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शेख हसीना की मेहनत पर यूनुस ने एक साल में फेरा पानी, चरमरा गई बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था- रिपोर्ट

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मोहम्मद यूनुस और शेख हसीना

शेख हसीना के कार्यकाल के 15 साल बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए सुनहरे साल रहे हैं. लंबे समय तक बांग्लादेश को दक्षिण एशिया में आर्थिक प्रगति का एक शानदार उदाहरण माना जाता रहा है. इसने रेडीमेड गारमेंट क्षेत्र, धन प्रेषण (Remittance), गरीबी उन्मूलन, मानव संसाधन विकास और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में कई कामयाबी हासिल की और दुनिया में अपनी पहचान बनाई.

हालांकि अब हालात बदलते दिखाई दे रहे हैं, हाल ही में जारी दो महत्वपूर्ण रिपोर्टों में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में पनप रहे गहरे संकट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. विश्व बैंक के ‘ग्लोबल फिन्डेक्स 2025’ और राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के नए आकड़ों के मुताबिक, बांग्लादेश का वित्तीय समावेशन और राजस्व संग्रह चरमरा गया है. यह देश की समग्र आर्थिक स्थिरता और सतत विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है.

यूनुस काल का एक साल

यूनस सरकार को अभी पूरा एक साल भी नहीं हुआ और बांग्लादेश से ऐसी रिपोर्ट्स सामने आ रही है. कानून व्यवस्था के बुरे हाल के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का भी बुरा हाल हो गया है. जबकि यूनुस ने चीन और पाकिस्तान से रिश्ते बना अपनी नई पॉलिसी के तहत बांग्लादेश को नई मजबूती देने की कोशिश की है, पर वह नाकाम होती दिख रही है.

वित्तीय समावेशन दर में 10 प्रतिशत की गिरावट

विश्व बैंक की नई ‘ग्लोबल फिन्डेक्स रिपोर्ट’ कहती है कि 2024 में बांग्लादेश की 15 साल और उससे ज्यादा उम्र की सिर्फ 43 फीसद आबादी के पास बैंक या मोबाइल मनी खाता है, जो 2021 में 53 फीसद से कम है. यानी, तीन सालों की अवधि में वित्तीय समावेशन दर में 10 अंकों की गिरावट आई है.

बता दें कि वैश्विक वित्तीय समावेशन में बढ़ोतरी देखने मिली है. 141 देशों में से ज्यादातर में औसत बैंक खाता एंट्री दर 74 फीसद से बढ़कर 79 फीसद हो गई है. दक्षिण एशिया में बांग्लादेश की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है. भारत की बैंक समावेशन दर 89 फीसद है और श्रीलंका की 80 फीसद से ऊपर. बांग्लादेश इस लिस्ट में सिर्फ पाकिस्तान से आगे है.

मोबाइल सेवाओं में भी आई कमी

विश्व बैंक ने यह भी बताया कि मोबाइल वित्तीय सेवाओं (MFS) या मोबाइल मनी खाताधारकों की दर में भी गिरावट आई है. यह 2021 में 29 फीसद से घटकर 2024 में 20 फीसद हो गई. बैंकों या वित्तीय संस्थानों में खाताधारकों की दर भी 24 फीसद से घटकर 23 फीसद हो गई है.

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