होम राजनीति Bihar Miyapur Massacre: मियांपुर नरसंहार की चीखें आज भी गांव की गलियों में गूंजती हैं! बेहद भयावह है खून से रंगी सुबह की दर्दनाक दास्तान

Bihar Miyapur Massacre: मियांपुर नरसंहार की चीखें आज भी गांव की गलियों में गूंजती हैं! बेहद भयावह है खून से रंगी सुबह की दर्दनाक दास्तान

द्वारा

Last Updated:

Bihar Miyapur Massacre: बिहार के औरंगाबाद जिले में 16 जून 2000 की रात को भयावह घटनाक्रम मियांपुर नरसंहार हुआ था.इस सामूहिक हत्याकांड ने सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को झकझोर दिया. रणवीर सेना के हमलावरों ने 34 …और पढ़ें

बिहार में नरसंहार की प्रतीकात्मक तस्वीर. (एआई जेनरेटेड)

हाइलाइट्स

  • जातीय संघर्ष को लेकर मियांपुर में रणवीर सेना ने 34 लोगों को बेरहमी से मार डाला.
  • नक्सलियों और जमींदारों के बीच प्रतिशोध ने बिहार में जातीय हिंसा को भड़का दिया.
  • 2013 में हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया, जिससे न्याय की मांग अधूरी है.
पटना/औरंगाबाद. मियांपुर नरसंहार बिहार के उस दौर का हिस्सा है जब नक्सलवाद चरम पर था और जातिवादी घृणा की साजिशें हर कदम पर रची जा रही थीं. 1990 के दशक में बिहार के मध्य और दक्षिणी हिस्सों में भूमिहार और राजपूत जैसे सवर्णों ने नक्सलियों के आतंक और उनके प्रभाव को रोकने के लिए निजी सेनाएं बनाईं. 1994 में भूमिहार समुदाय की गठित रणवीर सेना इसका प्रमुख उदाहरण थी. यह संगठन नक्सलियों और उनके समर्थक माने जाने वालों को निशाना बनाता था. औरंगाबाद जिले के मियांपुर में भी कुछ ऐसी ही स्थिति का हवाला दिया गया और भयावह कांड को नृशंसता के साथ अंजाम दिया गया.

नरसंहार के कारण: प्रतिशोध और शक्ति प्रदर्शन-दरअसल, मियांपुर में यादव समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त था और नक्सलियों के प्रति सहानुभूति रखता था.यही कारण था कि वह रणवीर सेना के निशाने पर आ गया. मियांपुर नरसंहार का तात्कालिक कारण रणवीर सेना और नक्सलियों के बीच चल रहा प्रतिशोध था. 1990 के दशक में नक्सल समूहों में शामिल माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) और CPI(ML) ने सवर्णों के खिलाफ कई हमले किए. कहा तो जाता था कि जमींदारों को निशाना बना रहे हैं, लेकिन कई ऐसे भी इनके हमलों के शिकार होते रहे जो बेहद गरीबी में जीवन जीते थे. 1992 में बारा नरसंहार में MCC ने 44 सवर्ण किसानों की हत्या की थी. जवाब में रणवीर सेना ने दलितों और पिछड़ों के खिलाफ हमले तेज किए. मियांपुर में यादवों को निशाना बनाने के पीछे रणवीर सेना का मकसद नक्सलियों के कथित समर्थन आधार को कमजोर करना और क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित करना था.

मियांपुर में 16 जून 2000 की रात

16 जून 2000 की रात औरंगाबाद के मियांपुर गांव में रणवीर सेना के सशस्त्र सदस्यों ने हमला बोल दिया था. रात के अंधेरे में सैकड़ों हमलावरों ने गांव को घेर लिया और अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. 34 लोग मारे गए और इनमें अधिकांश यादव समुदाय के थे. मरने वालों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे. हमलावरों ने घरों में आग लगाई और कई शवों को क्षत-विक्षत कर दिया. इस क्रूरता ने नरसंहार को और भयावह बना दिया. स्थानीय पुलिस पर निष्क्रियता और रणवीर सेना के साथ मिलीभगत के आरोप लगे, क्योंकि हमला घंटों तक चला और कोई तत्काल कार्रवाई नहीं हुई.

Mianpur narasanhar, Mianpur  massacre, Mianpur mass murder,  Aurangabad Mianpur  massacre,  Bihar caste conflict, Bihar class conflict, Ranvir Sena, Bihar caste politics, caste politics, Bihar news, jungle raj in Bihar, Lalu Yadav jungle raj, Bihar assembly elections, Bihar politics, औरंगाबाद मियांपुर नरसंहार, मियांपुर सामूहिक हत्याकांड, बिहार जातीय संघर्ष, बिहार वर्ग संघर्ष, रणवीर सेना, बिहार जाति की राजनीति, जाति की राजनीति, बिहार समाचार, बिहार में जंगलराज, लालू यादव का जंगलराज, बिहार विधानसभा चुनाव, बिहार की राजनीति,
औरंगाबाद के मियांपुर की गलियों में आज भी नरसंहार का क्रूर यादें बुजुर्गों के जेहन में जीवित हैं.

सामाजिक प्रभाव: ध्रुवीकरण और भय का माहौल

मियांपुर नरसंहार ने बिहार के सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंचाई. यादव समुदाय में रणवीर सेना और सवर्णों के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा. गांवों में भय का माहौल बन गया और जातीय तनाव बढ़ गया. दलित और पिछड़े समुदायों में नक्सलियों के प्रति समर्थन बढ़ा, क्योंकि वे इसे जमींदारी उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के रूप में देखने लगे. इस घटना ने ग्रामीण बिहार में सामाजिक एकता को और कमजोर किया. इस घटना ने जाति-आधारित हिंसा को बढ़ावा दिया. कई परिवार गांव छोड़कर पलायन कर गए जिससे सामाजिक-आर्थिक संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा.

राजनीतिक प्रभाव: सत्ता और नक्सलवाद पर बहस

नरसंहार ने बिहार की राजनीति को भी हिलाकर रख दिया. उस समय लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सरकार थी, जिसने रणवीर सेना के खिलाफ सख्त कार्रवाई का वादा किया. सरकार ने इस घटना के बाद नक्सलवाद और निजी सेनाओं के खिलाफ कड़े प्रशासनिक कदम उठाए. RJD ने आमिर दास आयोग का गठन किया था जिसका उद्देश्य रणवीर सेना और राजनीतिक दलों के बीच संभावित संबंधों की जांच करना था. हालांकि, 2006 में नीतीश कुमार सरकार ने इस आयोग को भंग कर दिया जिससे सवाल उठे कि क्या जदयू और भाजपा रणवीर सेना को संरक्षण दे रहे थे. 2013 में पटना हाई कोर्ट ने मियांपुर नरसंहार के 10 में से 9 आरोपियों को बरी कर दिया. RJD और CPI(ML) जैसे दलों ने इसे न्याय का मखौल बताया.

सामाजिक प्रभाव: ध्रुवीकरण और भय का माहौलमियांपुर नरसंहार ने बिहार के सामाजिक ताने-बाने को गहरी चोट पहुंचाई. यादव समुदाय में रणवीर सेना और सवर्णों के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा. गांवों में भय का माहौल बन गया और जातीय तनाव बढ़ गया. दलित और पिछड़े समुदायों में नक्सलियों के प्रति समर्थन बढ़ा, क्योंकि वे इसे जमींदारी उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के रूप में देखने लगे. इस घटना ने ग्रामीण बिहार में सामाजिक एकता को और कमजोर किया. इस घटना ने जाति-आधारित हिंसा को बढ़ावा दिया. कई परिवार गांव छोड़कर पलायन कर गए जिससे सामाजिक-आर्थिक संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा.
मियांरपुर नरसंहा में मारे गए लोगों की याद में स्मारक बनाया गया है.

जातीय संहारों का सच: न्याय की राह में चुनौतियां

मियांपुर नरसंहार के बाद कानूनी प्रक्रिया लंबी और जटिल रही. 2010 में तीन लोगों को मृत्युदंड और 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, लेकिन 2013 में हाई कोर्ट ने सभी 23 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. इस फैसले ने पीड़ितों के परिवारों में निराशा और गुस्सा पैदा किया. CPI(ML) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील और CBI जांच की माँग की, लेकिन न्याय अब तक अधूरा है.

बिहार में जातीय नरसंहारों का दीर्घकालिक प्रभाव

मियांपुर नरसंहार रणवीर सेना के लिए भी टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. इस घटना के बाद नक्सल समूहों ने रणवीर सेना के खिलाफ जवाबी हमले तेज किए और 2001 में सेना का एक प्रमुख कमांडर चुन्नू शर्मा पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. यह नरसंहार बिहार में नक्सलवाद और जातीय हिंसा के खिलाफ नीतिगत बहस को तेज करने का कारण बना. इस घटना के बाद औपचारिक रूप से बड़े नरसंहार की घटनाएं रुक गईं, लेकिन छोटे-मोटे जातीय टकराव और सामाजिक तनाव की खबरें समय-समय पर सामने आती रहीं. हाल के वर्षों में राजनीतिक गठजोड़ और नीतियों ने स्थिति को नियंत्रित करने में मदद की है.

authorimg

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट…और पढ़ें

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट… और पढ़ें

homebihar

मियांपुर नरसंहार की चीखें आज भी गांव की गलियों में गूंजती हैं! भयावह था मंजर

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया