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Prashant Kishor and Bihar Chunav 2025: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से बिहार में किस गठबंधन को नुकसान पहुंचेगा? PK की तुलना आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी से क्यों हो रही है?
हाइलाइट्स
- प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में उभर रही है
- पीके की तुलना आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी से हो रही है
- पीके ने बिहार में 650 दिनों से अधिक की पदयात्रा की है
पटना. प्रशांत किशोर की राजनीति अचानक से बिहार में हिलोरें मारने लगी है. पीके तेजी की जन सुराज पार्टी तेजी से बिहार चुनाव में एक नया विकल्प बनकर उभर रही है. राजनीतिक गलियारे में पीके की तुलना आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी से होने लगी है, जिन्होंने अकेले अपने दम पर आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू को पानी पिला दिया था. बाद में वाईएसआर कांग्रेस के सर्वेसर्वा जगन सियासत में एक ताकतवर शख्सियत बन गए. दोनों नेताओं की राजनीतिक शैली, रणनीति और सामाजिक प्रभाव में कई समानताएं हैं. दोनों नेताओं ने हजारों किलोमीटर पैदल यात्राएं कीं. जगन ने 2011 में वाईएसआर कांग्रेस की स्थापना कर कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रभुत्व को चुनौती दी थी. उनकी पार्टी ने सामाजिक कल्याण और क्षेत्रीय गौरव के मुद्दों को उठाकर आंध्र प्रदेश में एक नया विकल्प पेश किया. इसी तरह, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी बिहार में जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी जैसे पारंपरिक दलों के खिलाफ एक नई ताकत बन रही है. पीके ने शिक्षा, रोजगार और नई व्यवस्था के मुद्दों को केंद्र में रखकर बिहार की जनता को बदलाव का वादा किया है.
पीके क्या बिहार के जगन बनेंगे?
पीके ने बिहार में 650 दिनों से अधिक की पदयात्रा कर लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया है. जगन ने आंध्र में युवाओं और गरीब तबकों को अपनी नीतियों का केंद्र बनाया, जैसे नवरत्नालु योजना. पीके भी बिहार में युवाओं और शिक्षित वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर 40 सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारने के वादे के साथ उन्होंने सामाजिक बदलाव और आर्थिक सुधार का वादा किया है.
बिहार में पारंपरिक दलों से टकराव
कुलमिलाकर जगन और पीके में बहुत समानताएं हैं. जगन की तरह पीके भी बिहार में स्थापित सियासी ताकतों को चुनौती दे रहे हैं. लेकिन उनके सामने अलग-अलग चुनौतियां हैं. जगन ने आंध्र में एक मजबूत क्षेत्रीय पहचान और अपने पिता की विरासत का लाभ उठाया, जबकि पीके बिहार में पूरी तरह नई जमीन तैयार कर रहे हैं. जगन की सफलता 2019 में उनकी पार्टी की जीत से साबित हुई, लेकिन 2024 में टीडीपी के हाथों हार ने उनकी सीमाएं दिखाईं. पीके के लिए बिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच जगह बनाना चुनौतीपूर्ण होगा. प्रशांत किशोर और जगन मोहन रेड्डी की सियासी शैली में समानताएं हैं, लेकिन बिहार का सियासी परिदृश्य आंध्र से अधिक जटिल है. पीके की सभाओं में उमड़ रही भीड़ और मोमेंटम वोटों में तब्दील होगा या नहीं, यह उनकी रणनीति और टिकट वितरण पर निर्भर कर सकता है.

भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा…और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा… और पढ़ें