प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी की औपचारिक शुरुआत की थी, जिसके बाद उनकी सभाओं में भारी भीड़ देखने को मिल रही है. अररिया, कटिहार, और पूर्णिया जैसे क्षेत्रों में उनकी रैलियों में उमड़ा जनसैलाब इस बात का संकेत है कि बिहार की जनता पारंपरिक दलों जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी से अब ऊब चुकी है. रविवार को लखीसराय के सुर्यगढ़ा में पीके की रैली कुछ और संकेत दे रही है. पीके ने शिक्षा, रोजगार और पलायन जैसे मुद्दों को उठाकर युवाओं और मध्यम वर्ग को लुभाने की कोशिश की है. उनकी पार्टी का चुनाव चिह्न ‘स्कूल बैग’ इस बात का प्रतीक है कि वे शिक्षा और युवा केंद्रित राजनीति पर जोर दे रहे हैं.
जन सुराज का उदय और पीके का नया अवतार
किसकी ‘घंटी’ बजेगी?
प्रशांत किशोर ने खुले तौर पर कहा है कि उनकी पार्टी ‘वोट कटवा’ नहीं, बल्कि ‘वोट जीतने’ वाली पार्टी है. उन्होंने दावा किया कि जन सुराज सबसे पहले छोटे दलों, फिर जेडीयू, और अगर ताकत बढ़ी तो बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी. उनका मुख्य निशाना नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर है, जिन्हें वे ‘थकी हुई व्यवस्था’ और ‘जंगलराज’ से जोड़ते हैं. हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज का प्रभाव आरजेडी के यादव-मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में कमजोर हो सकता है, क्योंकि यह वोट बैंक कट्टर रूप से आरजेडी के साथ है. दूसरी ओर सवर्ण और कुछ ओबीसी वोटर, खासकर ब्राह्मण और कुर्मी, पीके की ओर आकर्षित हो सकते हैं.
त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना
कुलमिलाकर प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार में नई सियासी हवा ला रही है. उनकी सभाओं में उमड़ रही भीड़ यह दर्शाती है कि लोग पारंपरिक दलों से निराश हैं और एक नई व्यवस्था की तलाश में हैं. लेकिन इस भीड़ को वोटों में बदलना और बिहार की जटिल जातिगत समीकरणों को साधना पीके के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. उनकी ‘घंटी’ मुख्य रूप से जेडीयू, आरजेडी और कुछ छोटे दलों के लिए खतरे की हो सकती है, लेकिन अगर पीके बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगा पाए तो 2025 का चुनाव बिहार की सियासत में एक ऐतिहासिक मोड़ ला सकता है.