बाराबंकी की पूजा पाल ने धूल रहित थ्रेशर का मॉडल बनाया है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। पूजा ने इसे चार साल में विकसित किया और हाल ही में जापान में अपने मॉडल को पेश किया। इस मॉडल से किसानों…
बाराबंकी के एक स्कूल की बारहवीं कक्षा की छात्रा पूजा पाल ने धूल रहित थ्रेशर का एक ऐसा मॉडल बनाया है कि देश और देश से बाहर भी उसकी तारीफ हो रही है.हाल ही में यह छात्रा जापान गई थीं जहां उनके इस मॉडल की काफी सराहना हुई.भारत में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के अगेहरा गांव में तिरपाल से ढकी झोंपड़ी को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि इस झोंपड़े के अंधेरे में देश का नाम रोशन करने वाली प्रतिभा पल रही है.इस घर (झोंपड़े) में रहने बारहवीं कक्षा की छात्रा पूजा पाल पिछले चार साल से अपने जिस वैज्ञानिक मॉडल को तैयार करने में लगी थीं, उसे उन्होंने ना सिर्फ पूरा कर लिया है बल्कि उस मॉडल को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल चुकी है.हाल ही में पूजा को अपने मॉडल के साथ जापान बुलाया गया था.पूजा के इस वैज्ञानिक मॉडल का नाम है डस्ट फ्री थ्रेशर.गांव में जब गेहूं की मड़ाई (पौधे से दाने को अलग करना) होती है तो उससे उड़ने वाली धूल पर्यावरण का नुकसान करती है.यह धूल तमाम बीमारियों को भी जन्म देती है.पूजा ने सीमित संसाधनों में थ्रेशर के लिए एक ऐसा यंत्र बनाया है जिससे गेहूं की मड़ाई तो होगी लेकिन धूल नहीं उड़ेगी.इस मॉडल को राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है और अब केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय उसे पेटेंट कराने की तैयारी में है.कैसे आया आईडिया?पूजा पाल बताती हैं कि उन्हें इस डस्ट-फ्री थ्रेशर का मॉडल बनाने का आइडिया चार साल पहले आया जब वो आठवीं कक्षा में पढ़ रही थीं.डीडब्ल्यू से बातचीत में पूजा बताती हैं, “हम कक्षा आठ में पढ़ते थे तो हमारे स्कूल के पास थ्रेशर मशीन चलती थी जिसकी धूल हमारे स्कूल के भीतर तक आती थी. हम लोग उससे बहुत परेशान होते थे.सांस लेने में दिक्कत होती थी.तभी सोचा कि क्या कोई ऐसा उपाय नहीं हो सकता है जिससे ये धूल न उड़े” पूजा ने बताया कि यह बात उन्होंने अपने टीचर राजीव सर को बताई.राजवी सर ने उनसे कहा कि सोचो कि ऐसा क्या कर सकते हैं कि धूल ना आए.फिर कुछ दिन बाद पूजा ने घर में मां को छलनी से आटा छानते देखा तो वहीं से समझ में आया कि कैसे इस धूल को रोका जा सकता है.यूरोप में बनाया गया पहला कृत्रिम सूर्य ग्रहणपूजा बताती हैं कि उनके विज्ञान टीचर राजीव श्रीवास्तव ने उन्हें ना सिर्फ प्रोत्साहित किया बल्कि इसे बनाने में काफी मदद भी की.वो कहती हैं, “राजीव सर की मदद से पहले हमने चार्ट पेपर पर इस मॉडल का एक स्केच बनाया.फिर कागज और लकड़ी से मॉडल को तैयार किया गया और आखीर में टीन और वेल्डिंग मशीन के जरिए ये मॉडल बनाया गया”जापान के अनुभव के बारे में पूजा बताती हैं कि अलग-अलग देशों के बच्चे वहां आए थे और उसके मॉडल को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता थी.टीन और पंखे की मदद से बनाए गए इस मॉडल में थ्रेशर मशीन से निकली धूल एक थैले में जमा हो जाती है.यह ना सिर्फ पर्यावरण के लिहाज से काफी सुरक्षित है बल्कि किसानों के लिए भी उपयोगी है.पूजा बताती हैं कि इस मॉडल को बनाने में करीब तीन हजार रुपये खर्च हुए, जो उनके परिवार के लिए एक बड़ी रकम थी.गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमिपूजा के पिता पुत्तीलाल दिहाड़ी मज़दूर हैं और मां स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में खाना बनाती हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में पूजा की मां सुनीता देवी बताती हैं, “हमारा सात लोगों का परिवार है.पूजा की तीन बहन और दो भाई हैं.हमारे पास ना तो सरकारी आवास है और ना ही शौचालय.घास-फूस से बने इसी घर के एक कोने में बच्चे पढ़ते हैं, दूसरे कोने में चूल्हा जलता है”पूजा ने डस्ट फ्री थ्रेशर का जो मॉडल बनाया है वह अनाज निकालने के दौरान उड़ने वाली धूल और फेफड़ों को नकुसान पहुंचाने वाले सूक्ष्म कणों को रोकने में मदद करता है.किसानों को तो इससे फायदा होता ही है, खुले में काम करने वाले मजदूरों और महिलाओं के स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी अहम है.पूजा के टीचर राजीव श्रीवास्तव इसके लिए सरकार की इंस्पायर अवॉर्ड योजना को श्रेय देते हैं.उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “यह एक बेहतरीन योजना है जिसके तहत बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि और नवाचार की क्षमता देखी जाती है.चयनित मॉडलों के लिए सरकार 10 हजार रुपए देती है ताकि छात्र अपना प्रोटोटाइप बना सकें.स्थानीय विज्ञान मेले में जब पूजा ने अपना मॉडल पेश किया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह प्रोजेक्ट उन्हें जापान तक पहुंचा देगा.हालांकि अब वही प्रोजेक्ट राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है”राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि पूजा ने शुरू में जो मॉडल बनाया, समय के साथ उसमें कई तरह के सुधार किए गए और अंत में साल 2023 में यह मॉडल “इंस्पायर अवॉर्ड” की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चुना गया.अवॉर्ड जीतने वाले देश भर के 60 बच्चों में उत्तर प्रदेश से सिर्फ पूजा का ही चयन हुआ था.इन सभी 60 विजेताओं को एक एक्सचेंज प्रोग्राम के जरिए जापान भेजा जाता है. इसी के तहत पूजा हाल ही में जापान गई थी जहां उन्हें दुनिया के कई वैज्ञानिकों और छात्रों से मिलने का मौका मिला.इंस्पायर अवार्ड योजना भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक पहल है, जिसकी शुरुआत साल 2006 में हुई थी.इस योजना का मकसद स्कूली बच्चों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना है.हर साल देश भर से एक लाख बच्चों को चुना जाता है और उन्हें अपने मॉडल को तैयार करने के लिए दस हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है.इन एक लाख मॉडलों में 441 मॉडल को राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी के लिए चुना जाता है जिनमें से हर साल 60 शीर्ष मॉडल्स को जापान में आयोजित “सकूरा साइंस एक्सचेंज प्रोग्राम” में भाग लेने का मौका दिया जाता है.इंस्पायर अवॉर्ड योजनायोजना के बारे में लखनऊ मंडल के विज्ञान प्रगति अधिकारी डॉक्टर दिनेश कुमार बताते हैं कि कक्षा छह से लेकर कक्षा 12 तक का कोई भी छात्र इस योजना में हिस्सा ले सकता है.डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, “छात्र अपने आस-पास की किसी समस्या का समाधान सुझाते हुए 150 से 300 शब्दों की एक सिनॉप्सिस बनाकर भारत सरकार के इंस्पायर पोर्टल पर अपलोड कर सकता है.हर स्कूल के प्रधानाचार्य अधिकतम पांच आवेदन भेज सकते हैं.हर जिले से जितने आवेदन आते हैं उनमें से दस प्रतिशत का चयन राज्य स्तर पर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है”डॉक्टर दिनेश कुमार बताते हैं कि जिले स्तर पर चयनित छात्रों की सूची तैयार की जाती है और फिर उन्हें मॉडल बनाने के लिए दस हजार रुपये की सहायता दी जाती है.वो बताते हैं कि पिछले साल जिला स्तर पर सबसे ज्यादा चयन लखनऊ डिवीजन से हुआ था.जिला स्तर के बाद राज्य स्तर पर चयन होता है और फिर उनके मॉडल को और बेहतर करने का मौका मिलता है.अंत में देश भर से हर साल 60 बच्चे चुने जाते हैं जिन्हें दुनिया के अलग-अलग देशों में भेजा जाता है.