हिमाचल प्रदेश एक लड़की की दो सगे भाइयों के साथ हुई शादी चर्चा में है.
हिमाचल प्रदेश में हुए एक विवाह की तस्वीरें आजकल सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. इसमें एक दुल्हन को एक साथ दो दूल्हों के साथ खड़े दिखाया गया है. इन दोनों से उसका विवाह हुआ है और दोनों दूल्हे सगे भाई हैं. यह हट्टी समुदाय की हजारों साल पुरानी परंपरा है, जिसमें लड़की सगे भाइयों से विवाह करती रही है. हालांकि, इस समुदाय के बहुत से लोग अब इस पुरानी परंपरा को नहीं मानते हैं पर इन तीनों ने पुरानी परंपरा को जीवित कर लोगों को चौंका दिया है.
आइए जान लेते हैं कि क्या है हट्टी जनजाति की यह अजीबोगरीब परंपरा और क्या है इसका इतिहास? कितने राज्यों में ऐसा होता है?
यहां कायम है बहुपति प्रथा का रिवाज
भारत में बहुपति प्रथा का चलन महाभारत काल में मिलता है, जिसमें अनजाने में माता कुंती के कहने पर पांचों पांडवों का विवाह द्रौपदी से हो जाता है. ऐसी परंपरा आज भी हिमाचल प्रदेश में कायम है. इसके अलावा देश में उत्तराखंड में भी ऐसी परंपरा पाई जाती है. हिमाचल और उत्तराखंड के तीन पहाड़ी इलाकों में बहुपति का रिवाज है. उत्तराखंड में जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश के किन्नौ और सिरमौर जिले के गिरीपार में सदियों पुरानी परंपरा का चलन आज भी है, जिससे ये तीनों क्षेत्र अक्सर सुर्खियों में रहते हैं.
क्यों शुरू हुई थी यह परंपरा?
केंद्रीय हट्टी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री के हवाले से मीडिया में बताया गया है कि इस परंपरा की शुरुआत हजारों साल पहले परिवार की कृषि योग्य जमीन को आगे बंटवारे से बचाने के लिए हुई थी. उन्होंने कहा कि जाज्दा परंपरा के जरिए भाईचारा और संयुक्त परिवार में आपसी समझदारी को बढ़ावा मिलता है. एक ही मां या अलग-अलग मांओं की कोख से जन्मे जब दो या दो से ज्यादा भाई एक ही दुल्हन से शादी करते हैं तो उनमें आपसी समझदारी और भी गहरी होती है.
बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है दुल्हन
हिमाचल प्रदेश में हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है और इसकी पोलीएंड्री नामक बहुविवाह प्रथा को जोड़ीदारा के नामा से जाना जाता है. इसको सामाजिक और कानूनी मान्यता भी प्राप्त है. स्थानीय स्तर पर इस अनोखी आदिवासी शादी को जाज्दा के नाम से जाना जाता है. इसमें दुल्हन को एक जुलूस या बारात के साथ दूल्हे के घर ले जाया जाता है, जहां सारे रीति-रिवाज होते हैं, जिसे सींज कहा जाता है.
सुरक्षा के लिए करते हैं एक ही लड़की से विवाह
कुंदन सिंह शास्त्री बताया कि इस परंपरा का तीसरा कारण है सुरक्षा. इसके जरिए इधर-उधर फैली कृषि भूमि का प्रबंधन आसान होता है. आर्थिक जरूरतें एक साथ पूरी होती हैं और पहाड़ी इलाकों में खेती को ऐसे परिवार की जरूरत होती है, जो लंबे समय तक उसकी देखभाल कर सके. उन्होंने कहा कि अगर आपका परिवार बड़ा है, उसमें अधिक पुरुष हैं तो आदिवासी समाज में आप ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. यह भी कहा जाता है कि एक ही महिला से जब तो या तीन भाइयों के बच्चे होंगे तो वे खुद को सगा ही समझेंगे. इससे जनसंख्या भी नियंत्रित रहेगी. इसके अलावा इस समुदाय के लोग स्वयं को पांडवों से भी जोड़ते हैं. इसलिए भी सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं. हालांकि, शिक्षा बढ़ने के साथ ही इस प्रथा का पालन करने वालों में तेजी से गिरावट भी आई है.
यहां बहुपत्नी की प्रथा का भी है चलन
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गिरीपार क्षेत्र में बहुपति ही नहीं, बहुपत्नी प्रथा का रिवाज भी सदियों से चला आ रहा है. यहां ऐसे कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जब किसी व्यक्ति ने अपनी पत्नी की सगी बहनों से शादी की है. ऐसा तब ज्यादातर होता है, जब पहली पत्नी से कोई बच्चा न हो. इस पर वह व्यक्ति पत्नी की बहन से शादी कर लेता है. हालांकि, दूसरी शादी करने के बाद भी वह पहली पत्नी को छोड़ता नहीं है. सभी साथ ही रहते हैं.
एक भाई सरकारी नौकरी में, दूसरा विदेश में करता है काम
ऐसे ही एक विवाह को लेकर आजकल हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले का गिरीपार क्षेत्र फिर से चर्चा में आ गया है. इसमें सगे भाइयों का विवाह एक ही लड़की से हुआ है और खास बात यह है कि दोनों भाई काफी पढ़े-लिखे हैं. इनमें से एक जलशक्ति विभाग में तैनात है यानी सरकारी सेवा में है और दूसरा विदेश में नौकरी करता है.
हिमाचल प्रदेश के शिलाई गांव में हट्टी समुदाय की सुनीता चौहान का विवाह 12 जुलाई (2025) को एक पारंपरिक समारोह में हुआ. तीन दिवसीय विवाह समारोह में लोकगीतों और डांस का अनोखा संगम देखने को मिला तो सैकड़ों मेहमान इस शादी के गवाह बने. दूल्हे प्रदीप और कपिल नेगी ने प्राचीन पोलीएंड्री परंपरा के तहत सुनीता से विवाह किया.
आखिर सगे भाइयों से विवाह का क्या है कारण?
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि यह गैर अपरंपरागत प्रथा इसलिए शुरू की गई थी, जिससे विवाह के बाद पूर्वजों की जमीन का बंटवारा न हो. आदिवासी समाज में वैसे भी महिलाओं की पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सेदारी एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. इसीलिए कुछ गांवों में इस परंपरा का पालन किया जाता है.
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