होम राजनीति Bihar Chunav: क्या पप्पू यादव और बीजेपी के बीच सांठ-गांठ है, क्या ओवौसी की तरह वो भी एनडीए की मदद कर रहे हैं? आरजेडी नेता के बयान का मतलब समझिये

Bihar Chunav: क्या पप्पू यादव और बीजेपी के बीच सांठ-गांठ है, क्या ओवौसी की तरह वो भी एनडीए की मदद कर रहे हैं? आरजेडी नेता के बयान का मतलब समझिये

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Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति में दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों के भीतरखाने भी तल्खी चरम पर है. एनडीए में जहां चिराग पासवान के तेवर तल्ख हैं और उन्होंने सीधे नीतीश सरकार से मोर्चा ले रखा है तो महागठबंधन …और पढ़ें

तेजस्वी यादव और पप्पू यादव की अदावत महागठबंधन को भारी न पड़ जाए!

हाइलाइट्स

  • पप्पू यादव की तेजस्वी यादव पर तंजकशी से महागठबंधन में दरार!
  • सुधाकर सिंह ने पप्पू यादव को बीजेपी-आरएसएस का चेहरा बताया.
  • सुधाकर ने पप्पू को 2020 के ओवैसी फैक्टर की तरह संकेत किया.
पटना. बिहार की राजनीति में तल्खी चरम पर है. एनडीए में चिराग पासवान के नीतीश कुमार पर हमले और महागठबंधन में पप्पू यादव की तेजस्वी यादव पर कसे गए तंज ने सियासी माहौल गरमा दिया है. ताजा मामला महागठबंधन का है जहां राजद सांसद सुधाकर सिंह ने पप्पू यादव को बीजेपी-आरएसएस का चेहरा बताकर सियासी सनसनी मचा दी है. उनका दावा है कि पप्पू को एनडीए से कोई शिकायत नहीं, बल्कि वे महागठबंधन को कमजोर कर रहे हैं. दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तल्ख बयानबाजी और गठबंधनों के भीतर के दलों में ‘दिलों की दरारें’ उजागर हो रही हैं.इसी कड़ी में राजद सांसद सुधाकर सिंह ने सांसद पप्पू यादव पर तीखा हमला बोलते हुए उन्हें बीजेपी और आरएसएस का चेहरा करार दे दिया है. सुधाकर सिंह का कहना है कि पप्पू यादव को एनडीए सरकार से कोई शिकायत नहीं, बल्कि वे महागठबंधन की सेकुलर ताकतों को कमजोर करने में जुटे हैं. दरअसल, सुधाकर सिंह का यह बयान पप्पू यादव की तेजस्वी यादव पर लगातार हमलावर रणनीति को लेकर है. बता दें कि पप्पू यादव ने हाल ही में तेजस्वी को ”अहंकारी युवराज” कहकर निशाना साधा और महागठबंधन में कांग्रेस को बड़ा भाई बनाने की वकालत की. ऐसे में पप्पू यादव और तेजस्वी यादव की तनातनी ने महागठबंधन में सियासी हलचल तेज कर दी है.

सुधाकर सिंह ने सवाल उठाया कि पप्पू यादव के कौन से कारनामे हैं जिनके चलते एनडीए सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती? उनका इशारा पप्पू की कथित महत्वाकांक्षा और बीजेपी से अप्रत्यक्ष सांठ-गांठ की ओर है. ऐसे में राजनीति के जानकारों का मानना है कि पप्पू यादव की बयानबाजी महागठबंधन की एकता को तोड़ने का काम कर रही है. उनका आरोपों का यही मतलब निकाला जा रहा है कि है कि 2020 में जिस तरह असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर राजद को नुकसान पहुंचाया था और वह सत्ता से दूर रह गया था, ठीक उसी तरह का व्यवहार इस बार पप्पू यादव की ओर से किया जा रहा है.

पप्पू यादव के तेवर से डरी आरजेडी!

बता दें कि पप्पू यादव कभी राजद का हिस्सा थे, लेकिन 2014 में निष्कासित होने के बाद से अपनी जन अधिकार पार्टी बनाई थी. अब उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने की घोषणा की है और हाल में कांग्रेस के साथ सक्रिय हैं. उनकी पूर्णिया सीट से निर्दलीय जीत और सीमांचल में प्रभाव ने उन्हें मजबूत क्षेत्रीय नेता बनाया है. हालांकि, सुधाकर सिंह का आरोप है कि पप्पू यादव की बयानबाजी बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाती है, क्योंकि यह महागठबंधन के वोट बैंक (मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग) में बिखराव पैदा करती है. सुधाकर सिंह के आरोपों के साथ ही पप्पू यादव की तुलना असदुद्दीन ओवैसी से की जा रही है जिन पर राजद के नेता बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाते रहे हैं.

2020 में ओवैसी तो 2025 में पप्पू यादव!

बता दें कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल में पांच सीटें-अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, बहादुरगंज जीतकर महागठबंधन को करारा झटका दिया था. इन मुस्लिम-बहुल सीटों पर AIMIM ने राजद के वोट बैंक (मुस्लिम वोट) में सेंध लगाई थी. आंकड़े बताते हैं कि 11 सीटों पर राजद और सहयोगी 1,000 से कम वोटों से हारे थे जिनमें से कई सीटों पर AIMIM के कारण वोट बंटे. कुल मिलाकर AIMIM ने बिहार में 1.24% और सीमांचल में 14 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर हासिल किये थे जो राजद के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को कमजोर करने के लिए काफी थे. इसके परिणामस्वरूप महागठबंधन 110 सीटों पर अटक गया, जबकि एनडीए ने 125 सीटें जीतीं और तेजस्वी यादव महज 12 सीटों के अंतर से सत्ता से दूर रह गए.

सीमांचल में ‘पप्पू फैक्टर’ से बड़ा खतरा!

जानकारों का भी मानना है कि अगर AIMIM मैदान में नहीं उतरती तो ये वोट राजद को मिल सकते थे और तेजस्वी यादव 12 सीटों और 12,000 वोटों के अंतर से सत्ता से दूर नहीं रहते. अब राजद के नेताओं की नजर में 2025 में पप्पू यादव के तेवर कुछ-कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं जैसे 2020 में ओवैसी के थे. दरअसल, पप्पू यादव का सीमांचल के जिलों में काफी बड़ा जनाधार है और मुस्लिमों के बीच वह काफी लोकप्रिय भी हैं. ऐसे में अगर पप्पू यादव के तेवर ऐसे ही रहे और कहीं पप्पू फैक्टर तेजस्वी यादव के विरोध में काम कर गया तो यह महागठबंधन को सत्ता से दूर रख सकता है.

पप्पू यादव पर हमलावर सुधाकर सिंह

दूसरी ओर पप्पू यादव का दावा अलग राजनीति की कहानी बताती है. वह कहते हैं कि उनकी लड़ाई बिहार के विकास और गरीबों के लिए है. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार में नया नेतृत्व चाहिए. लेकिन, राजद नेता सुधाकर सिंह का कहना है कि पप्पू यादव की यह रणनीति केवल सुर्खियां बटोरने और अपनी राजनीति चमकाने की है और बिहार की जनता के लिए ठोस समाधान नहीं देती. यही नहीं इससे राजद को सीधा नुकसान दिख रहा है.

तेजस्वी और पप्पू की अदावत क्या नई सियासी कहानी लिखेगी?

राजनीति के जानकार बताते हैं कि पप्पू यादव के साथ बीते 9 जुलाई को बिहार बंद के दौरान जिस तरह का व्यवहार करने के आरोप तेजस्वी यादव पर लगे हैं, ऐसे में पप्पू यादव इसे भूलने वाले नहीं हैं. तेजस्वी यादव और पप्पू यादव की अदावत 2024 के लोकसभा चुनाव में भी जाहिर हो चुके हैं जब तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव की जगह एनडीए कैंडिडेट को जिताने की अपील कर दी थी. ऐसे में अब बिहार की सियासत में महागठबंधन के भीतर के ऐसे विवाद 2025 के चुनाव से पहले दोनों ही गठबंधनों की कमजोरियों को जाहिर करता है. पप्पू यादव की महत्वाकांक्षा और उनकी तेजस्वी यादव पर हमले क्या महागठबंधन को कमजोर करेंगे या वे एक नए सियासी विकल्प के रूप में उभरेंगे? फिलहाल यह सवाल बिहार की जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है.

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Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट…और पढ़ें

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क्या पप्पू और BJP में सांठ-गांठ है, क्या ओवौसी की तरह वो भी NDA की मदद कर रहे?

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