निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) शुरू करने का आदेश जारी किया था, जिसका उद्देश्य निर्वाचक नामावली को शुद्ध करना और गैर-नागरिकों को मतदाता सूची से हटाना बताया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में निर्वाचन आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने के लिए समयसीमा तय करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर सुनवाई 12 और 13 अगस्त को होगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से आठ अगस्त तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को चेतावनी दी है कि यदि इस प्रक्रिया में कोई भी अनियमितता या गड़बड़ी पाई गई, तो वह हस्तक्षेप करने से नहीं हिचकेगा।
इससे पहले निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष ग्रहण पुनरीक्षण यानी SIR के बाद मतदाता सूची का मसौदा प्रकाशित कर दिया गया है और इसकी प्रति सभी राजनीतिक दलों को माहिया कर दी गई है। निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया मसौदा मतदाता सूची को वेबसाइट पर भी अपलोड कर दिया गया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक बार फिर आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग द्वारा एक अगस्त को प्रकाशित की जाने वाली मसौदा सूची से लोगों को बाहर रखा जा रहा है जिससे वे मतदान का अपना महत्वपूर्ण अधिकार खो देंगे। पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और उसे कानून का पालन करना होगा और अगर कोई गड़बड़ी हो रही है, तो याचिकाकर्ता इसे अदालत के संज्ञान में ला सकते हैं।
पीठ ने सिब्बल और भूषण से कहा, ‘‘आप उन 15 लोगों को सामने लाएं जिनके बारे में उनका दावा है कि वे मृत हैं, लेकिन वे जीवित हैं, हम इससे निपटेंगे।’’ पीठ ने लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं और निर्वाचन आयोग की ओर से नोडल अधिकारी नियुक्त किए।
याचिका में क्या कहा गया है?
याचिकाकर्ताओं में प्रमुख रूप से एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) शामिल है। उन्होंने चुनाव आयोग की 24 जून की अधिसूचना को चुनौती दी है जिसमें बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू की गई थी। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 तथा मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 में तय प्रक्रिया से हटकर है।
सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा, “अगर चुनाव आयोग अधिसूचना से जरा भी विचलित होता है… तो हम हस्तक्षेप करेंगे।”
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पक्ष रखते हुए कहा कि आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 21(3) के तहत ऐसा अधिकार है। आयोग ने यह भी कहा कि- राज्य में शहरी पलायन, जनसांख्यिकीय बदलाव और पिछले 20 वर्षों से गहन पुनरीक्षण न होने की स्थिति को देखते हुए यह प्रक्रिया जरूरी है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी जाली दस्तावेजों से प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए उन्हें मान्य दस्तावेजों की सूची में शामिल करने से पहले सावधानी बरतनी होगी।
65 लाख मतदाताओं को लेकर विवाद
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग की प्रक्रिया में लगभग 65 लाख लोग मतदाता सूची से बाहर किए जा रहे हैं।
उनके अनुसार, यह बड़ा आंकड़ा है और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। इसके जवाब में चुनाव आयोग के वकील द्विवेदी ने कहा कि अभी यह संख्या अंतिम नहीं है। उन्होंने कहा, “जब तक आपत्तियों का निपटारा नहीं होता, वास्तविक तस्वीर सामने नहीं आएगी। हमें उम्मीद है कि 15 सितंबर तक अंतिम सूची सामने आ जाएगी।”
आगे की प्रक्रिया
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मामले की दो चरणों में सुनवाई हो सकती है।
- पहला चरण 12-13 अगस्त को
- और दूसरा चरण सितंबर में, जब अंतिम सूची पर आपत्तियों का निपटारा हो जाएगा।
नोडल वकील की नियुक्ति
कोर्ट ने एडवोकेट नेहा राठी को याचिकाकर्ताओं की ओर से नोडल काउंसिल नियुक्त किया है और उन्हें 8 अगस्त तक पूरी याचिका और दस्तावेज़ों की सूची सौंपने को कहा है।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आधार और मतदाता पहचान पत्र के ‘‘प्रामाणिक होने की धारणा’’ पर जोर देते हुए बिहार में मतदाता सूची के मसौदे के प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में कराए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हमेशा के लिये अंतिम निर्णय करेगा।
उसने निर्वाचन आयोग से कहा कि वह उसके (शीर्ष अदालत के) पहले के आदेश का अनुपालन करते हुए बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के लिए आधार और मतदाता पहचान पत्र को स्वीकार करना जारी रखे। न्यायालय ने कहा कि दोनों दस्तावेजों के ‘‘प्रामाणिक होने की धारणा है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक राशन कार्ड का सवाल है, तो हम यह कह सकते हैं कि उसकी आसानी से जालसाजी की जा सकती है, लेकिन आधार और मतदाता पहचान पत्र की कुछ विश्वसनीयता है और उनके प्रामाणिक होने की धारणा है। आप इन दस्तावेजों को स्वीकार करना जारी रखें।’’