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ट्रंप का गेम प्लान: चेहरा पीस प्रेसिडेंट का, लेकिन असल किरदार वॉर सेल्समैन का!

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अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

डोनाल्ड ट्रंप ने जब दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति की कमान संभाली तो उन्होंने खुद को पीस प्रेसिडेंट यानी शांति का अग्रदूत बताया था. लेकिन उनके पीछे चल रहा असल एजेंडा अब खुलकर दुनिया के सामने आ गया है.

पिछले छह महीनों में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जो सैन्य टकराव हुए, चाहें ईरान-इजराइल हों या भारत-पाकिस्तान या फिर थाईलैंड-कंबोडिया, इन सबमें कहीं न कहीं ट्रंप की नीतियों या उनके प्रशासन की छाया साफ नजर आ रही है. आइए जानते हैं कैसे?

हथियार बेचने का अभियान

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका को हथियारों का सबसे बड़ा विक्रेता बनाए रखने की रणनीति पर काम किया. उनकी नीतियों के कारण न सिर्फ यूरोप के देशों ने अपने रक्षा बजट में ऐतिहासिक बढ़ोतरी की बल्कि अमेरिकी कंपनियों के साथ अरबों डॉलर की डील भी की. जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड और यूके ने नाटो के नाम पर दबाव में आकर 200 अरब डॉलर से ज्यादा की हथियार खरीदारी की. F-35 फाइटर जेट, पैट्रियट मिसाइल सिस्टम और HIMARS जैसे हथियार अमेरिकी कंपनियों ने यूरोप को बेचे, वो भी रूस के साथ युद्ध का डर दिखाकर.

युद्ध भड़काने वाली रणनीति: पहले भड़काओ, फिर बेचो हथियार

1. ईरान बनाम इजराइल:

अमेरिका और इजराइल के रणनीतिक गठबंधन के तहत ट्रंप ने ईरान पर दबाव लगातार बढ़ाया. पहले 60 दिनों का अल्टीमेटम दिया है कि ईरान न्यूक्लियर डील पर सहमति बना लें. मगर इससे पहले ही इजराइल ने ईरान पर हमला कर दिया. दोनों देशों में 12 दिन की जंग चली, जिसमें इजराइल की हिफाजत के लिए अमेरिका ने भी सीधी एंट्री ली. अब जब ईरान और इजराइल की जंग हुई तो अमेरिकी रक्षा कंपनियों को अरबों डॉलर के ऑर्डर मिले.

2.भारत-पाकिस्तान:

कश्मीर और आतंकवाद जैसे मुद्दों को उभारने के साथ ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा. अमेरिका ने पहले एफ -16 की अपग्रेडिंग पाकिस्तान को दी. पाकिस्तान की पीठ थपथपाने का सिलसिला जारी रखा है. पाकिस्तानी सेना और सरकार के साथ नए सिरे से दोस्ती कर रहा हे तो भारत को एफ-35, सशस्त्र ड्रोन और मिसाइल रक्षा सिस्टम ऑफर किए.

3. थाईलैंड-कंबोडिया:

दक्षिण-पूर्व एशिया में दबदबा बनाए रखने के लिए ट्रंप के दौर में शुरू हुई रणनीति ने अब टकराव का रूप ले लिया. चीन को घेरने के नाम पर ASEAN देशों को हथियार खरीदने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. मतलब ट्रंप पीस प्रेसिडेंट की आड़ में वॉर सेल्समैन की भूमिका निभा रहे हैं.

ट्रंप ने जनता के सामने बार-बार शांति, बातचीत और डील्स की बातें की- No more endless wars का नारा दिया. 24 घंटे में युद्ध रुकवाने का ऐलान किया. लेकिन, बैकग्राउंड में उनका असली मिशन था अमेरिकी मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स को नई जान देना. हथियार कंपनियों जैसे Lockheed Martin, Raytheon, Boeing के शेयर ट्रम्प की वजह से रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचे.

अब आगे क्या? रूस और अमेरिका आमने-सामने

जैसे-जैसे अलग-अलग फ्रंट पर युद्ध भड़कते जा रहे हैं, अमेरिका और रूस सीधे आमने-सामने आ गए हैं. यूक्रेन में पहले ही युद्ध चल रहा है, अब रूस की डेडलाइन दस-बारह दिन करने के नाम पर क्रेमलिन और व्हाइट हाउस एक दूसरे से तू-तू-मैं-मैं कर रहे है. दस अगस्त के बाद होने वाली उथल पुथल भी ट्रम्प के गेम प्लान का हिस्सा है जिसमे वो बाइडेन के वॉर को और अधिक बड़े स्तर पर ले जाएँगे .

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