थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद
थाईलैंड की सेना इस समय एक ऐसे देश पर आक्रामक है, जिसके पास खुद की मजबूत सेना नहीं है. थाईलैंड और कंबोडिया के बीच जारी सीमा संघर्ष अब फुल-फ्लेश वॉर में बदलता जा रहा है. थाईलैंड ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए विवादित फुमकुएआ चोटी पर कब्जा कर लिया है और कंबोडियाई सीमा में 300 मीटर अंदर तक घुस गई है. इसके जवाब में कंबोडिया ने तुरंत युद्धविराम का आह्वान किया, लेकिन थाईलैंड ने इसे अपनी शर्तों पर स्वीकार करने की बात कही.
थाई सेना ने अमेरिकी कोल्ट राइफल्स, मोर्टार और ड्रोन हमलों का इस्तेमाल कर कंबोडियाई सैन्य ठिकानों को तहस-नहस कर दिया है. रात के समय आर्टिलरी हमले और भी भयावह हो गए हैं. कंबोडिया के प्रीह विहियर प्रांत के थाव गांव के पास थाई सैनिक तैनात हो चुके हैं.
गहरा रहा मानवीय संकट, 1.35 लाख लोग विस्थापित
इस संघर्ष का सबसे बड़ा नुकसान सीमावर्ती आबादी को उठाना पड़ रहा है. अब तक 1 लाख 35 हज़ार लोगों को शरणार्थी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी है. बुरीराम, सुरिन, सिसाकेट और उबोन में बने इन शिविरों में खाने-पीने और चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी हो रही है. प्रीह विहियर क्षेत्र से अकेले 10 हज़ार से ज्यादा लोगों को पलायन करना पड़ा है.
कंबोडियाई सरकार का कहना है कि थाई हमलों में बुनियादी ढांचा तबाह हो गया है और कई लोगों के घर नष्ट हो चुके हैं. विस्थापितों के पास न तो रहने का स्थायी ठिकाना है और न ही खेती करने की ज़मीन.
थाईलैंड की रणनीति और चीन की भूमिका
थाईलैंड ने कंबोडिया पर दबाव बनाए रखने के लिए वायुसेना के फाइटर जेट्स और यूक्रेन से आए बख्तरबंद वाहनों का इस्तेमाल किया है. इसके पीछे कंबोडिया की ओर से थाईलैंड के मींचे प्रांत पर रॉकेट हमले को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसके बाद थाईलैंड ने सीमावर्ती इलाकों में मार्शल लॉ लागू कर दिया.
दूसरी ओर, चीन ने इस संघर्ष में तटस्थता दिखाई है और कंबोडिया को हथियार आपूर्ति से इनकार किया है. जानकारों का मानना है कि थाईलैंड इस मौके का फायदा उठाकर विवादित क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण चाहता है, जबकि कंबोडिया के पास संसाधनों की कमी के कारण जवाबी कार्रवाई का विकल्प सीमित है.
आगे क्या हो सकता है?
थाईलैंड की आक्रामकता जारी रहने से मानवीय संकट और गहरा सकता है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से मध्यस्थता की कोशिशें अभी नाकाफी हैं, क्योंकि थाईलैंड किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहा. ऐसे में, सीमावर्ती इलाकों में रह रहे नागरिकों को लंबे समय तक संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है.