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रूस-चीन को पछाड़कर, भारत कैसे बना बाघों का गढ़? जानें 5 बड़ी वजह

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दुनिया में सबसे ज्‍यादा 3 हजार से अधिक टाइगर भारत में हैं.

बाघ, जिसे जंगल का राजा कहा जाता है, आज भी अपनी खूबसूरती और ताकत के लिए जाना जाता है. लेकिन बीते कुछ दशकों में बाघों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई थी, जिससे इनकी प्रजाति पर संकट के बादल मंडराने लगे थे. भारत, रूस और चीन, तीनों देशों में बाघ पाए जाते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने बाघों की संख्या के मामले में रूस और चीन को पीछे छोड़ दिया है. बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि दोनों ही देश भारत के आसपास भी नहीं ठहरते.

भारत सरकार की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है, हर राज्य में बढ़ रही है, जबकि रूस और चीन में यह वृद्धि उतनी उल्लेखनीय नहीं रही. इंटरनेशनल टाइगर डे के मौके पर जान लेते हैं कि आखिर भारत ने यह मुकाम कैसे हासिल किया? इसके पीछे कौन-सी पांच बड़ी वजहें हैं?

रूस, चीन और भारत में बाघों के आंकड़े

वर्ल्ड पॉपुलेशन की 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बाघों की संख्या 3100 से अधिक तक पहुंच गई है. यह दुनिया के कुल बाघों का लगभग 75 फीसदी है. साल 2006 में यह संख्या मात्र 1,411 थी, यानी बीते 15-16 वर्षों में बाघों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है.

रूस में मुख्य रूप से साइबेरियन टाइगर (अमूर टाइगर) पाए जाते हैं. आंकड़ों के अनुसार, रूस में बाघों की संख्या लगभग 750 है. रूस ने भी संरक्षण के प्रयास किए हैं, लेकिन वहां का भौगोलिक क्षेत्र, मौसम और शिकार की चुनौतियां भारत से बिल्कुल अलग हैं.

चीन में बाघों की संख्या बेहद कम है. चीन में केवल 20 वाइल्ड टाइगर ही बचे हैं, जिनमें से अधिकतर दक्षिण चीन टाइगर और कुछ अमूर टाइगर हैं. चीन में बाघों का शिकार और प्राकृतिक आवास की कमी बड़ी समस्या के रूप में है.

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5 कारण, भारत में सबसे ज्यादा बाघ क्यों?

भारत में बाघों की संख्या बढ़ने के यूं तो कई कारण हैं लेकिन महत्वपूर्ण कारणों पर विचार करें तो इनकी संख्या मोटे तौर पर पाँच उभर कर हमारे सामने आती है. आइए, एक-एक कर जानते हैं.

1- प्रोजेक्ट टाइगर और इसकी रणनीति

साल 1973 में भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या को रोकना और उनके प्राकृतिक आवासों का संरक्षण करना था. इस प्रोजेक्ट के तहत देश भर में 54 टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं, जो लगभग 75 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं. सरकार ने बाघों की निगरानी, संरक्षण और उनके आवास के विस्तार के लिए बजट में लगातार वृद्धि की है. इसके अलावा, बाघों की गणना के लिए अत्याधुनिक तकनीक (कैमरा ट्रैप, DNA एनालिसिस) का इस्तेमाल किया गया, जिससे सही आंकड़े और रणनीति बनाना आसान हुआ.

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2- सख्त कानून और शिकारियों पर कार्रवाई

भारत में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत बाघों का शिकार पूरी तरह प्रतिबंधित है. शिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है. इसके अलावा, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी जैसी संस्थाओं ने बाघों के संरक्षण के लिए निगरानी और कानून के पालन को और मजबूत किया है. रूस और चीन में भी कानून हैं, लेकिन भारत में इनका क्रियान्वयन अपेक्षाकृत ज्यादा प्रभावी तरीके से हो रहा है.

3- स्थानीय समुदायों की भागीदारी

भारत में बाघों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है. कई जगहों पर ग्रामीणों को बाघ पर्यटन से रोजगार मिला है, जिससे वे बाघों के संरक्षण में सहयोगी बन गए हैं. इसके अलावा, मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए मुआवजा योजनाएं और जागरूकता अभियान चलाए गए हैं. रूस और चीन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सीमित है, जिससे संरक्षण के प्रयासों में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है.

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4- जंगल की कटाई और खनन पर नियंत्रण

भारत ने बाघों के प्राकृतिक आवासों को बचाने और बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. जंगलों की कटाई पर रोक, अवैध खनन पर नियंत्रण, और बाघों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर बनाए गए हैं, जिससे वे एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में सुरक्षित जा सकें. रूस में बर्फीले जंगल और चीन में शहरीकरण के कारण बाघों के आवास सिकुड़ गए हैं, जबकि भारत में संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार हुआ है.

5- शिकार और अवैध व्यापार पर नियंत्रण

भारत में बाघों के शिकार और उनके अंगों के अवैध व्यापार पर सख्त नियंत्रण किया गया है. वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो जैसी एजेंसियां लगातार निगरानी करती हैं. अंतरराष्ट्रीय सहयोग के तहत भी भारत ने बाघों के अंगों के व्यापार पर रोक लगाने में सफलता पाई है. रूस और चीन में भी प्रयास हुए हैं, लेकिन वहां की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण चुनौतियां ज्यादा हैं.

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मिसाल हैं भारत के प्रयास

तुलनात्मक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भारत, रूस और चीन-तीनों देशों में बाघों के संरक्षण के प्रयास हुए हैं, लेकिन भारत ने जिस तरह से सरकारी, सामाजिक और तकनीकी स्तर पर समन्वित प्रयास किए, वह अन्य देशों के लिए मिसाल है. केन्द्रीय एजेंसियों के साथ राज्यों का समन्वय शानदार होने की वजह से भी बाघों की संख्या में इजाफा दर्ज हुआ है. रूस में बाघों का संरक्षण मुख्य रूप से सरकारी एजेंसियों तक सीमित रहा, जबकि चीन में शहरीकरण और पारंपरिक दवाओं में बाघ के अंगों की मांग ने समस्या को और बढ़ाया. भारत ने न केवल कानून बनाए, बल्कि उनका प्रभावी क्रियान्वयन भी किया और स्थानीय लोगों को संरक्षण में भागीदार बनाया.

भारत का बाघों के संरक्षण में सफल होना केवल सरकारी नीतियों का परिणाम नहीं, बल्कि समाज, विज्ञान, कानून और स्थानीय समुदायों के संयुक्त प्रयासों का नतीजा है. रूस और चीन के मुकाबले भारत ने बाघों के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण तैयार किया है, जिससे उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा है कि यदि इच्छाशक्ति और समन्वित प्रयास हों, तो संकटग्रस्त प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है.

क्यों मनाते हैं इंटरनेशनल टाइगर्स डे?

दुनियाभर में बाघों को बचाने और लोगों को इनके प्रति जागरूक करने के लिए 2010 से इंटरनेशनल टाइगर्स डे मनाने की शुरूआत हुई. इसी साल रूस के पीटर्सबर्ग में आयोजित एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में यह दिन मनाने का फैसला लिया गया. इसके साथ ही सभी देशों ने बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसने भारत ने पूरा करके इतिहास रचा.

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