होम नॉलेज कारगिल की जंग में कितने देश भारत के साथ थे, कितनों ने पाकिस्तान का साथ दिया?

कारगिल की जंग में कितने देश भारत के साथ थे, कितनों ने पाकिस्तान का साथ दिया?

द्वारा

कारगिल की तंग के दौरान तत्‍कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पाकिस्तान पर भड़के थे.

कूटनीति और सैन्य दोनों ही मोर्चों पर कारगिल युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह पिटा था. हाल में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का रवैया काफी नरम और सहानुभूति पूर्ण रहा है लेकिन कारगिल संकट के समय उलट स्थिति थी. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पाकिस्तान पर भड़के थे. नवाज़ शरीफ से काफी रुखा व्यवहार किया था.

अकेले में मिलने की शरीफ की पेशकश ठुकरा दी थी और क्लिंटन ने यहां तक कहा था कि मैंने आपसे पहले ही कह दिया था कि अगर बिना शर्त अपने सैनिक आप नहीं हटाते तो यहां आने की जरूरत नहीं है. उस वक्त कोलोन शिखर सम्मेलन में जी-8 देशों ने भारत का समर्थन किया था. यूरोपीय यूनियन और आसियान संगठन ने भी नियंत्रण रेखा की अखंडता की रक्षा की भारत की कोशिशों को जायज बताया था.

मुंह में राम बगल में छूरी

शुरुआती गफ़लत के बाद भारत की सेनाएं कारगिल युद्ध को अपने पक्ष में मोड़ चुकी थीं. युद्ध विराम के लिए पाकिस्तान को अब अमेरिकी मदद की जरूरत थी. दूसरी तरफ़ अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति पाकिस्तान के रवैए से बेहद खफा थे. दशकों से भारत-पाकिस्तान के बीच चली आ रही दुश्मनी पर विराम लगाने के लिए अटल बिहारी वाजपेई ने लाहौर तक की बस यात्रा की थी.

रिश्तों पर जमी बर्फ़ को गलाने के लिया द्विपक्षीय बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था. लेकिन पाकिस्तान सामने भारत से दोस्ती का आडम्बर कर रहा था और पीठ में छुरा भोंक रहा था. नियंत्रण रेखा पार करके अमन की भारतीय कोशिशों को पाकिस्तान ने बेपटरी कर दिया था.

क्लिंटन पाकिस्तान से थे काफी नाराज

2025 में भारत के बेहद कामयाब “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप पाकिस्तान के पक्ष में झुके नज़र आ रहे हैं. लेकिन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पाकिस्तान पर बुरी तरह भड़के हुए थे. 4 जुलाई 1999 को नवाज शरीफ़ और क्लिंटन की मुलाकात हुई थी. क्लिंटन इस मुलाकात के लिए मुश्किल से राजी हुए थे. शरीफ़ उनसे कहीं अलग बातचीत करना चाहते थे. लेकिन क्लिंटन का रुख सख्त था. दो टूक कहा कि यह मुमकिन नहीं है. इस भेंट के दौरान क्लिंटन का स्टाफ बातचीत के नोट्स ले रहा था.

क्लिंटन ने शरीफ़ से कहा था कि वे चाहते हैं कि यह बातचीत रिकॉर्ड पर रहे. क्लिंटन के इस रुख ने शरीफ़ के होश उड़ा दिए थे. पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के इस रवैए के चलते ही भारत और अमेरिका के रिश्तों में सुधार का सिलसिला शुरू हुआ था , जो आगे रणनीतिक साझेदारी में बदला था.

Weapon Used In Kargil War

भारत से युद्ध छेड़ना पाकिस्तान के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ था. फोटो: Sondeep Shankar/Getty Images

पहले सेना पीछे हटाओ फिर अमेरिका आओ

बातचीत के दौरान शरीफ़ को काफी अपमानित होना पड़ा. बुरी तरह भड़के “क्लिन्टन ने उनको याद दिलाया, ” मैंने आपसे पहले ही कहा था कि अगर आप बिना शर्त अपने सैनिक नहीं हटाना चाहते, तो यहां न आएं.” क्लिंटन का अगला वाक्य पाकिस्तान के लिए सीधी चेतावनी थी. क्लिंटन ने कहा कि अगर आप बिना शर्त अपने सैनिक पीछे नहीं करते तो मेरा बयान तैयार है. इस बयान में सीधे तौर पर कारगिल संकट के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

भारत से युद्ध छेड़ना पाकिस्तान के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा था. इससे बच निकलने का एकमात्र रास्ता युद्ध विराम था. लेकिन कोई देश पाकिस्तान पर हाथ रखने को तैयार नहीं था. पाकिस्तान अपने को अकेला पा रहा था. उसका सबसे नजदीकी दोस्त चीन बेहद संतुलित प्रतिक्रिया दे रहा था. नियंत्रण रेखा पर संघर्ष-पूर्व स्थिति में सेना वापस बुलाने और सीमा मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने पर चीन का ज़ोर था.

भारत को मिला था कई देशों का समर्थन

कारगिल युद्ध के दौरान कूटनीतिक मोर्चे पर स्थितियां भारत के काफी अनुकूल रहीं. जी-8 देशों ने कोलोन सम्मेलन में भारत के रुख का समर्थन किया था. संगठन ने नियंत्रण रेखा के उल्लंघन लिए पाकिस्तान की निंदा भी की थी . यूरोपीय यूनियन ने भी नियंत्रण रेखा के उल्लंघन के लिए पाकिस्तान की आलोचना की थी. आसियान क्षेत्रीय मंच का भी भारत को समर्थन प्राप्त हुआ था. आगे बढ़ती भारतीय फ़ौजों और तगड़े अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच पाकिस्तान के पास कदम पीछे खींचने का अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. भारतीय फ़ौजों ने पाकिस्तान को पहले ही काफी पीछे खदेड़ दिया था.

फिर शरीफ़ ने भारतीय सीमाओं के भीतर बचे अपने सैनिकों को वापस बुलाने की रजामंदी दी. क्लिंटन और शरीफ़ के संयुक्त बयान में नियंत्रण रेखा का सम्मान करने और सभी विवादों को सुलझाने के लिए द्विपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था. जिस समय शरीफ़ क्लिंटन से बात कर रहे थे, उसी समय टाइगर हिल पर भारत के कब्जे की खबर फ्लैश हो रही थी.

Kargil Vijay Diwas 2025

चौहत्तर दिन चले कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े थे. फोटो: Sharad Saxena/IT Group via Getty Images)

दगाबाजी पाकिस्तान की फितरत में शामिल

दगाबाजी पाकिस्तान की फितरत में शामिल रही है. एक ओर बाघा बॉर्डर पर बाजपेई और शरीफ गले मिल रहे थे और दूसरी ओर उसी समय पाकिस्तानी सेना के जवान लद्दाख में कारगिल की चोटियों पर कब्जा करके भारत की सीमा में आगे बढ़ रहे थे.भारत को 6 मई 1999 को पाकिस्तानी घुसपैठ का पता चला था. 26 मई को ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सेनाएं घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए तेजी से सक्रिय हुईं.

क्लिंटन के दबाव के बावजूद पाकिस्तान भारत की कब्जाई जमीन से पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा था. लेकिन जून के मध्य तक भारत की फौजें पाकिस्तान पर हावी हो चुकी थीं. इस दौरान भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता ने पाकिस्तान के हौसले पस्त कर दिए थे. वायुसेना के लिए यह एक मुश्किल अभियान था लेकिन उसके हमले बेहद सटीक थे. वो और प्रभावी साबित हो सकती थी लेकिन उसकी सबसे बड़ी दिक्कत थी उसे नियंत्रण रेखा पार किए बिना निशाने साधने थे.

चौहत्तर दिन चले कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े थे. अमेरिकी मदद से युद्ध विराम की आड़ में उसने पराजय की शर्मिंदगी से मुंह छिपाने की कोशिश की थी. असलियत में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को हर मोर्चे पर शिकस्त मिली थी.

यह भी पढ़ें: रींगस स्टेशन से खाटू श्याम मंदिर जाने के लिए कितने कदम चलना पड़ता है?

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया