दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने 1990 से 2005 तक बिहार में लालू-राबड़ी शासनकाल को “जंगलराज” की संज्ञा 1997 में दी थी. लेकिन, पटना के मनेर से राजद विधायक भाई वीरेंद्र के कथित वायरल ऑडियो के आधार पर एक बार फिर ”बिहार में जंगलराज की दस्तक” वाली बात एनडीए के दल बार-बार दोहरा रहे हैं. वह यह बताना चाह रहे हैं कि अगर बिहार में सत्ता बदली हुई तो प्रदेश फिर उसी ”अराजक दौर” में चला जाएगा जब सूबे में ”जंगलराज” की स्थिति थी. ऐसे में आइये जानते हैं कि वो मुख्य घटनाएं कौन सी हैं जिसको लेकर ”बिहार में जंगलराज” का नैरेटिव बार-बार गूंजता है और इसके आधार पर राजनीति भी परवान चढ़ती है.
सत्ता की क्रूरता का उदाहरण चंपा बिस्वास बलात्कार कांड
शिल्पी जैन और गौतम हत्याकांड में लालू यादव के साले साधु यादव का नाम आया था.
शिल्पी जैन-गौतम सिंह हत्याकांड का रहस्य और लीपापोती
बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के आतंक का ‘काला दौर’

चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहला कर मारने का आरोप शहाबुद्दीन पर लगा था.
जी कृष्णैया हत्याकांड में दिखा था अराजक भीड़ का उन्माद

डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड भी लालू यादव के शासनकाल में हुआ था.
बिहार में अपहरण उद्योग, सामाजिक-आर्थिक संकट का दौर

लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल को पटना हाईकोर्ट ने अराजक और जंगलराज कहा था.
आईएएस अधिकारी को धमकी दी, दिखी सत्ता की दबंगई
2001 में साधु यादव पर परिवहन आयुक्त एन.के. सिन्हा के कार्यालय में घुसकर बंदूक की नोंक पर स्थानांतरण आदेश पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगा. 2022 में उन्हें तीन साल की सजा हुई, लेकिन जमानत पर रिहा हो गए. यह घटना सत्ता के दुरुपयोग और प्रशासन पर दबाव का उदाहरण थी.
बिहार में बाढ़ राहत घोटाला, बड़ी लूट का था उदाहरण
लालू यादव की बेटी की शादी में कार शो रूम कांड, लूटपाट
साधु यादव पर लालू की बेटी रोहिणी आचार्य की शादी के बहाने पटना के शोरूम से कारें, गहने और फर्नीचर लूटने का आरोप लगा. यह घटना जंगलराज में सत्ता के दुरुपयोग और लूट की संस्कृति को जाहिर करती है.
चारा घोटाला-भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा

सुशील मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी ने मिलकर बिहार में जंगलराज के खिलाफ संघर्ष किया.
जंगलराज का अंत: सुशील मोदी और नीतीश की भूमिका
सुशील मोदी और नीतीश कुमार ने 2005 में जंगलराज को खत्म करने के लिए संघर्ष किया. बूथ लूट के बावजूद उनकी जीत ने बिहार को नई दिशा दी. हालांकि, जंगलराज की छवि आज भी राजद पर सवाल उठाती है.जंगलराज ने बिहार की सामाजिक-आर्थिक संरचना को तोड़ दिया था. अपराध और भ्रष्टाचार ने निवेशकों का पलायन कराया जिससे बिहार विकास में पिछड़ गया. यह दौर आज भी राजद की छवि पर दाग है और बिहार की सियासत में बहस, विमर्श और राजनीतिक हमले का विषय बना हुआ है.