ईरान विदेशी शरणार्थियों खासकर अफगानिस्तान के लोगों को लगातार वापस भेज रहा है.
इजराइल के साथ युद्ध के बाद ईरान इतनी सतर्कता बरत रहा है कि हर किसी को जासूस की नजर से देख रहा है. इसके चलते वह विदेशी शरणार्थियों खासकर अफगानिस्तान के लोगों को लगातार वापस भेज रहा है. यह प्रक्रिया लंबे समय से जारी है और जनवरी से अब तक 14 लाख से ज्यादा अफगानियों को निकाल चुका है. इजराइल युद्ध के बाद इसमें और भी तेजी आ गई है.
वैसे अफगानिस्तान के साथ ईरान के संबंध भौगोलिक के साथ ही ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से भी गहराई तक जुड़े हुए हैं. इसके बावजूद दोनों के बीच कभी दोस्ती हो जाती है तो कभी दुश्मनी. कभी कोई विवाद खड़ा हो जाता है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि ऐसा क्यों है और ये संबंध इतने अजब-गजब क्यों हैं?
ईरान-अफगानिस्तान की साझी विरासत
ईरान और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की बात करें तो दोनों देशों की भाषा एक ही है फारसी. इसके अलावा दोनों की साहित्यिक विरासत भी साझा है. इन दोनों देशों का धार्मिक इतिहास और इस्लामी परंपराएं भी किसी हद तक एक जैसी हैं. यह स्थिति तब है जब दोनों देशों के बीच शिया-सुन्नी मतभेद भी समय-समय पर देखने को मिलता रहता है. यही नहीं, दोनों देशों के बीच हजारों सालों से व्यापारिक और जन आवाजाही भी होती चली आ रही है.
तालिबान को लेकर संतुलित लेकिन सतर्क नीति
यह साल 2001 की बात है. अफगानिस्तान में तालिबान का पतन होने के बाद नई सरकार बनी थी. तब ईरान ने अफगानिस्तान की सरकार का समर्थन किया था. फिर साल 2021 में अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबान की वापसी हो गई. देश का शासन तालिबान के हाथों में चला गया तो ईरान ने सतर्कता की नीति अपना ली. तालिबान को वैसे तो ईरान कभी पूरी तरह से मान्यता नहीं देता है लेकिन उससे बातचीत करना भी नहीं बंद करता है. कभी-कभी तो ईरान अमेरिका के खिलाफ सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए तालिबान का समर्थन करता दिख जाता है.
इसके अलावा अफगानिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों जैसे आईएसआईएस-के से ईरान को भी खतरा रहता है. इसलिए भी वह कभी-कभी तालिबान को रणनीतिक सहयोग प्रदान करता है, ताकि पड़ोसी देश अफगानिस्तान में स्थिरता बनी रहे और ईरान भी स्थिर रहे.
व्यापारिक संबंध बरकरार
अफगानिस्तान को ईरान से पेट्रोलियम पदार्थ, बिजली और खाद्य सामग्री आदि का निर्यात किया जाता है. फिर ईरान का चाहबहार बंदरगाह वास्तव में अफगानिस्तान के लिए समुद्र तक पहुंचने का एक वैकल्पिक रास्ता भी है. खासकर जब पाकिस्तान को बायपास करना हो तो यह एक मुफीद रास्ता है. ऐसे में दोनों देशों के बीच लाख विवादों के बावजूद व्यापारिक संबंध बना रहता है.
पानी को लेकर लड़ाई
ईरान और अफगानिस्तान में पानी को लेकर विवाद बना रहता है. यह विवाद हेलमंद नदी के पानी के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चला आ रहा है. साल 1973 में हुए एक समझौते के तहत अफगानिस्तान को हर साल ईरान को 820 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी देना रहता है. इसके बावजूद ईरान को शिकायत रहती है कि अफगानिस्तान उसे पर्याप्त पानी नहीं देता. वहीं, अफगानिस्तान कहता है कि वह अपने हक के अनुसार पानी का उपयोग करता है. साल 2023 में तो पानी का यह मुद्दा काफी गर्म हो गया था.
दरअसल, अफगानिस्तान से दो बड़ी नदियां ईरान तक जाती हैं. ये हैं हेलमंद और हारी रूद. दोनों देशों की सीमा पर स्थित झील क्षेत्र हामुन के लिए हेलमंद नदी ही जीवनदायिनी है. जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र में हेलमंद नदी सिमट रही है जिससे ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में जनजीवन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.
अफगान शरणार्थी बड़ी समस्या
ईरान में अफगानी शरणार्थी एक बड़ी समस्या बन चुके हैं. बताया जाता है कि वहां 30 लाख से भी ज्यादा अफगानी शरणार्थी रहते हैं. इनमें से बहुत से तो अवैध रूप से बसे हैं. इसीलिए ईरान कई बार उनको जबरन वापस भेजता रहता है. अब इजराइल के साथ युद्ध के बाद ईरान ने शरणार्थियों की वापसी की प्रक्रिया तेज कर दी है, क्योंकि उसका मानना है कि इनमें से कुछ जासूसी में भी शामिल हो सकते हैं. उसने अफगानिस्तान के कई नागरिकों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार भी किया है.
ईरान का कहना है कि अफगानी उसके यहां अराजकता बढ़ाते हैं. ऐसे में उसने अफगानिस्तान के नागरिकों के ईरान आने पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया है. अफगानी नागरिकों के लिए वीजा नीति कड़ी कर दी है. अब केवल स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, ईरान में मौजूद रिश्तेदारों और ईरानी कंपनी में रोजगार मिलने पर ही अफगानियों को ईरान का वीजा मिलेगा. अपनी इसी नीति के चलते ईरान ने महज 16 दिनों में पांच लाख अफगानियों को अपने यहां से निकाल दिया है. यह कार्रवाई 24 जून से नौ जुलाई (2025) के बीच की गई है. इससे पहले मार्च 2025 में ईरान ने घोषणा की थी कि वह अपने यहां अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर निकाल देगा.
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