होम राजनीति prashant kishor jan suraj party bihar chunav 2025 buzz know indication of crowd gathering in pk meetings

prashant kishor jan suraj party bihar chunav 2025 buzz know indication of crowd gathering in pk meetings

द्वारा
पटना. बिहार की राजनीति में 2025 का विधानसभा चुनाव एक नया मोड़ लेने के लिए तैयार है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक और सर्वेसर्वा प्रशांत किशोर इसके केंद्र में आ रहे हैं. पीके की जन सुराज पार्टी की चर्चा न केवल बिहार के गांव-देहात में है, बल्कि शहरों की सड़कों पर दौड़ती पीले रंग की गाड़ियां कुछ और संकेत दे रही हैं.  प्रशांत किशोर की सभाओं में उमड़ रही भीड़ ने बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. प्रशांत किशोर, जिन्हें पीके के नाम से जाना जाता है, कभी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं को सत्ता का रास्ता दिखाने वाले रणनीतिकार हुआ करते थे. लेकिन अब उनकी अपनी पार्टी जन सुराज दोनों गठबंधनों को ‘घंटी’ बजाने के लिए तैयार है. ऐसे में सवाल उठता है कि यह ‘घंटी’ किसके लिए खतरे की होगी एनडीए, महागठबंधन या फिर दोनों के लिए? क्या पीके की सभाओं में उमड़ रही भीड़ वोटों में तब्दील होगी?

प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी की औपचारिक शुरुआत की थी, जिसके बाद उनकी सभाओं में भारी भीड़ देखने को मिल रही है. अररिया, कटिहार, और पूर्णिया जैसे क्षेत्रों में उनकी रैलियों में उमड़ा जनसैलाब इस बात का संकेत है कि बिहार की जनता पारंपरिक दलों जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी से अब ऊब चुकी है. रविवार को लखीसराय के सुर्यगढ़ा में पीके की रैली कुछ और संकेत दे रही है. पीके ने शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों को उठाकर युवाओं और मध्यम वर्ग को लुभाने की कोशिश की है. उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न ‘स्कूल बैग’ इस बात का प्रतीक है कि वे शिक्षा और युवा केंद्रित राजनीति पर जोर दे रहे हैं.

जन सुराज का उदय और पीके का नया अवतार

हालांकि, पीके की सभाओं में भीड़ का आना सियासी विश्लेषकों के लिए एक पहेली बना हुआ है. कटिहार के बहादुरगंज में उनकी एक सभा में बिरयानी वितरण को लेकर मची अफरातफरी ने सवाल खड़े किए कि क्या यह भीड़ वास्तव में बदलाव की चाहत में है या लालच का परिणाम है? फिर भी कई स्थानीय लोगों का कहना है कि पीके की सभाओं में लोग बिना किसी प्रलोभन के सिर्फ उनकी बात सुनने और बदलाव की उम्मीद में आ रहे हैं. लखीसराय के सूर्यगढ़ा में 27 जुलाई की यह भीड़ भी इसी का संकेत दे रही है. अररिया जैसे सीमावर्ती इलाकों में पीके का संदेश ग्रामीण और युवा मतदाताओं तक पहुंच रहा है.

किसकी ‘घंटी’ बजेगी?

प्रशांत किशोर ने खुले तौर पर कहा है कि उनकी पार्टी ‘वोट कटवा’ नहीं, बल्कि ‘वोट जीतने’ वाली पार्टी है. उन्होंने दावा किया कि जन सुराज सबसे पहले छोटे दलों, फिर जेडीयू, और अगर ताकत बढ़ी तो बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी. उनका मुख्य निशाना नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर है, जिन्हें वे ‘थकी हुई व्यवस्था’ और ‘जंगलराज’ से जोड़ते हैं. हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज का प्रभाव आरजेडी के यादव-मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में कमजोर हो सकता है, क्योंकि यह वोट बैंक कट्टर रूप से आरजेडी के साथ है. दूसरी ओर सवर्ण और कुछ ओबीसी वोटर, खासकर ब्राह्मण और कुर्मी, पीके की ओर आकर्षित हो सकते हैं.

त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना

बिहार में 2025 का चुनाव अब त्रिकोणीय होने की ओर बढ़ रहा है. जन सुराज की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा और 40 मुस्लिम उम्मीदवारों का ऐलान इसे और रोचक बनाता है. पीके का ‘BRDK फॉर्मूला’ (ब्राह्मण, राजपूत, दलित, कुर्मी) जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश है, लेकिन यह कितना कारगर होगा, यह समय बताएगा. बीते साल चार सीटों पर हुए उपचुनावों में जन सुराज का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा, लेकिन 2025 में उनकी रणनीति और संगठनात्मक ताकत एनडीए और महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है.

कुलमिलाकर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में नई सियासी हवा ला रही है. उनकी सभाओं में उमड़ रही भीड़ यह दर्शाती है कि लोग पारंपरिक दलों से निराश हैं और एक नई व्यवस्था की तलाश में हैं. लेकिन इस भीड़ को वोटों में बदलना और बिहार की जटिल जातिगत समीकरणों को साधना पीके के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. उनकी ‘घंटी’ मुख्य रूप से जेडीयू, आरजेडी और कुछ छोटे दलों के लिए खतरे की हो सकती है, लेकिन अगर पीके बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगा पाए तो 2025 का चुनाव बिहार की सियासत में एक ऐतिहासिक मोड़ ला सकता है.

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया