकि यह मामला उनके विकास से सीधे जुड़ा है.