होम छत्तीसगढ़ Chhattisgarh narayanpur spirits home story people worship them newly married groom take blessings know interesting story छत्तीसगढ़ में कहां होती है आत्माओं की पूजा? शादी के बाद पुरुष लेते हैं आशीर्वाद, रोचक कहानी, Chhattisgarh Hindi News

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बस्तर संभाग में आदिवासियों की कई परंपराएं हैरान करने वाली हैं। नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में आपको आत्माओं का घर देखने को मिल जाएगा। यहां आदिवासियों में आत्माओं को भी घर देने की परंपरा है। सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को समाज के लोगों ने आज भी बरकरार रखा है।

Utkarsh Gaharwar लाइव हिन्दुस्तान, नारायणपुरWed, 23 July 2025 11:21 AM

‘आत्माओं का घर…’ सुनने में आपको अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है। छत्तीसगढ़ में ऐसी आत्माओं का घर है, जहां इनकी पूजा होती हैं… उन्हें न्यौता दिया जाता है और परिवार की खुशहाली की कामना की जाती है। मरने के बाद शरीर तो मिट जाता है, लेकिन उनकी आत्मा इस घर में रहती है। आत्मा के घर में सिर्फ पुरूष ही जा सकते हैं। शादी-ब्याह के कार्यक्रम में भी इन आत्माओं को आशीर्वाद देने के लिए न्यौता दिया जाता है।

बस्तर संभाग में आदिवासियों की कई परंपराएं हैरान करने वाली हैं। नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ में आपको आत्माओं का घर देखने को मिल जाएगा। यहां आदिवासियों में आत्माओं को भी घर देने की परंपरा है। सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को समाज के लोगों ने आज भी बरकरार रखा है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक ग्रामीण पीतर या पितृपक्ष नहीं मानते हैं, लेकिन अपने पूर्वजों को आत्माओं के घर में रखकर उनकी पूजा जरूर करते हैं। अबूझमाड़ के हर गांव में आत्माओं का घर मिलेगा। यहां हांडियों में पूर्वजों की आत्माओं को रखा गया है। आदिवासी इसे ‘आना कुड़मा’ कहते हैं। गोंडी शब्द में ‘आना’ यानी आत्मा और ‘कुड़मा’ यानी घर होता है। इसे हिन्दी में आत्मा का घर भी कहा जा सकता है।

दादा-परदादा के जीवों का रहवास

छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासी समाज के लोग इस पवित्र स्थल को लेकर बहुत ही सावधानी बरतते हैं। नई फसल को यहां चढ़ाने से पहले आदिवासी समाज के लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। मान्यता है कि यहां परदादा, दादा, माता-पिता के जीव को साक्षात रखते हैं। 12 महीनों पूजा करते हैं। त्योहार में विशेष पूजा होती है। आदिवासी समाज में कु़ड़ा, ‘आना कुड़मा’ को लेकर गहरी आस्था है। वहीं ग्रामीणों का मान्यता है कि भूलवश या जानबूझकर कोई आना कुड़मा में चढ़ावा दिए बगैर नई फसल का उपयोग कर लेता है तो गांव में संकट आ जाता है। इसके निपटारे के लिए ग्रामीण गायता के पास जाते हैं, वहां गलती स्वीकार करने के बाद पूजा पाठ किया जाता है।

बुरी आत्माओं से बचाते हैं

पूर्व विधायक देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा बेहद खास है। किसी भी गांव के किनारे एक मंदिरनुमा छोटा सा घर आपको दिख जाएगा। यहां एक छोटा सा कमरा होता है, जिसमें बहुत सी मृदभांड रखी रहती हैं। इन मृदभांडों में ही आदिवासी समाज के पितरों का वास होता है। आदिवासी समाज में घरों में एक कमरा पूर्वजों का भी रहता है। अबूझमाड़ के आदिवासी गांव में एक गोत्र के लोगों की बाहुल्यता होती है। किसी की मृत्यु के बाद उस गोत्र के लोगों द्वारा उनकी आत्माओं को इस आना कुरमा में स्थापित करते हैं। यह बुरी आत्माओं से बचाते हैं।

आदिवासियों के रक्षक हैं पितृ देवता

देवलाल दुग्गा ने बताया कि आदिवासी समाज का मानना है कि यह उनके पितृ देव उनके रक्षक देव है। उनका एक साथ एक जगह पर होने पर उनकी शक्ति असीमित हो जाती है और वह बुरी आत्माओं का नाश करने में सहायता करते हैं। यही कारण है कि आदिवासी समाज अपने पितृ देवों को भी एक अलग मंदिर में स्थापित करता है, जिसे ‘आना कुड़मा’ कहा जाता है। आदिवासी पितर नहीं मनाते, लेकिन पूर्वजों को अपनी रीति-रिवाज से पूजते हैं। तीज-त्योहार या आदिवासियों के खास मौके पर विशेष पूजा यहां की जाती है। उन्होंने कहा कि आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है।

महिलाओं का जाना पूर्णतः वर्जित

आदिवासी इस परंपरा का बहुत ही कट्टरता से पालन करते हैं। ऐसे स्थान पर महिलाओं और युवतियों का जाना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित होता है। शादी की रस्म अदायगी से पहले यहां जाना बेहद जरूरी होता है। हल्दी या तेल की रस्म हो या फिर शादी कार्ड का वितरण करना हो, यहां न्यौता (निमंत्रण) दिए बिना किसी भी कार्य की शुरुआत नहीं की जाती। हर एक गांव में आना कुड़मा यानी आत्माओं का घर कई दशकों से बनाया गया है। यहां हांडियों में पूर्वजों की आत्माओं का वास है। ऐसे कई घर बस्तर के नारायणपुर और बीजापुर जिले के अंदरूनी इलाकों में आपको देखने को मिल जाएंगे।

रिपोर्ट- संदीप दीवान

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