होम नॉलेज कौनसी कारतूस किस हथियार से चली थी, कैसे पता चलता है? पहलगाम हमले के आतंकियों के हथियारों पर गृहमंत्री ने लगाई मुहर

कौनसी कारतूस किस हथियार से चली थी, कैसे पता चलता है? पहलगाम हमले के आतंकियों के हथियारों पर गृहमंत्री ने लगाई मुहर

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पहलगाम आतंकी हमले के तीन दोषी मुठभेड़ में मारे गए हैं. Image Credit source: Anton Petrus/Moment/Getty Images

गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में जानकारी दी कि पहलगाम आतंकी हमले के तीन दोषी मुठभेड़ में मारे गए हैं. फॉरेंसिक जांच में भी इस बात की पुष्टि हो गई है कि जो कारतूस पहलगाम में आतंकियों ने इस्तेमाल किए थे और जो कारतूस मारे गए आतंकियों ने सेना के जवानों पर फायर किए थे, दोनों में समानता है. जांच के दौरान कई और तथ्य प्रकाश में आए हैं, जो इस बात को पुख्ता करते हैं कि मारे गए आतंकी ही पहलगाम हमले के दोषी थे. इन्हें ऑपरेशन महादेव के तहत चले अभियान में मारा गया है.

गृह मंत्री के बयान के बाद यह जान लेना चाहिए कि क्या है इसका पूरा प्रॉसेस जिससे इस तरह की चीजें पता चलती हैं? चंडीगढ़ फोरेंसिक प्रयोगशाला में कैसे पता चला कि बरामद कारतूस किस हथियार से चलाए गए? क्या है जांच की पूरी प्रक्रिया? किस तरह यह जांच अपराधियों को सजा दिलाने में मददगार होती है? आइए, एक-एक तथ्य जानते हैं.

अदालत में ठोस सबूत पेश करती है फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट

आपराधिक मामलों में जब भी किसी फायरआर्म (हथियार) का इस्तेमाल होता है, तो घटनास्थल से बरामद कारतूस, गोली या खोखा जांच के लिए सबसे महत्वपूर्ण सबूतों में से एक होते हैं. फॉरेंसिक विज्ञान की एक शाखा, जिसे बैलिस्टिक्स कहा जाता है, इसी जांच का जिम्मा उठाती है. बैलिस्टिक्स के विशेषज्ञ यह पता लगाते हैं कि बरामद कारतूस या गोली किस हथियार से चलाई गई थी. यह प्रक्रिया न केवल अपराधी की पहचान में मदद करती है, बल्कि अदालत में ठोस सबूत भी प्रस्तुत करती है.

Gun And Bullet Test

बैलिस्टिक्स क्या है?

बैलिस्टिक्स, फॉरेंसिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें गोलियों, कारतूसों, और हथियारों के बीच संबंध स्थापित किया जाता है. इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है.

  1. इंटर्नल बैलिस्टिक्स गोली के ट्रिगर दबाने से लेकर बैरल से बाहर निकलने तक की प्रक्रिया.
  2. एक्सटर्नल बैलिस्टिक्स गोली के बैरल से निकलने के बाद हवा में उड़ने की प्रक्रिया.
  3. टर्मिनल बैलिस्टिक्स गोली के लक्ष्य से टकराने के बाद की प्रक्रिया.

फॉरेंसिक जांच में मुख्य रूप से इंटर्नल बैलिस्टिक्स और हथियार-कारतूस के संबंध की जांच की जाती है.

कारतूस से हथियार की पहचान कैसे होती है?

हर फायरआर्म की बनावट, उसके बैरल (barrel), फायरिंग पिन (firing pin), ब्रीच फेस (breech face), और अन्य हिस्सों में सूक्ष्म (microscopic) अंतर होते हैं. जब कोई हथियार गोली चलाता है, तो ये हिस्से कारतूस और गोली पर विशिष्ट निशान छोड़ते हैं. विज्ञान की भाषा में इन्हें टूल मार्क्स (tool marks) कहा जाता है. ये निशान किसी भी हथियार के लिए लगभग अद्वितीय होते हैं, जैसे फिंगरप्रिंट.

मुख्य निशान जो कारतूस पर मिलते हैं उनमें निम्न तथ्य पाए जाते हैं.

  • फायरिंग पिन इम्प्रेशन: फायरिंग पिन के कारतूस के प्राइमर पर पड़ने से बना निशान.
  • ब्रीच फेस मार्क्स: कारतूस के पीछे के हिस्से पर ब्रीच फेस के दबाव से बने निशान.
  • एक्सट्रैक्टर और इजेक्टर मार्क्स: कारतूस को बाहर निकालने वाले हिस्सों के निशान.
  • राइफलिंग मार्क्स: गोली के बैरल से गुजरने पर बने घुमावदार निशान.

Operation Mahadev Attacker Bullet Test (1)

जांच की प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है?

  • सबूतों को इकट्ठा करके: घटनास्थल से कारतूस, गोली, और हथियार को सावधानीपूर्वक इकट्ठा किया जाता है. हर सबूत को सील कर, लेबल किया जाता है ताकि छेड़छाड़ न हो.
  • प्रारंभिक जांच-पड़ताल:फॉरेंसिक लैब में सबसे पहले कारतूस और गोली का दृश्य निरीक्षण किया जाता है. इससे पता चलता है कि किस प्रकार के हथियार का इस्तेमाल हुआ (जैसे रिवॉल्वर, पिस्टल, राइफल आदि).
  • माइक्रोस्कोपिक जांच:विशेषज्ञ माइक्रोस्कोप की मदद से कारतूस और गोली पर बने टूल मार्क्स का अध्ययन करते हैं. इसके लिए कंपाउंड माइक्रोस्कोप या कंपेरिजन माइक्रोस्कोप (comparison microscope) का इस्तेमाल होता है, जिसमें एक साथ दो वस्तुओं की तुलना की जा सकती है.
  • टेस्ट फायरिंग:जब संदिग्ध हथियार बरामद हो जाता है, तो उससे टेस्ट फायरिंग की जाती है. टेस्ट फायरिंग से निकले कारतूस और गोली के निशान की तुलना घटनास्थल से मिले कारतूस/गोली से की जाती है.

कंप्यूटराइज्ड एनालिसिस

आजकल जांच के दौरान Integrated Ballistics Identification System जैसे कंप्यूटराइज्ड सिस्टम का इस्तेमाल होता है, जिसमें निशानों की डिजिटल तुलना की जाती है. इससे सटीकता और जांच की गति दोनों बढ़ जाती है.

रिपोर्ट तैयार करना

विशेषज्ञ अपनी जांच के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं, जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि कारतूस/गोली किस हथियार से चलाई गई थी या नहीं.

भारत में बैलिस्टिक्स जांच

भारत में केंद्रीय और राज्य स्तर पर कई फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं हैं, जहां बैलिस्टिक्स जांच की जाती है. दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई, चंडीगढ़, कोलकाता आदि में अत्याधुनिक लैब्स हैं. भारत में बैलिस्टिक्स के क्षेत्र में कई विशेषज्ञ हैं, जिनमें से एक प्रमुख नाम डॉ. एस. के. जैन का है, जो केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली में वरिष्ठ वैज्ञानिक रह चुके हैं. डॉ. जैन ने बैलिस्टिक्स के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण केसों की जांच की है और इस विषय पर कई शोध पत्र भी प्रकाशित किए हैं.

Bullet

क्या है कानूनी महत्व?

भारतीय न्याय व्यवस्था में बैलिस्टिक्स रिपोर्ट को महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जाता है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत फॉरेंसिक विशेषज्ञ की राय को अदालत में स्वीकार किया जाता है. कई बार बैलिस्टिक्स रिपोर्ट के आधार पर ही अपराधी को दोषी या निर्दोष ठहराया जाता है.

जांच में चुनौतियां और सावधानियां

  • अगर अपराध के बाद हथियार को साफ या मरम्मत कर दिया जाए, तो टूल मार्क्स बदल सकते हैं, जिससे जांच मुश्किल हो जाती है.
  • कई बार गोली या कारतूस बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे निशान पढ़ना कठिन हो जाता है.
  • विशेषज्ञ की गलती से गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं, इसलिए जांच में अत्यधिक सावधानी बरती जाती है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

लंबे समय तक STF उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे आईपीएस अधिकारी डॉ. अरविन्द चतुर्वेदी कहते हैं कि कारतूस से हथियार की पहचान एक अत्यंत वैज्ञानिक, तकनीकी और संवेदनशील प्रक्रिया है. बैलिस्टिक्स विशेषज्ञों की भूमिका इसमें केंद्रीय होती है. भारत में इस क्षेत्र में लगातार तकनीकी उन्नति हो रही है, जिससे अपराधियों को पकड़ना और न्याय दिलाना आसान हो रहा है.

डॉ. एस. के. जैन जैसे विशेषज्ञों के योगदान से यह क्षेत्र और भी मजबूत हुआ है. डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि मौके से बरामद खोखों से भी जांच अधिकारी जान लेते हैं कि कारतूस किस हथियार से फायर किया गया है लेकिन उस जानकारी की कोई वैल्यू अदालत में नहीं होती.

इस तरह हम पाते हैं कि फॉरेंसिक बैलिस्टिक्स न केवल अपराध की गुत्थी सुलझाने में मदद करता है, बल्कि समाज में न्याय और सुरक्षा की भावना को भी मजबूत करता है.

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