अप्रैल में तत्कालीन CJI संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए लगभग 25,000 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। इनकी नियुक्ति 2016 में हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की चीफ ममता बनर्जी के खिलाफ आपराधिक अवमानना की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट चेतावनी दी कि अदालत के समक्ष मामलों का राजनीतिकरण करने से बाज आएं। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर ममता बनर्जी की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना शुरू करने की मांग की गई थी।
मामले की सुनवाई जैसे ही शुरू हुई, वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने पीठ से इस मामले को स्थगित करने का अनुरोध किया क्योंकि आपराधिक अवमानना याचिका शुरू करने की सहमति देने के लिए अटॉर्नी जनरल के समक्ष मंजूरी देने का अनुरोध दायर किया गया था। हालांकि, सीजेआई बीआर गवई ने टिप्पणी की, “क्या आप इतने आश्वस्त हैं कि आपको इस मामले में सहमति मिल जाएगी?”
मामले को 4 सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का आदेश
इसके बाद सीजेआई ने कहा, “कृपया अदालत की कार्यवाही का राजनीतिकरण करने की कोशिश न करें; आपको अपनी राजनीतिक लड़ाई कहीं और जाकर लड़नी चाहिए।” इसके बाद पीठ ने मामले को 4 सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। पीठ ने आत्मदीप नामक एक सार्वजनिक धर्मार्थ न्यास द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि मुख्यमंत्री बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आपत्तिजनक बयान दिए जो न्यायपालिका के प्राधिकार को कमजोर करते हैं।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने पीठ से सुनवाई स्थगित करने का आग्रह करते हुए कहा कि आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल को उनकी सहमति के लिए एक अनुरोध भेजा गया था। यह याचिका इस साल अप्रैल में दिए गए उस फैसले से संबंधित है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग द्वारा की गईं लगभग 25,000 नियुक्तियों को अमान्य करार दिया गया था। मुख्यमंत्री ने इस फैसले पर कथित तौर पर कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं थीं। (भाषा इनपुट्स के साथ)